ब्यूरो,
सुरेंद्र मोहन पाठक हिंदी क्राइम फिक्शन का एक ऐसा नाम है जिसे आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है फिर भी नए पाठको खासकर युवा जो 2000 के बाद पैदा हुए उन्हें बता दूं कि आज बॉलीवुड, टॉलीवुड में जिस अंडरवर्ल्ड का जिक्र कंपनी के नाम से किया जाता है उस शब्द का पहला प्रयोग सुरेंद्र मोहन पाठक ने किया था। अंडरवर्ल्ड की जरायम दुनिया से हिंदी के साहित्य प्रेमियों को परिचित कराने का श्रेय उन्हें ही है।
यूं तो साहित्य को समाज का दर्पण कहां जाता है लेकिन इसे वास्तविक दर्पण बनाने का साहस जिन लेखकों ने किया है उनमें सुरेंद्र मोहन पाठकजी का नाम सबसे ऊपर है।
समाज में हर प्रकार के लोग है। कर्त्तव्य का पालन करने वाले लोग , ईमानदार, मेहनती, खुशमिजाज, प्रेम से भरे, दोस्ती पर अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले लोग यहां की शोभा बढ़ाते है। लेकिन लालच, स्वार्थ , ईर्ष्या, द्वेष, फरेब, धोखा भी समाज में ही होता है। आए दिन अखबारों के पन्ने इन खबरों से भरे रहते है। पाठक साहब की सबसे बड़ी खासियत यही रही कि उन्होंने अपने पात्रों के उम्दा चरित्र चित्रण से इन सब रसों का वर्णन अपने सम्पूर्ण रचना संसार में कर दिया है। उन्होंने ऐसा कोई रस बाकी नहीं छोड़ा जिससे अपने पाठको को अछूता रखा हो।
सामाजिक उपन्यास, बाल उपन्यास, जोक बुक्स और थ्रिलर सीरिज के साथ साथ उन्होंने विमल, सुनील, सुधीर , जीत सिंह सीरिज के उपन्यास लिखें है। उन्होंने विवेक अगाशे, विकास गुप्ता, मुकेश माथुर और प्रमोद जैसे स्थापित किरदारों के अलावा रमाकांत, तुकाराम, इमरान, इरफान, राहुल आदि अनगिनत यादगार पात्रों के माध्यम से एक वृहद कथा संसार बनाया है। छः दशको से अपनी लेखनी से लोगो के दिलो पर राज करने वाले पाठक साहब के प्रशंसक पूरी दुनिया में है। उनके अनुपलब्ध उपन्यास लोग ढूंढ- ढूंढ कर पढ़ते है। उनके अनुपलब्ध उपन्यास पाठकगण अविश्वसनीय कीमत पर खरीदकर अपने संग्रह में रखना पसंद करते है। वे इकलौते ऐसे लेखक है जिनके नाम पर फैंस ग्रुप बने हुए है। पाठक साहब के प्रशंसक अपने आप को smpian कहलाना पसन्द करते है और साल में दो बार किसी भव्य आयोजन में मिलकर उनकी रचनाओं पर गोष्ठियां करना पसंद करते है।
पाठक साहब की लेखनी से कई लोगो को निराशा से उबरने में मदद मिली है। आशावाद के प्रबल वाहक उनके किरदार पढ़ने वाले को असीमित जोश और ऊर्जा से सराबोर कर देते है। बुरे काम का अंजाम हमेशा बुरा होता है जैसी सीख भी उनके कथानको को पढ़ कर हमे मिलती है।
कुछ समय पूर्व उन्होंने अपनी आत्मकथा के तीन पार्ट लिखे है जो भारत के मशहूर प्रकाशनों से छपे है। इन तीन खंडों में उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को सांझा किया है। पूरे प्रकाशन जगत की अच्छाई और बुराइयों का रोचक वर्णन उन्होंने जिस अंदाज में किया है वो दुर्लभ है।
एक शानदार लेखक होने के साथ साथ सुरेंद्र मोहन पाठक एक बहुत अच्छे इंसान है। अपने पाठको के पत्रों के जवाब देना हो या उनके पत्रों को लेखकीय में शामिल करना हो पाठक साहब कभी नहीं भूलते। वे बहुत स्पष्ट बोलने वाले लेखक है। उन्होंने कई बार कहा है कि उनका काम लिखना है और वे वही लिखते है जो उनके पाठक पसंद करते है। अपने आप को केवल एक प्रोफेशनल लेखक समझने वाले पाठक साहब दरअसल अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण लाखो दिलो पर राज करते है।
साहित्य विमर्श ने लगभग 40 वर्षो से अनुपलब्ध पाठक जी द्वारा रचित अनुपम बाल साहित्य की 02 किताबो का पुनर्प्रकाशन किया है।
“कुबड़ी बुढ़िया की हवेली” और “बेताल और शहजादी”
अब ये दोनो किताबे बिक्री हेतु उपलब्ध है।
एक पुरानी हवेली जिसका घंटा कभी-कभी अँधेरी रातों में अपने आप बजने लगता था। राजू, मुन्नी और भोला को लगता था कि कहानियों में पढ़ी गयी ज्यादातर पुरानी हवेलियों की तरह इस हवेली में भी कोई न कोई गुप्त रास्ता अवश्य है। गुप्त रास्ते की तलाश में तीनों बच्चे पहुँच गये एक रोमांचक और खतरनाक रहस्य की तह तक। क्या था कुबड़ी बुढ़िया की हवेली का रहस्य जिसके कारण तीनों बच्चों की जान पर बन आई। अपराध कथा लेखन के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक की कलम से खास तौर पर बच्चों के लिए लिखा गया रोमांचक उपन्यास।
शहजादी शबनम महल से भागी अपनी शादी से बचने के लिए और फँस गयी जादू और तंत्र-मंत्र की ऐसी दुनिया में जिससे उसका जीते जी निकलना मुश्किल था। एक तांत्रिक के हाथों की कठपुतली बनकर शहजादी ने क्या-क्या कारनामे किये? क्या वह वापस अपनी दुनिया में लौट पाई? अपराध कथा लेखन के शहंशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया यह बाल उपन्यास ‘बेताल और शहजादी’ पाठकों को कल्पना की एक अनोखी दुनिया में लेकर जाता है, जहाँ मायावी शक्तियों के जाल में फँसी है शहजादी शबनम और उस जाल को तोड़ कर शहजादी को वापस अपनी दुनिया में ले जाने के लिए कृतसंकल्प है उसका मित्र अनिल।