मध्य प्रदेश की राजनीति में बीते कुछ महीनों से सियासी हलचल काफी देखने को मिल रही है। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी के साथ आना। उसके बाद उनके 22 समर्थक विधायकों को इस्तीफा देना, जिसके कारण कमलनाथ सत्ता से बेदखल हो गए और शिवराज सिंह चौहान की फिर से वापसी संभव हुई। इस्तीफा देने के कारण उन तमाम विधायकों की सदस्यता चली गई। पहले से खाली दो सीट सहित कुल 24 पर उपचुनाव आने वाले समय में होने हैं। यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस दोनों के लिए काफी अहम है।
कोरोना संकट के बीच इस चुनाव में दोनों ही राजनीतिक दलों के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, लिहाजा इस चुनाव को ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया बनाम कमलनाथ’ पर केंद्रित करने की कोशिशें चल पड़ी हैं। राज्य में भाजपा की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से बनी है। सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने और सिंधिया समर्थक 22 तत्कालीन विधायकों के कांग्रेस छोड़ने से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार को लगभग तीन माह का समय गुजर गया है और यह पूरा समय कोरोना काल के कारण सियासी हलचल से दूर रहा।
आगामी समय में राज्य में 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं। इनमें 22 वे क्षेत्र हैं, जहां से सिंधिया समर्थकों ने इस्तीफा दिया है और भाजपा इन सभी 22 नेताओं को पार्टी का उम्मीदवार बनाने का लगभग मन बना चुकी है। यही कारण है कि अब उपचुनाव को सिंधिया बनाम कमलनाथ के नाम पर लड़ने की तैयारी है।कांग्रेस के तमाम नेता सीधे तौर पर सिंधिया को निशाने पर ले रहे हैं। उनके बयान और सोशल मीडिया पर दिए जाने वाले बयानों में सिंधिया ही निशाने पर होते हैं। कांग्रेस द्वारा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में मीडिया प्रभारी बनाए गए केके मिश्रा ने सिंधिया पर हमला करते हुए ट्वीट किया, “क्या मजाक बनाया हुआ है, रविवार को घोषित मप्र भाजपा की चुनाव संचालन समिति की सूची में छठवें स्थान पर 11 मार्च को बतौर राज्यसभा प्रत्याशी की घोषणा में भी नाम के आगे ‘श्रीमंत’ शब्द गायब? जबकि महाराष्ट्र के एक प्रत्याशी के नाम के आगे श्रीमंत उदयना राजे भोंसले लिखा हुआ है!! मजाक?” मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर में कोरोना फैलने का दोष कमलनाथ पर मढ़ा और कहा, “इंदौर में कोरोना फरवरी में ही फैला चुका था, अंतरार्ष्ट्रीय उड़ानों से लोग आ रहे थे, परीक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कोई बैठक नहीं ली। एक बैठक जरूर हुई थी और वह थी आईफा की। टिकट को लेकर मारामारी थी, यह तय कर दिया गया था कि जो हिस्से देगा उसे पास मिलेगा, कोरोना से निपटने के लिए जो तैयारी होनी चाहिए थी, वह नहीं की गई थी।”
कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर राज्य के कई नेताओं ने भाजपा के भीतर सिंधिया की उपेक्षा का आरोप तो लगाया ही, साथ ही महत्वाकांक्षी भी बता रहे हैं। इतना ही नहीं, शिवराज सिंह चौहान द्वारा सिंधिया को भाजपा में शामिल कराए जाने के बाद कांग्रेस कथित तौर पर ‘विभीषण’ कहे जाने वाले बयान को भी प्रचारित करने में लगी है। वहीं सिंधिया और उनके समर्थकों को सत्ता-लोलुप भी करार दिया जा रहा है और भाजपा पर खरीद-फरोख्त के भी आरोप लगाए जा रहे हैं। भाजपा के नेताओं ने कहा है कि सिंधिया को कांग्रेस में सम्मान नहीं मिल रहा था, वे जनता की सेवा नहीं कर पा रहे थे, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामा।
राजनीतिक विश्लेशक शिव अनुराग पटेरिया उपचुनाव को सिंधिया बनाम कमलनाथ किए जाने की कोशिशों को स्वीकारते हुए कहते हैं कि राज्य में उपचुनाव होना है और उसमें से अधिकांश 16 विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर-चंबल में आते हैं, जहां सिंधिया का प्रभाव है। कांग्रेस की कोशिश है कि वहां चुनाव को सिंधिया बनाम कमलनाथ बना दिया जाए, क्योंकि ग्वालियर-चंबल संभाग में बगावत को तो स्वीकार किया जाता है, मगर धोखा देने वाले को तिस्कार मिलता है। इसके चलते कांग्रेस की कोशिश चुनाव को पूरी तरह सिंधिया और उनके समर्थकों के खिलाफ माहौल बनाने की है और इसीलिए उपचुनाव को सिंधिया बनाम कमलनाथ बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री चौहान भी लगातार कमलनाथ पर हमले बोल रहे हैं। इसके जरिए चौहान उस अवधारणा को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें कहा जाता रहा है कि कमलनाथ को सरकार चलाते समय चौहान का समर्थन रहा है।