कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते दिल्ली के श्मशान गृह और कब्रिस्तान के सामने खामोशी पसरी है। कोविड शवों के लिए निर्धारित श्मशान भूमि के अंदर अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं। कोरोना के चलते होने वाली मौत के चलते जहां आईटीओ स्थित कब्रिस्तान में जगह कम पड़ने की बात कही जा रही है तो वहीं, पंजाबीबाग श्मशान भूमि में दिनभर दाह संस्कार चल रहा है।
पंजाबीबाग श्मशान भूमि के बाहर सन्नाटा छाया हुआ था। इक्का-दुक्का परिजन बाहर खड़े हैं। गुरुवार की दोपहर यहां आठ चिताएं जल रही थीं, जबकि पांच-छह चिताएं और तैयार की जा रही थीं। दिल्ली में पंजाबीबाग श्मशान भूमि को कोविड मरीजों के दाह संस्कार के लिए चिह्नित किया गया है। यहां सीएनजी की दो भट्ठियां हैं, जबकि लकड़ी की चिता के लिए साठ प्लेटफार्म बने हुए हैं। श्मशान भूमि के एक कर्मचारी ने बताया कि हर दिन यहां 50 से ज्यादा शव आ रहे हैं। लकड़ी की चिताओं पर दाह संस्कार की तैयारी तो हर समय मौजूद है, लेकिन सीएनजी में एक शव को डेढ़ घंटे का समय लगता है। हालांकि इसके बारे में अस्पताल से ही फोन करके तय कर लिया जाता है।
बाहर पीपीई किट और दस्ताने पड़े हैं: कोविड मरीजों के शव को यहां लाए जाने का असर श्मशान भूमि के बाहर भी देखने को मिल रही है। श्मशान भूमि के बगल में मौजूद ढलावघर में पीपीई किट, दस्ताने जैसा कचरा पड़ा हुआ है। बाहर लगे दो कूड़ेदानों में भी इसी तरह का कचरा भरा हुआ है।
कोंडली नहर और गाजीपुर डेयरी फार्म के समीप गाजीपुर श्मशान घाट के 12 प्लेटफार्म को कोरोना संक्रमण से हो रही मौतों के लिए अधिकृत किया गया है। यहां के एक कर्मचारी ने बताया कि दाह संस्कार जल्दी हो सके इसके लिए 50 किलोग्राम लकड़ी चिता पर अधिक दी जा रही है।
कोरोना से हुई मौत के बाद गुरुवार को यहां दो शव पहुंचे। दोनों शवों का कोविड-19 के लगे बोर्ड के समीप ही अंतिम संस्कार किया गया। इनमें से एक चिता का अंतिम संस्कार हो चुका था, जबकि दूसरी चिता का संस्कार चल रहा था। गाजीपुर श्मशान घाट के प्लेटफार्म 25 से 36 तक कोविड से हो रही मौतों के लिए रखा गया है। बताया कि कोरोना से हो रही मौतों के अंतिम संस्कार के लिए 50 किलो लकड़ी फालतू दी जा रही हैं ताकि चिता का जल्द से जल्द संस्कार हो सके। गाजीपुर श्मशान घाट बुधवार से कोरोना शवों के संस्कार के लिए घोषित किया गया है। यहां दो दिन में पांच शवों का संस्कार किया गया।
कोरोना से मौत के आंकड़ों के साथ ही शमशान घाटों पर भी दवाब बढ़ गया था। दिल्ली के सबसे बड़े शमशान घाट में शामिल निगम बोध घाट पर सीएनजी से कोरोना संक्रमित मरीजों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था। घाट पर एक दिन में 18 शवों की सीएनजी से अंतिम संस्कार की व्यवस्था थी, लेकिन रोज करीब 30 से 32 शव पहुंच रहे थे, जिससे यहां व्यवस्था भी बिगड़ने लगी। घाट पर सभी व्यवस्थाओं की देखरेख करने वाले सुमन कुमार गुप्ता ने बताया कि घाट पर सीएनजी की तीन मशीन लगीं हैं।
उन्होंने बताया कि संस्कार करने के दौरान तीनों मशीनें लगातार काम कर रही हैं, क्योंकि एक शव के अंतिम संस्कार में करीब दो से ढाई घंटे का समय लगता है। ऐसे में एक दिन में 18 शवों के ही संस्कार हो पाते हैं। जब से सरकार ने लकड़ियों से कोरोना संक्रमितों के संस्कार करने का आदेश पारित किया है, तब से कुछ राहत मिली है। आम दिनों में अंतिम संस्कार के लिए 40 से 45 शव आते थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 80 से 85 शव तक जा पहुंची है। ऐसे में अलग-अलग व्यवस्था की गई हैं।
दिल्ली में यदि कोरोना संक्रमण से मृतकों की संख्या बढ़ती जाजदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम के मैनेजिंग कमेटी में असिस्टेंट सेक्रेटरी एडवोकेड मसरूर हसन ने बताया कि हमारे यहां कब्रिस्तान में एक अप्रैल से अब तक 235 बॉडी दफनाने के लिए आई हैं। यदि इसी तरह मृतकों के शव आए तो जगह कम पड़ जाएगी। उन्होंने बताया कि कोरोना शवों को दफनाने के लिए 15 फुट का गड्ढा खोदना पड़ता है।
इसके लिए जेसीबी का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह पैसा मृतकों के परिजन देते हैं। मसरूर ने बताया कि दुआ यहां पढ़ी जाती है, लेकिन शवों को नहलाने के साथ अन्य जो क्रियाएं होती हैं। शव को छुआ नहीं जाता है। शव प्लास्टिक में लपेटा होता है। इसे रस्सी की सहायता से शव को कब्र में डालते हैं। एगी तो कब्रिस्तान में जगह कम पड़ जाएगी। पहले आम शवों को दफनाने के लिए चार फुट का गड्डा खोदना पड़ता था, लेकिन कोरोना के शवों को दफनाने के लिए 12 से 15 फुट का गड्ढा खोदना पड़ता है।