ज्‍योति हत्‍याकांड:आठ साल बाद ऐसे मिला इंसाफ तक पहुंचा

ब्यूरो,

कानपुर के बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड के आठ साल बाद फैसला आ गया। पति पीयूष श्यामदासानी और उसकी प्रेमिका मनीषा मखीजा समेत छह अभियुक्तों को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है।

कानपुर के बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड के आठ साल बाद पति पीयूष श्यामदासानी और उसकी प्रेमिका मनीषा मखीजा समेत छह अभियुक्तों को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमें पीयूष का कार चालक अवधेश चतुर्वेदी, रेनू कनौजिया, सोनू कश्यप व आशीष कश्यप भी शामिल है। सभी पर 2.18 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। जुर्माने की आधी धनराशि ज्योति की मां को दी जाएगी। अदालत ने पीयूष की मां पूनम, भाई मुकेश और चचेरे भाई कमलेश को गुनाह साबित न होने पर बरी कर दिया। आठ साल के संघर्ष के बाद मिले न्याय पर ज्योति के पिता शंकर नागदेव की आंखों से आंसू छलक पड़े।

ज्‍योति हत्‍याकांड को इंसाफ के मुकाम तक पहंचाने के लिए पुलिस को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं था। कत्ल सीसी कैमरे में कैद नहीं हुआ। रात के अंधेरे में अपराध हुआ था। कोई मौके पर पकड़ा नहीं गया। कत्ल का एक मास्टमाइंड खुद वादी था। कातिल प्रेमी-प्रेमिका दोनों करोड़पति खानदानों के थे। वे सबूतों-गवाहों को प्रभावित कर सकते थे। ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में उन्हें उम्रकैद दिलाना आसान नहीं था लेकिन पुलिस ने शुरुआत से ही जांच में वैज्ञानिक आधार तैयार किए। वैज्ञानिक सबूत जुटाए तो अंतत रसूखदार कुनबों के कातिल जिंदगी भर को जेल पहुंच गए हैं। यहां तक पहुंचने के लिए पुलिस ने 13 हजार कॉल डिटेल छानीं। 22 सीसी कैमरों की घंटों की फुटेज खंगालीं। 12 सिम के अलाट होने से इस्तेमाल होने तक का सफर पकड़ा। जिस पर शक हुआ, गूगल मैप पर उसकी लोकेशन टैग कराई। डिलीट हो चुके 2200 मैसेज पुनर्जीवित कराए।

लड़ाई इलेक्ट्रानिक सबूतों से जीती पीयूष पर शक होते ही पुलिस ने सबसे पहले उसके मोबाइल की छानबीन की। वहां से वह भाड़े के हत्यारों और मनीषा मखीजा तक पहुची। घर से कत्ल के मौके के बीच के पांच बीटीएस के 80 हजार मोबाइल के डाटा में से 13 हजार कॉल की गहरी छानबीन की गई। जांच में पता चला कि पिछले कुछ महीनो में पीयूष मनीषा के बीच 5500 कॉल हुईं। 2200 मैसेज हुए, जो बाद में डिलीट कर दिए गए।

पुलिस और गहराई में गई तो कत्ल के दिन 27 जुलाई को ही दोनों के बीच 18 बार में 7045 सेकेंड यानी 117 मिनट बात हुई थी। दोनों ने छद्म नामों से सिम ले रखे थे। पुलिस ने इनका इतिहास निकाला। चार कंपनियों से डाटा जुटाया। रेस्टोरेंट वरांडा व बाहर से 27 जुलाई के आठ सीसीटीवी फुटेज लिए। 24 जुलाई के मॉल के छह सीसीटीवी कैमरों से एंट्री व चाकू खरीदने के नौ फुटेज जुटाए। फुटेज को साफ्टवेयर के जरिए और साफ कराया गया। मोबाइल से डिलीट मैसेज रिकवर कराए। ये परिस्थितिजन्य सबूत थे पर इनका वैज्ञानिक आधार ने इन्हें अकाट्य बना दिया।

