चीन ने मानसिक दबाव बनाने की शुरुआत कर 1962 युद्ध की याद दिलाई है लेकिन यह 2020 है और नेता नरेंद्र मोदी हैं। क्या है रणनीति ? जानिए

चीन की पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए भारत ने ऊंचे युद्ध क्षेत्र के अपने सैनिकों की संख्या लद्दाख में बढ़ा दी है। चीन लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) सेक्टर में भारत के बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण को रोकना चाहता है, क्योंकि इससे अक्साई चिन के लहासा-काशगर हाईवे को खतरा पैदा हो सकता है। ये विशेष भारतीय सैनिक चीन के तिबत्ती स्वायत्त क्षेत्र से परिचित हैं और ऊंचे दुर्गम युद्ध क्षेत्र में अपने काम को अंजाम देने में माहिर हैं। 

पीएलए ने यहां पर दो ब्रिगेड को तैनात किया है। इससे संकेत मिलता है कि इस कदम पर बिजिंग में मुहर लगाई गई है यह स्थानीय मिलिट्री कमांडर्स का फैसला नहीं हो सकता है। स्थिति की समीक्षा के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में हुई बैठक के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ”ऑस्ट्रेलिया से हांगकांग तक, ताइवान से साउथ चाइनी सी तक और भारत से अमेरिका तक लड़ाकू चीन हर कीमत पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है।”

पीएम मोदी की रणनीतिक बैठक में मौजूद तीन चेहरे तीन साल में दूसरी बार इस परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। नेशनल सिक्यॉरिटी अडवाइजर अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत और विदेश मंत्री एस जयशंकर। इसी टीम ने 2017 में डोकलाम में भारत की प्रतिक्रिया की रूपरेखा तैयार की थी। 73 दिनों तक भारत चीन के सामने डटा रहा और फिर यह टकराव शांतिपूर्ण तरीके से खत्म हुआ। तब जनरल विपिन रावत सेना प्रमुख थे और जयशंकर भारत के विदेश सचिव। 

मंगलवार की बैठक का संदेश 2017 के गतिरोध के दौरान भारत की प्रतिक्रिया का प्रतिबिंबित है, जब भारतीय सैनिक चीनी पक्ष द्वारा तेजी से लामबंदी के सामने अपने मैदान पर डटे रहे थे। भारत एलएसी पर आपसी मौजूदा प्रक्रिया के तहत सम्मान और बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है, लेकिन पीएम मोदी की ‘डोकलाम टीम’ को हर परिस्थिति के लिए तैयार रहने को कहा गया है। शुद्ध सैन्य भाषा में समझें तो डीबीओ सेक्टर चीन का प्रभुत्व जमाने वाला और अवरोधक रवैया भारत को बॉर्डर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से रोकना है। यह गर्मी इसके लिए आखिरी मौका है। 

सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति तैयार करने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ”डरबोक-श्योक-डीबीओ रोड इस साल पूरा हो जाएगा और इससे इलाके में तेजी से तैनाती की भारतीय क्षमता बढ़ जाएगी। यदि इस रोड प्रॉजेक्ट को ब्लॉक कर दिया जाता है तो भारतीय सेना के हवाई आपूर्ति और सनसोमा से मुर्गो होते हुए डीबीओ के लिए कठिन मार्ग का इस्तेमाल करना होगा। पिछले दो साल में पैंगोंग त्सो और गलवान इलाके में भारतीय सेना और पीएलए के बीच कई बार टकराव हुआ है। एक पूर्व सेना अध्यक्ष ने कहा, ”जैसे चीन ने भारत की ओर से बिना आपत्ति अपने दावे वाले क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया, चीन इस तरह भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण का विरोध कर रहा है जैसे नई दिल्ली का मकसद सैन्य था और बिजिंग ने टूरिज्म बढ़ाने के लिए किया हो।” उन्होंने संदर्भ दिया कि चीनी साइड में सभी मिलिट्री आउटपोस्ट पक्की सड़कों से जुड़े हुए हैं। 

इस बीच चीन अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को घूरकर डराना चाहता है और इसलिए पड़ोसी गिलगित बाल्टिस्तान में सैनिकों की आवाजाही शुरू की है। भारत अपने रुख से हिल नहीं सकता है, क्योंकि इससे चीन की सैन्य ताकत से विस्तारवादी सोच को बल मिलेगा। एक सीनियर कैबिनेट मंत्री ने कहा, ”चीन ने मानसिक दबाव बनाने की शुरुआत कर दी है। इसके मुखपत्र ने भारत को 1962 युद्ध की याद दिलाई है, लेकिन यह 2020 है और नेता नरेंद्र मोदी हैं।”

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