कोरोना-काल की वेदना और उस पर प्रसव वेदना, शब्दों में समेटना बेहद मुश्किल है। असहनीय दर्द से निकलती चीखें अस्पताल के ठीक सामने की सड़क का सन्नाटा तो तोड़ पाई मगर जिम्मेदारों का जमीर नहीं जगा पाईं। आगरा के 132 साल पुराने लेडी लॉयल अस्पताल के दरवाजे शनिवार की सुबह गर्भवती महिलाओं के लिए नहीं खुले। कराहती, चिल्लाती और बार-बार दर्द से बेसुध होती महिलाएं सड़क पर थीं। भगवान-भरोसे थीं। टूटती उम्मीदों के बीच सात-आठ महिलाएं देवदूत बनकर आई, अपनी और कपड़ों की आड़ बनाई और देखते ही देखते बमुश्किल 30 मिनट के अंतराल में तीन गर्भवती महिलाओं के प्रसव करा दिया। मातृशक्ति का अद्भुत संयोग देखिए, तीनों ही प्रसूताओं ने स्वस्थ बच्चियों का जन्म दिया।
शनिवार की सुबह साढ़े पांच बजे नूरी दरवाजा निवासी प्रीति तीव्र प्रसव पीड़ा से गुजरी, तो वह अपने पति साथ बाइक पर बैठकर लेडी लॉयल अस्पताल पहुंची। दरवाजे पर गार्ड ने रोक दिया। कहा- बिना थर्मल स्क्रीनिंग अस्पताल में प्रवेश संभव नहीं। असहनीय दर्द से गुजरती नीलम गेट के पास ही सड़क किनारे बैठ गई। लगभग 15 मिनट बाद ही केके नगर, सिकंदरा से बाइक पर अपने देवर के साथ आई रीना को भी थर्मल स्क्रीनिंग न होने से अस्पताल में नहीं जाने दिया गया। इस परिवार के पास भी कोई रास्ता नहीं था सिवाय सड़क पर बैठकर कराहने, इंतजार करने और सिस्टम को कोसने के।
लेडी लॉयल अस्पताल से नूरी दरवाजा की दूरी बमुश्किल एक किलोमीटर है, इसलिए प्रीति के पति ने घर पर सूचना दी तो घर की तीन चार महिलाएं अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। एक मां ही दूसरी मां की पीड़ा समझती है। आसपास मौजूद चार-पांच महिलाएं भी प्रसव की कठिनतम वेदना से गुजर रहीं गर्भवतियों के पास आ गईं। संख्या आठ हो गई तो महिलाओं ने खुद ही एक घेरा बनाया। घेरे को कपड़ों से ढक दिया। पहले प्रीति का प्रसव कराया और फिर रीना का। संयोगवश कुछ ही मिनट बाद ही शीतला गली निवासी नीलम अपने पति के साथ रिक्शे से लेडी लॉयल अस्पताल पहुंच गई। थर्मल स्क्रीनिंग न होने की वजह से उसे गेट के लौटा दिया गया। वापसी में अस्पताल से सौ मीटर की दूरी पर उसे तेज प्रसव पीड़ा हुई। पति घबरा गया। चीख देवदूत बनी महिलाओं तक पहुंची, तो वह दौड़ी और जुट गईं नीलम का प्रसव कराने में। तरीका वही, अंदाज वही। नतीजा महज 30 मिनट के अंतराल में तीन स्वस्थ बच्चियों का जन्म और सुकून देती किलकारियां। तीनों जच्चा-बच्चा अब स्वस्थ हैं। तीनों प्रसव के लगभग एक घंटे बाद इन महिलाओं की थर्मल स्क्रीनिंग हुई। इसके बाद इन्हें अस्पताल के वार्ड में नर्सों के माध्यम से पहुंचाया गया। सवाल यह है कि अस्पताल में इमरजेंसी के चलते 24 घंटे की सेवाएं हैं। इसके बावजूद सुबह के समय थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था क्यों नहीं की गई और यदि किसी प्रसूता की जान चली जाती तो कौन जवाबदेह होता।