ज्योति हत्याकांड में तत्कालीन इंस्पेक्टर स्वरूप नगर राजीव द्विवेदी ने चार्जशीट लगाई थी। शुक्रवार को आरोपितों को सजा सुनाई गई, तो राजीव द्विवेदी को मेहनत सार्थक महसूस हुई। अब वह डिप्टी एसपी एटीएस हैं और लखनऊ में तैनात हैं। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से बातचीत में उन्होंने कहा-विवेचना बहुत बिखरी हुई थी। रसूखदार लोग दबाव बना रहे थे। कुछ भी साबित करना और कातिलों के आपस में संबंध पुष्ट करना पेचीदा था। तत्कालीन एसपी ईस्ट प्रभाकर चौधरी विवेचना की मॉनीटरिंग कर रहे थे। बड़े लोग जानना चाहते थे कि आखिरकार केस डायरी में पुलिस कर क्या रही है, पर मैंने भी ठान लिया था कि जब तक चार्जशीट दाखिल नहीं कर देता, केस डायरी पता नहीं लगने देंगे। यही मैंने किया। कोई नहीं जान पाया था कि पुलिस केस डायरी में किन तथ्यों को लेकर आ रही है।

वर्तमान एडीजी आशुतोष पांडेय ज्योति हत्याकांड के वक्त कानपुर के आईजी थे। घटना के बाद ऐसे कई मौके आए थे, जब पुलिस विवेचना को लेकर सवालों के घेरे में घिरी परउन्होंने ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनाई कि किसी प्रकार का कोई खेल न हो सका। सजा का फैसला होने उन्होंने कहा कि पुलिस ने विवेचना के स्तर को गिरने नहीं दिया। तब पूरे दिन जांच और विवेचना में जो भी नतीजे निकलते थे, उसपर रात में डीआईजी आरके चतुर्वेदी व टीम के साथ मिलकर चर्चा करते थे। बैठक देर रात नियमित तौर पर होती थी। वैज्ञानिक साक्ष्यों को इकट्ठा किया जाता था और फिर रिपोर्ट लैब से मंगाने को लेकर लगातार पत्राचार होता था। चार्जशीट ऐसी तैयार कराई गई कि एक मामूली आदमी भी उसे देख ले तो एक बार में समझ जाए कि घटना क्या थी और आरोपितों के आपस में संबंध कैसे उजागर हुए।

कोर्ट में पेश होने से पहले ही ज्योति का कातिल पति पीयूष फफक कर रो पड़ा। कोर्ट परिसर में जब उसे वाहन से लाया जा रहा था, तभी सहमा हुआ लग रहा था। कोर्ट परिसर में बनी बिल्डिंग की सीढ़ियों पर पहुंचा तो और रुआंसा हो गया। उसे हिरासत में लेकर चलने वाले सिपाहियों ने संभाला और समझाया। कोर्ट में फैसला सुनने के लिए कहा।

कोर्ट की सीढ़ियों पर जब चढ़ रहा था तो फैसले में मिलने वाली सजा को लेकर आशंकित था। उसे आभास था कि सजा में किसी तरह की राहत नहीं मिलेगी। बड़ी सजा मिलने का डर सता रहा था। यह बात उसने सिपाहियों के से साझा भी की थी। सीढ़ियां चढ़ते समय वह रो पड़ा, हालांकि सिपाहियों ने उसे किसी तरह का समय नहीं दिया और तेज रफ्तार चलते हुए लेकर कोर्ट में आए। बाहर निकलने पर चेहरे पर दिख रहा था तनाव पीयूष जब कोर्ट से बाहर निकला तो उसके चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था। अधिवक्ता ने उच्च अदालत में अपील की बात कहकर समझाया भी। एडीजे कोर्ट के भीतर वह असहज नजर आया। फैसला सुनने के बाद उसने नजरें झुका लीं। थोड़ी ही देर बाद पुलिस कस्टडी में उसे जेल भेज दिया गया। ले जाते वक्त भी सिपाहियों ने उसे तेज चलने को कहा।

नीचे नजरें गड़ाए रही मनीषा मखीजा मनीषा मखीजा ने न तो कोर्ट के बाहर और न ही कोर्ट के भीतर सिर उठाया। वह लगातार नीचे नजरें गड़ाए रही। कोर्ट में उसकी पीयूष से नजरें जरूर मिलीं। फैसला सुनने के बाद भी एक बार पीयूष को देखा। पीयूष की आंखें कुछ इशारा कर रहीं थीं। यह कोई और नहीं समझ सका।

