पोषण अभियान तथा आंगनबाड़ी
(मानवेंद्र नाथ-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
समूर्ण देश में सितम्बर मास में पोषण अभियान चलाने की घोषणा की गई है। पूर्व राष्ट्र्पति प्रणब
मुखर्जी के देहावसान के कारण राजकीय शोक लागू किया गया है। अस्तु, यह अभियान एक सप्ताह
स्थगित रखने के बाद 7 सितम्बर से प्रारम्भ किया जाएगा । ध्यान रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25
अगस्त, 2019 को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में सभी को संतुलित पोषक आहार
मुहैया कराने और जनभागीदारी सेकुपोषण का मुकाबला करने पर जोर दिया। उन्होंने पोषण आहार के
प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए सितंबर माह को पोषण अभियान के रूप में मनाने का ऐलान करते
हुए लोगों से इससे जुड़ने की अपील करते हुए कहा कि कई छोटी-छोटी चीजें हैं जिससे हम कुपोषण के
खिलाफ एक प्रभावी लड़ाई लड़ सकते हैं। आज, जागरूकता के अभाव में कुपोषण से गरीब भी, और
संपन्न भी प्रभावित हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने कहा है कि प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जी ने अपने श्मन की बातश् कार्यक्रम में नागरिकों से आगे आने और कम से कम एक
व्यक्ति को कुपोषण से लड़ने में मदद करने की अपील की है । आइये,हम सब मिल कर पोषण आंदोलन
और पोषण माह में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें और इसे एक श्जन आन्दोलनश् बनाएं। पोषण अभियान
अपने लक्ष्यों तक पहुंचे, ऐसे में जिन कार्यकर्ताओं पर जिम्मेवारी दी गई है, उनकी कुशल- क्षेम
आवश्यक है।
2018 के आंकड़ों के अनुसार देश में तकरीबन 12.9 लाख आंगनबाड़ी कर्मी तथा 11.6 लाख आंगनवाड़ी
सहायक हैं। यदि बानगी के तौर पर देखा जाय तो उत्तर प्रदेश सरकार के राजहठ के चलते आंगनबाड़ी
-कार्यकत्रियां , सहायिकाएं खून का आंसू रोने के लिए अभिशप्त कर दी गई हैं । यदि उनके वेतन
भत्ते की बात की जाय तो अन्य राज्यों की अपेक्षा उनके वेतन बहुत कम हैं ।
नाम न प्रकाशित करने के आश्वासन पर आंगनबाड़ी यूनियन की नेताओं व अन्य कार्यकत्रियों से
बातचीत करने पर पता चला कि यदि कोरोना आपदा के चलते लॉक डाउन व अब अन लॉक काल की
बात की जाय तो लगातार सर्वे , घर-घर पोषाहार वितरण , स्वास्थ्य विभाग व अन्य विभागों के
कार्यों में भी आंगनबाड़ी से काम लिया गया । फील्ड वर्क के साथ ही फोन पर लगातार सूचना,
डाटा फीडिंग कराई जाती रही । उसके बाद रजिस्टर या सर्वे रिपोर्ट व विभागीय रिपोर्ट की फोटो कॉपी
महीने में कई बार परियोजना मुख्यालय पर मंगाई जाती रही है। लाभार्थियों के बैंक अकाउंट , आधार
कार्ड, फोन नम्बर इत्यादि विवरण की रिपोर्ट एक बार की बजाय बार -बार बनवाई गई। जब
आंगनबाड़ी की नियुक्ति की गई थी, तब इनकी शैक्षिक योग्यता आठवीं या हाई स्कूल थी। जब से योगी
सरकार प्रदेश में सत्तारूढ़ हुई है, तब से आंगनबाड़ी केन्द्र से परियोजना केंद्र आने जाने का मार्ग व्यय
, स्टेशनरी व फोन का खर्चा बहुत ज्यादा बढ़ गया है । कहीं कहीं कार्य करने के लिए फोन दिए गए ,
परन्तु इनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है। फोन का रीचार्ज, फोटोकॉपी, डाटा फीडिंग ,स्टेशनरी इत्यादि
का खर्चा कार्यकत्री को स्वयं वहन करना पड़ता है। अपवादस्वरूप वर्ष में एकाध बार फोन रीचार्ज का
पैसा कहीं कहीं मिला है । लाभार्थियों के विवरण एकत्रित करने में आवश्यक कागजात के लिए आर्थिक व
शारीरिक परेशानी झेलनी पड़ती है। जब सरकारी कार्यालय भी बंद रहे तो इन कार्यकत्रियों को लगातार
चलायमान रखा गया । बताया जा रहा है कि कोरोना आपदा से बचने के लिए आवश्यक किट ,
