एक विशेष विचारधारा का विरोध करना ही है अभिव्यक्ति की आजादी

 

एक विशेष विचारधारा का विरोध करना ही है अभिव्यक्ति की आजादीसारांश कनौजिया

बॉलीवुड में अभिनेता और अभिनेत्रियों को हम उसी रूप में जानते हैं, जैसा वो अभिनय करते हैं। अक्षय कुमार जैसे कुछ अभिनेताओं को हम उनके द्वारा किये गए समाजसेवी कार्यों के लिए जानते हैं। कई बार कुछ अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के बयान भी सुर्खियां बनते हैं। इनमें से कुछ सामाजिक मुद्दों पर होते हैं। इनपर कई बार विवाद भी होता है। एक बार आमिर खान ने कहा था उनकी पत्नी को भारत में डर लगता है। जब इसका विरोध किया और कहा गया कि यदि आमिर खान चाहें तो वो पाकिस्तान जा सकते हैं, उन्हें अंतर समझ में आ जायेगा। ऐसा बोलने वालों को फांसीवादी कहा गया।

            दरअसल पहले अभिनय क्षेत्र के लोग सामाजिक विषयों पर खुलकर अपने विचार नहीं रखते थे, लेकिन कुछ समय से ऐसे लोग जिन्हें फांसीवादी कहा जाता है, अभिनय क्षेत्र में उनके समर्थक खुलकर अपने विचार रखने लगे। मुखौटे के पीछे छुपे लोग, जो स्वयं को देशभक्त दिखाते रहे हैं, वे भी अपने वास्तविक रूप में सामने आने लगे। उनके विचारों के कारण विशेष रूप से बॉलीवुड दो भागों में विभाजित हो गया। एक वो लोग जो स्वयं को सेक्युलर कहते हैं और दूसरे वो लोग जो तुष्टिकरण जैसे प्रयोगों का विरोध करते हैं। दूसरे प्रकार के लोगों को कई व्यक्ति और संगठन फांसीवादी भी कहते हैं। कंगना को भी इन्हीं फांसीवादियों का समर्थक माना जाता है।

            आमिर खान की तरह ही इस बार कंगना रनौत ने मुंबई आने से डर लगने की बात कही, तो शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने उन्हें वापस मुंबई न आने के लिए कह दिया। शिवसेना किसी से निवेदन करे, ऐसा उसका स्वाभाव नहीं है। शिवसेना समर्थक कह रहे हैं कि कंगना को मुंबई पुलिस से ही डर लग रहा है, जो सबकी सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती है, ऐसे में एक ही विकल्प है, जो राउत ने बताया है। इसकी जगह शिवसेना यह भी कह सकती थी कि कंगना को डरने की जरुरत नहीं है, हम उन्हें पूरी सुरक्षा देंगे। राउत ने उसका उलटा क्यों कहा? इस पर विचार करने के लिए यह समझना होगा की कंगना से शिवसेना इतनी नाराज क्यों है?

कंगना को एक विशेष विचारधारा का समर्थक माना जाता है, कांग्रेस इस विचारधारा की विरोधी मानी जाती है। इस कारण कई बार उद्धव ठाकरे सरकार भी निशाने पर आ जाती है। फिलहाल ताजा मामला सुशांत सिंह राजपूत से जुड़ा है। कंगना के निशाने पर शुरूआत से मुंबई पुलिस और उद्धव सरकार थी। यद्यपि मैं उनकी सभी बातों से सहमत नहीं हूं किन्तु एक विचारधारा का समर्थक होने के कारण उन्हें निशाना बनाया जाना भी गलत है। आमिर खान की तरह ही कंगना ने अब जो कहा या पहले जो कहा था, वह उनके विचार हैं। कोई इन विचारों से असहमत हो सकता है, लेकिन इस कारण उसको मुंबई न आने की धमकी देना ठीक नहीं है। यदि आमिर खान के कुछ विचारों या कार्यों की निंदा करने वाले फांसीवादी हैं, तो कंगना को धमकी देने वालों को भी फांसीवादी माना जाना चाहिए।

मेरा मानना है कि भारत वर्ष में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी के पास है, जब तक वह भारतीय संविधान के विरुद्ध न हो। ऐसा संभव है कि हम किसी से असहमत हों, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि हम उसका किसी भी हद तक जाकर विरोध करें। पत्रकारिता में हम पत्रकार बहुत से लोगों के समाचारों को लिखते या दिखाते हैं। यह जरुरी नहीं कि हम सभी से सहमत हों, किन्तु समाचार को समाचार के रूप में ही लिखना या दिखाना होता है। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति से वैचारिक भिन्नता हो, तो भी हमें उसके विचारों का आदर करना चाहिए। जब हम सात्ताधारी दल में हों, तो यह जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। सारांश कनौजिया संपादक
मातृभूमि समाचार मोबाइल नं.: 8303063085 वेबसाइटhttps://www.matribhumisamachar.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *