ब्यूरो,
सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण की मांग वाली याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार कों नोटिस जारी किया है। केरल के एक ट्रांसजेंडर शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। इसी तरह की याचिका पर जवाब देते हुए केंद्र सरकार पहले कह चुका है कि शैक्षणिक संस्थानों या फिर नौकरियों में पहले से मौजूद आरक्षण का लाभ उठाया जा सकता है। हालांकि कोई नया आरक्षण नहीं दिया जा रहा है।
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रलाय के सचिव ने हलफनामा दायर कर कहा था कि एससी/एसटी/एसईबीसी समुदायों से संबंधित पहले से ही आरक्षण के अधिकारी हैं। इसके अलावा 8 लाख रुपये की वार्षिक पारिवारिक आय वाले अन्य वर्ग के ट्रांसजेंडर भी ईडब्लूएस श्रेणी के तहत आरक्षण में शामिल हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों से पूछा कि क्या संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 21 के तहत ट्रांसजेंडरों को आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए? यह याचिका सुबी केसी नाम के ट्रांसजेंडर शख्स ने दायर की थी और कहा था कि ट्रांसजेंडरों को भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का आदेश जारी किया जाना चाहिए।
सुबी ने कई उदाहरण देते हुए बताया था कि समाज में ट्रांसजेंडर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर पिछड़े हुए हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि सामाजिक ताने-बाने में फंसे इस वर्ग के हित में जल्द से जल्द फैसला किया जाना चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2014 के नालसा बनाम भारत सरकार फैसला का जिक्र करते हुए कहा कि सरकारों ने उसका सम्मान नहीं किया जबकि फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पिछड़े वर्ग में रखने को कहा गया था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में इसी साल एक अवमानना नोटिस भी जारी किया था।