सेनेटाइजर ,साबुन , मास्क इत्यादि भी इन्हें नहीं उपलब्ध कराया गया। अपवादस्वरूप कहीं कहीं
एक बार यूज एंड थ्रो वाले घटिया मास्क दिए गए। उत्तर
प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री की मंशा के अनुसार बाल विकास की योजनाएं उपयुक्त
लाभार्थियों तक पहुंचाना चाहते है। सम्भवतः उन्हें बताया गया है कि आबंटित पोषाहार पात्रों तक नहीं
पहुंच रहा है, इसमें भ्र्ष्टाचार है। यदि कहीँ ऐसा है तो कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए । यह भ्र्ष्टाचार
ऊपरी स्तर पर होने की आशंका है । उच्च अधिकारी अपने को जांच से परे रखने के किए आंगनबाड़ी
कार्यकत्रियों को बलि का बकरा बना रहे हैं। सोचने की बात यह है कि यदि उच्च स्तर पर गड़बड़ी नहीं
होगी तो निचले स्तर पर क्यों होगी ? ध्यान रहे पिछली सरकारों के समय बाल विकास विभाग में
पोषाहार खरीद से लेकर भर्ती तक में घोटाले के आरोप लगे थे । परन्तु फाइलों के मकड़जाल में यह
घोटाले उजागर नहीं हो पा रहे हैं। ज्ञात हो लोकसभा चुनावों से पूर्व विगत वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने
आंगनबाड़ी के वेतन को अलग-अलग श्रेणियों में 750 रु से 1500 रु तक बढ़ाने की घोषणा की थी ।
चुनावों के बाद शब्दों की बाजीगरी दिखाते हुए इसे वेतन की बजाय प्रोत्साहन भत्ता बता दिया
गया । । यह धनराशि जब नहीं दी गई तो आंगनबाड़ी हड़ताल पर चली गईं । बाद में आश्वासन मिलने
पर वापिस आई । प्रोत्साहन भत्ता तो दूर रहा , हड़ताल अवधि का वेतन भी काट लिया गया , ऐसा
बताया जा रहा है। वेतन, पदोन्नति की बात से ध्यान हटाने के लिए सरकार ने आंगनबाड़ी को ही हटाने
का निर्णय कर लिया । प्राप्त जानकारी के अनुसार सूची बनाकर प्रारम्भिक चरण में 62 वर्ष से
ऊपर की कार्यकत्रियों , सहायिकाओं को सेवा से हटाया जा रहा है । इनमें से अधिकांश की सेवा अवधि
30 – 35 वर्ष बताई जा रही है । कैसी विडंबना है कि प्रधानमंत्री प्रयागराज – कुम्भ में सफाईकर्मियों
के चरण पखारते हैं , उन्हें सम्मानित करते हैं। जबकि समाज की सेवा करने वाली इन महिलाओं को
बगैर किसी ग्रेच्युटी , सेवा दायक लाभ व पेंशन के एक आदेश से अपमानपूर्वक बाहर का रास्ता
दिखाया जा रहा है। बहुत दिनों से कार्यकत्रियां शासन से मांग कर रही हैं कि उन्हें मुख्य सेविका पद
पर पदोन्नत किया जाय। शासकीय अधिकारियों ने इसकी काट करते हुए सर्वाधिक जरूरतमंद व पात्र
महिलाओं को ही बाहर करने का रास्ता ढूढ़ निकाला। किसी की पदोन्नति नहीं होगी बल्कि योग्य
उम्मीदवार की मुसे पद पर नियुक्ति होगी, बशर्ते उनकी आयु 50 वर्ष से कम हो। फिलहाल, किसी
कार्यकत्री की नियुक्ति नहीं हो पाई है । बताया जाता है कि 1990 से पूर्व की अनेक कार्यकत्रियां जो
नियुक्ति के समय स्नातक थीं, पदोन्नति की आशा में कार्यकत्री का दायित्व मनोयोगपूर्वक कर रही थीं,
उन्हें मनमाने ढंग से उनके हक से वंचित कर दिया गया। कार्यकत्रियों की मांग है कि आयु सीमा
की बजाय वरिष्ठता के दृष्टिगत तत्काल 1995 से पूर्व नियुक्त कार्यकत्रियों को मुख्य सेविका पर
पदोन्नत किया जाय ताकि वे सम्मानपूर्वक आगामी कुछ दिनों में सेवा निवृत्त हो सकें। लोग यह भी पूछ
रहे हैं कि पड़ोसी राज्य हरियाणा व दिल्ली जितना वेतन कार्यकत्रियों व सहायिकाओं को दे रहे हैं,
उतना भी देने से उत्तर प्रदेश सरकार क्यों कतरा रही है ? समीचीन होगा यदि मोदी मंत्र- सबका साथ,
सबका विकास, सबका विश्वास के सापेक्ष उत्तर प्रदेश सरकार आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों – सहायिकाओं का
दिल जीतने के लिए ठोस कदम उठाए ताकि कुपोषण के विरुद्ध अभियान सफल हो सके।