हिमाचल में 37 साल पुराना ‘रिवाज’, क्या इस बार होगा नए दौर का आगाज? समझें BJP की तैयारी

ब्यूरो,

इस बार के चुनाव में भाजपा नई इबारत लिखने का मन बना चुकी है। भाजपा के कदम से साफ है कि वह राज्य में 1985 से चल रहे ‘रिवाज’ को खत्म करने की कोशिश में है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार का शोर थम चुका है। 12 नवंबर को 68 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग होनी है और 8 नवंबर को ताजपोशी। इस बार के चुनाव में भाजपा नई इबारत लिखने का मन बना चुकी है। भाजपा के कदम से साफ है कि वह राज्य में 1985 से चल रहे ‘रिवाज’ को खत्म करने की कोशिश में है। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी का मानना है कि भाजपा का यह मिशन फेल हो जाएगा और रिवाज बदस्तूर जारी रहेगा। क्या है यह रिवाज और भाजपा की वो तैयारी जो इस बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव को और भी रोचक बना रही है।

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी की जिज्ञासा उस रिवाज को बदलने पर टिकी है। क्या इस बार फिर पिछली बार की तरह मोदी का मैजिक चलेगा या कांग्रेस का प्रियंका वाड्रा ‘एक्सपेरिमेंट’का जादू। इस बार राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में बिजी हैं तो कांग्रेस की कमान उनकी बहन प्रियंका गांधी के हाथों में है। प्रियंका ने यहां तीन से चार रैलियां भी की है। हालांकि चुनाव प्रचार के आखिरी दिन शिमला में प्रियंका का रोड शो प्रस्तावित था लेकिन वो खराब मौसम की वजह से नहीं पहुंच पाई।

दरअसल, साल 1985 से हिमाचल में किसी भी पार्टी ने सरकार रिपीट नहीं की है। यूं कह सकते हैं कि जनता जनार्धन भाजपा हो या कांग्रेस किसी को भी सत्ता में रिपीट नहीं करने देती। 1985 में 52 सीटों के साथ कांग्रेस सत्ता में आई थी। 1990 में भाजपा ने 46 सीट जीतकर सरकार बनाई थी। उसी तरह 1993 में कांग्रेस, 1998 में भाजपा, 2003 में कांग्रेस, 2007 में प्रेम कुमार धूमल ने भाजपा की वापसी कराई थी। उसी तरह 2012 में कांग्रेस और फिर 2017 में भाजपा धूमल के चेहरे पर चुनाव जीता लेकिन सीएम जयराम ठाकुर बनाए गए।

इस बार विधानसभा चुनाव में 37 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ने के लिए भाजपा ने हालांकि मोदी मैजिक का सहारा लिया है लेकिन, एक और बात है जो हिमाचल में भाजपा की सत्ता में वापसी करा सकती है। इस बार भाजपा ने दिग्गजों के टिकट काटकर बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है। भाजपा ने एक मंत्री समेत 11 सिटिंग विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मौका दिया है। भाजपा का इस पर हालांकि तर्क है कि ग्राउंड पर नेताओं के काम के आधार पर टिकट का आवंटन किया गया है। 

भाजपा पहले ही साफ कर चुकी है कि अगर चुनाव जीतने की गारंटी नहीं तो उसे टिकट नहीं दिया जाएगा। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी साफ कर चुके हैं कि क्षेत्र में जनता का फीडबैक लेने के बाद टिकट का आवंटन किया गया है। भाजपा हर हाल में हिमाचल में सरकार रिपीट करना चाहती है।

2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के दिग्गजों को चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज कैबिनेट मंत्रियों को हार झेलनी पड़ी थी। जिसमें कौल सिंह ठाकुर, जीएस बाली, सुधीर सिंह बाली, ठाकर सिंह बरमौरी शामिल हैं। वहीं, भाजपा की ओर से प्रेम कुमार धूमल, जिनके चेहरे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा, अपनी सीट हार गए। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। 

पार्टियां जानती हैं कि जनता जनार्धन को अगर काम पसंद नहीं आया तो चेहरा कितना बड़ा हो, साइड करने में ज्यादा देरी नहीं लगाएगी। यही वजह है कि इस बार भाजपा ने टिकटों का आवंटन बड़ी सावधानी से किया है।

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