कोरोना संक्रमण : वैज्ञानिकों के लिए खून के थक्के बन रहे बड़ी मुसीबत

दुनियाभर में कोरोना वायरस का संक्रमण थम नहीं रहा है, लेकिन राहत वाली खबर ये है कि अब इससे मृत्युदर कम होती जा रही है। इस बीच कई देशों के वैज्ञानिक कोविड-19 बीमारी से लड़ने के लिए दवा बनाने में जुटे हैं। इस दौरान वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के सामने नई-नई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। हाल में एक रिसर्च के बाद मेडिकल एक्सपर्ट का कहना है कि कोविड-19 से ज्यादा गंभीर मरीजों में खून के थक्के जमने की समस्या देखने को मिल रही है। इन्हीं खून के थक्कों के कारण मरीज की स्थिति गंभीर होती जाती है और दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. आयुष पाण्डेय के अनुसार, शरीर की रक्त धमनियों में जब रक्त का थक्का जमने लगता है तो इसे थ्रोम्बोसिस कहा जाता है। इस समस्या के कारण शरीर में रक्त प्रवाह में बाधा आनी शुरू हो जाती है। खून के थक्के या क्लॉट्ज ही कई मरीजों के मरने की वजह हो सकते हैं, क्योंकि कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि कोरोना संक्रमण से मरीज ठीक हो जाता है, लेकिन शरीर में ब्लड क्लॉट्स की समस्या बनी रहती है और हार्ट अटैक के कारण उसकी मौत हो जाती है।कोरोना वायरस ने दुनियाभर में मार्च माह में पैर पसारे। शुरुआती परीक्षण में वैज्ञानिकों ने पाया था कि खून के थक्के जमने के लक्षण अधिकतर मरीजों में देखने को मिल रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने यह भी पाया कि कुछ मरीजों के फेफड़ों में सैकड़ों की संख्या में माइक्रो क्लॉट भी पाए गए हैं। आमतौर पर डीप वेन थ्रोम्बोसिस के मामले पैरों में ही पाए जाते हैं। लेकिन अगर ये ब्लड क्लॉट्स जब शरीर के ऊपरी हिस्से में पहुंचना शुरू कर दें तो जानलेवा साबित हो सकते हैं। कई बार इन ब्लड क्लॉट्स के कारण हार्ट अटैक भी आ जाता है। लंदन के किंग्स कॉलेज अस्पताल के मुताबिक बीते कुछ सप्ताह के आंकड़ों का विश्लेषण करने में लगता है कि कोरोना संक्रमित मरीजों में खून का थक्का जमना एक बड़ी समस्या है। कोरोना संक्रमण के गंभीर केस में ही यह समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों में ब्लड क्लाट्स के मामले यूरोप में छपे आंकडे से कहीं ज्यादा 30 फीसदी तक हो सकते हैं।
 
इस तरह के निष्कर्ष मिलने के बाद अब वैज्ञानिक खून को पतला करने वाली दवाओं का भी ट्रायल कर रहे हैं, हालांकि यह दवाएं हमेशा कारगर साबित नहीं होती है। क्योंकि खून पतला होने की स्थिति में कई बार मरीजों में ब्लीडिंग की समस्या भी शुरू हो जाती है। एम्स के डॉ. अजय मोहन के अनुसार, जब तक कोरोना वायरस की दवा नहीं मिल जाती, इसके लक्षणों का इलाज की एकमात्र तरीका है। वहीं कोरोना वायरस जिस तरह से रंग बदल रहा है, टीका खोजने में मुश्किल आ रही है।
 

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