चीन से सतर्कता के साथ दोस्ती
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भारत की परम्पराओं में दोस्ती शामिल है । इसलिए मास्को में जब चीन के रक्षा मंत्री ने लद्दाख में
सीमा पर विवाद समाप्त करने के लिए हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बातचीत का प्रस्ताव रखा
तो उसे स्वीकार करना ही उचित है। यही राय विदेश मंत्री जयशंकर की भी है। यह अलग बात है कि
अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने चेताया है कि चीन बड़ी धूर्तता के साथ भारत को घेर रहा है। हम
इससे डरते भी नहीं क्योंकि दुश्मन को कैसा भी जवाब देने में हम सक्षम हैं । हमें चीन को यह अवसर
देना ही चाहिए कि उसकी दोस्ती की हम कद्र करते हैं। रूस अगर चीन का बिरादर है तो हमारा भी
विश्वसनीय दोस्त रहा है।मास्को में शंघाई सहयोग संगठन अर्थात एससीओ की बैठक भारत और चीन
के बीच मौजूदा तनाव कम कर सके तो इससे बेहतर और क्या होगा। हां, पेंटागन की चेतावनी को भी
ध्यान में रखना होगा। पेंटागन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन भारत के चारों तरफ मौजूद
करीब एक दर्जन से ज्यादा देशों में सैन्य अड्डे बना रहा है। चीन का लक्ष्य अगले कुछ सालों में अपने
परमाणु हथियारों की संख्या डबल करने की भी है। इसके बावजूद मास्को के प्रस्ताव को हम नजरंदाज
नहीं कर सकते। मॉस्को में एससीओ की बैठक में हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद हैं तो दूसरी ओर
10 सितंबर को विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी मॉस्को पहुंचने वाले हैं। बता दें कि चीन के रक्षा मंत्री वे
फेंग चीन के सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के उन चार सदस्यों में शामिल हैं, जिनकी सरकार में अहम
भूमिका मानी जाती है। चीन के सेंट्रल मिलिटरी कमीशन की अध्यक्षता राष्ट्रपति शी जिनपिंग करते हैं।
कश्मीर के लद्दाख में स्थित पैंगोंग त्सो झील के पास हुई भारत और चीन की सेनाओं के बीच झड़प से
दोनों देशों के बीच एक बार फिर तनाव चरम पर पहुंच गया है। दोनों देशों में बीच बिगड़ते रिश्तों को
देखते हुए चीन के रक्षा मंत्री वे फेंग ने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलने की इच्छा जताई है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस समय मॉस्को में चल रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ ) की बैठक में
हिस्सा ले रहे हैं और फेंग भी वहां मौजूद हैं।
इससे पहले गत 3 सितंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूस के रक्षा मंत्री जनरल सर्गेई शोइगु
के साथ मुलाकात की थी। संभवतया उसी समय इसकी भूमिका तैयार हुई। यह तो रूस भी जानता है
कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले कई महीनों से चले आ रहे तनाव के
बाद दोनों भारत और चीन दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई हैं। दोनों ही देश सीमा विवाद के
मसले पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। दोनों ही देश बातचीन के जरिए इस विवाद का हल निकालने का
प्रयास कर रहे हैं और सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कई दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता भी हो
चुकी है। मॉस्को में चल रही शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में राजनाथ सिंह पहले ही पहुंच
चुके हैं, जबकि 10 सितंबर को विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मॉस्को पहुंचने वाले हैं। जयशंकर एससीओ
में विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने जा रहे हैं।भारत-चीन सीमा विवाद पर विदेश मंत्री जयशंकर ने
कहा है कि वह पूरी तरह से सहमत हैं कि विवाद का समाधान कूटनीतिक दायरे में निकालना होगा।
उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि सीमा पर जो होता है, उससे भारत-चीन रिश्तों पर असर पड़ेगा।विदेश
मंत्री ने कहा, अगर आप एक बहुध्रुवीय दुनिया को देख रहे हैं और कल्पना करते हैं कि बहुत से मुद्दों
पर लोगों के साथ आपकी समझ है…तो हमारे पास अलग-अलग संयोजन होंगे। एससीओ, क्वाड,
आरआईसी में होने के लिए यह वह दुनिया है जिसे हमें समझने की आवश्यकता है। विदेश मंत्री
