ब्यूरो,
संसद के विशेष सत्र के बीच सोमवार को कैबिनेट बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिल गई। इस विधेयक में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। इसके पहले महिला आरक्षण का मुद्दा संसद में 2010 में उठा था। तब देश में कांग्रेस की सरकार थी। महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पास हो गया था लेकिन लोकसभा में ऐसा नहीं हो सका। तब सदन में जिन नेताओं ने इस बिल का विरोध किया था उनमें समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव प्रमुख थे।
मुलायम सिंह ने पिछड़ा और मुस्लिम समाज की महिलाओं को आरक्षण देने की मांग उठाई थी और सदन में महिला आरक्षण बिल के खिलाफ बोले थे। अब जब एक बार फिर दोनों सदनों में बिल को लाने की तैयारी है तो सबकी निगाहें सपा के मौजूदा चीफ अखिलेश यादव पर टिकी हैं। हालांकि पार्टी की ओर से सांसद एसटी हसन ने रुख साफ करते हुए कहा है कि सपा बिल लाने के पक्ष में है लेकिन इसमें आरक्षण में आरक्षण होना चाहिए। दलित, मुस्लिम और पिछड़े समाज की महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने महिला आरक्षण को चुनाव आयोग की बजाए पार्टियों के स्तर पर लागू करने की भी सिफारिश की है।
एसटी हसन ने कहा है कि समाजवादी पार्टी हमेशा से महिलाओं का सम्मान करती रही है। पार्टी महिला आरक्षण लागू करना चाहती है लेकिन इसमें दलित, मुस्लिम और ओबीसी की महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए। साथ ही इसे चुनाव आयोग की बजाए पाटियों के स्तर पर लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कहीं ऐसा न हो जहां से हमारे बड़े-बड़े नेता चुनाव लड़ते हैं नाराजगी की वजह से उन्हें महिला आरक्षित घोषित कर दिया जाए। समाजवादी पार्टी सांसद एसटी हसन की बातों से साफ है कि पार्टी काफी हद तक अपने पुराने रुख और मांगों पर कायम है। साथ ही मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से शर्तों के साथ महिला आरक्षण के समर्थन में खड़ी दिख रही है। अब हम आपको बताते हैं कि 13 साल पहले लोकसभा में महिला आरक्षण बिल को लेकर मुलायम सिंह यादव ने क्या कहा था।
तब सपा के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की ओर इशारा करते हुए बोले थे, ‘आप तो चेयरपर्सन हैं, वो पहले से बनी हैं, मुझसे भी पहले से रही हैं। समाज को जोड़कर चलेंगे तो लोकतंत्र मजबूत होगा। सद्भावना बढ़ेगी। लेकिन जो आगे निकल गए उन्हीं को आगे बढ़ाने की बात हो रही है। जो पीछे रह गए, उन्हें पीछे धकेलने की बात हो रही है। दलित, पिछड़ा, मुसलमानों की महिलाओं को आरक्षण दीजिए। सब मिलकर समाज में चलें। विषमता को खत्म किए बिना लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा। देश की आजादी में गरीब-मजदूर सभी एक हो गए थे। ये आरक्षण किस महिलाओं का हो रहा है? हम महिला आरक्षण के विरोधी नहीं है, लेकिन जिस तरह से कानून आ रहा है, उसमें संशोधन करिए।’
मुलायम सिंह के अलावा तब कुछ अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी महिला आरक्षण का विरोध करते हुए कहा था कि इसमें दलित, ओबीसी, आदिवासी महिलाओं को भी मिले। उनका 15-16 प्रतिशत हिस्सा तय होना चाहिए। आरक्षण के अंदर आरक्षण के इस मुद्दे की गूंज एक बार फिर सुनाई पड़ने लगी है। केंद्र सरकार महिला आरक्षण बिल को वर्ष 2010 में राज्यसभा में पारित बिल से अलग स्वरूप में लेकर आएगी। वर्ष 2010 में यूपीए सरकार के दौरान उच्च सदन में पारित बिल लोकसभा में नहीं लाया जा सका था।
करीब 27 सालों से लंबितमहिला आरक्षण विधेयक संसद के पटल पर आएगा। इस पर दोनों सदनों की मुहर जरूरी होगी। लोकसभा में सरकार के पास पूर्ण बहुमत है, जबकि राज्यसभा में भी कांग्रेस सहित कई दलों के समर्थन के चलते इस बार राह मुश्किल नहीं लगती। हालांकि, सपा और राजद जैसे दल अब भी इस का विरोध कर रहे हैं। विशेष सत्र बुलाए जाने की खबर के बाद से महिला आरक्षण बिल को लेकर कयास लगाए जा रहे थे। कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दे दी है। संभावना जताई जा रही है कि महिला आरक्षण विधेयक के भीतर एससी-एसटी और ओबीसी महिलाओं को आरक्षण का प्रावधान भी किया जा सकता है।