जयशंकर ने अपनी पुस्तक के विमोचन के मौके पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम में कहा, मुझे यह भी
जानकारी है कि आपके पास वहीं स्थिति है जो हमारे पास पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख के पार) के सीमा क्षेत्रों
में है क्योंकि हमारा लंबे समय से दृष्टिकोण रहा हैं, वहां हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है- हमारी चीन के
साथ सहमति और समझ हैं। जयशंकर मानते हैं कि दोनों पक्षों द्वारा किए गए समझौतों और समझ
को बारीकी से देखा जाना चाहिए।उन्होंने कहा, वास्तविकता यह है कि सीमा पर जो होता है वह संबंध
को प्रभावित करेगा, आप इसे अलग नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, मैंने कुछ दिनों पहले एक अन्य संदर्भ
में यह बात कही थी, मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि स्थिति का समाधान
कूटनीति के दायरे में ढूंढना होगा और मैं यह जिम्मेदारी के साथ कहता हूं। जयशंकर ने कहा कि भारत-
चीन संबंध के लिए यह आसान समय नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्होंने 15 जून को गलवान घाटी में हुई
झड़पों से पहले पुस्तक ‘द इंडिया वेरूस्ट्रैटेजिस फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ लिखी थी।
गौरतलब है कि गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़पों में 20 भारतीय
सैन्यकर्मी शहीद हो गये थे। विदेश मंत्रालय ने भी याद दिलाया है कि पूर्वी लद्दाख में पिछले चार महीने
में सीमा पर पैदा हुए हालात इस क्षेत्र में एकतरफा ढंग से यथास्थिति बदलने की चीनी कार्रवाई का
प्रत्यक्ष परिणाम है। इसके साथ ही भारत ने जोर दिया कि मुद्दों के समाधान का एकमात्र रास्ता
बातचीत है। चीन की नीयत भी किसी से छिपी नहीं है। इसी संदर्भ में अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने
एक रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत के तीन पड़ोसी देशों समेत करीब एक दर्जन देशों में चीन मजबूत
ठिकाना स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। चीन लंबी दूरी से भी अपना सैन्य दबदबा बनाए रखने के
लिए दर्जनों देशों में सैन्य अड्डे बना रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्ता,
श्रीलंका और म्यांमार के अलावा चीन थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या,
सेशल्स, तंजानिया, अंगोला और तजाकिस्तान में अपने ठिकाने बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है।
पेंटागन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘मिलिट्री एंड सिक्योरिटी डेवलपमेंटस इंवॉल्विंग द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ
चाइना (पीआरसी) 2020’ गत 1 सितम्बर को अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में पेंटागन ने
कहा कि ये संभावित चीनी ठिकाने जिबूती में चीनी सैन्य अड्डे के अलावा हैं, जिनका उद्देश्य नौसेना,
वायु सेना और जमीनी बल के कार्यों को और मजबूती प्रदान करना है। पेंटागन ने रिपोर्ट में कहा,
श्वैश्विक पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) के सैन्य अड्डों का नेटवर्क अमेरिकी सैन्य अभियानों में
हस्तक्षेप कर सकता है और पीआरसी के वैश्विक सैन्य उद्देश्यों के तहत अमेरिका के खिलाफ आक्रामक
अभियानों का समर्थन कर सकता है। उसने कहा कि चीन ने नामीबिया, वनुआतू और सोलोमन द्वीपों
पर पहले से ही अपना कब्जा जमा लिया है। पेंटागन ने यह भी कहा कि चीन की परमाणु हथियार भी
डबल करने की योजना है।
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए ) के पास अभी करीब 200 परमाणु हथियार हैं लेकिन आने वाले समय
में जमीन, पनडुब्बियों और हवाई बॉम्बर से दागी जाने वाली मिसाइलों के जखीरे में वह इजाफा कर रहा
है। अभी उसके पास परमाणु वाहक एयर-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल नहीं है जिसका विकास चीन कर रहा
है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 10 साल में चीन अपनी परमाणु ताकत का विस्तार करेगा और
अपने हथियारों को करीब दोगुना कर लेगा। डिप्टी असिस्टेंट डिफेंस सेेक्रेटरी फॉर चाइना चैड स्ब्रागिया ने
बताया है कि पहली बार अमेरिका ने चीन के हथियारों की संख्या सार्वजनिक की है।
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