ज्योति हत्याकांड से जुड़े फर्जी सिम कार्ड के सबूत अहम माने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि फर्जी सिम कार्ड के साक्ष्य केस की दिशा तय करेंगे। इस मामले में अभियुक्त पीयूष व मनीषा के बीच फर्जी सिम के बीच सीडीआर भी महत्वपूर्ण है।

पीय़ूष के खिलाफ 5 अगस्त 2014 को एक मामला स्वरूपनगर थाना में फर्जी सिम कार्ड का दर्ज हुआ था। पीयूष को फर्जी आईडी पर दो सिम कार्ड देने के आरोप में मोबाइल शाप मालिक गोविंदनगर नौरैयाखेड़ा गजेंद्र को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया था। गजेंद्र पीयूष की बिस्कुट फैक्ट्री में नौकरी भी करता है। यह मामला कूट रचित दस्तावेज के जरिए सिम कार्ड हासिल करने के आरोप में दर्ज किया गया था। सिम लेने को लगी वोटर आईडी फर्जी मिली मामले की छानबीन में आया था कि ज्योति की हत्या से कुछ समय पहले पीयूष ने बांदा के ग्राम खौड़ा निवासी शंकर की वोटर आईडी का इस्तेमाल कर सिम लिए थे। इस आईडी का वेरिफिकेशन किए बिना ही गजेंद्र ने एक निजी कंपनी के दो सिम कार्ड पीयूष को जारी कर दिए। एक सिम को गजेंद्र ने अपनी शॉप के मोबाइल से एक्टिवेट किया था जबकि दूसरा सिम हत्यारोपी मनीषा मखीजा के मोबाइल से एक्टिवेट हुआ था। 

इससे साफ जाहिर है कि मनीषा का सिम गजेंद्र की शॉप पर ले जाया गया था। दोनों सिम कार्डों में एक मनीषा और दूसरा पीयूष इस्तेमाल कर रहे थे। पुलिस ने यह भी संदेह जताया था कि ज्योति मर्डर केस में साजिश रचने में हुई बातचीत में इन सिम कार्डों का इस्तेमाल हुआ है। जिस वोटर आईडी पर सिम जारी हुए थे, उसकी जांच में डीएम बांदा और खौड़ा गांव के प्रधान की रिपोर्ट आई थी। इसमें लिखा था कि इस नाम का कोई भी व्यक्ति गांव में नहीं रहता। वोटर आईडी फर्जी है। फोटो भी फर्जी लगी है। इस मामले में धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने का मामला दर्ज हुआ है।

कब क्या हुआ

-27 जुलाई 2014 को ज्योति की चाकू से गोदकर हत्या की गई थी
-30 जुलाई 2014 को पीयूष को जेल भेजा गया था
-7 सितंबर 2017 को पीयूष की पहली जमानत याचिका हाईकोर्ट से खारिज हुई
-31 जुलाई 2019 को पीयूष की दूसरी जमानत्ा याचका खारिज हुई
-15 अक्टूबर 2020 को हाईकोर्ट ने पीयूष को जमानत दे दी थी
-8 अक्टूबर 2020 को फर्जी सिम से धोखाधड़ी मामले में हाईकोर्ट से उसे जमानत मिल गई थी
-20 अक्टूबर 2022 को पियूष उसकी प्रेमिका मनीषा सहित 6 को दोषी करार दिया गया

ज्योति हत्याकांड का फैसला उलझाऊ मामलों पर नीर-क्षीर विवेक वाले फैसलों में गिना जाएगा। इसकी सुनवाई में अभियोजन और बचाव पक्ष ने जबरदस्त तर्क दिए। हर तर्क को कानून की कसौटी पर परखा ही नहीं गया, उससे संबंधित नजीरें भी सुप्रीम और हाईकोर्ट के फैसलों से निकालीं। उनके आधार पर तर्क स्वीकार या खारिज किए गए। फैसले में ऐसे कुल 42 नजीर फैसलों का जिक्र शामिल किया गया है।

इस केस में बचाव पक्ष का तर्क था कि ज्यादातर साक्ष्य परिस्थिति जन्य साक्ष्य हैं। इनके आधार पर मुवक्किल को कातिल नहीं माना जा सकता। इस तर्क पर हरेन्द्र नारायण सिंह बनाम बिहार राज्य का सुप्रीम कोर्ट में चले मुकदमे के फैसले के पेज नंबर 1842 का संदर्भ दिया गया। इसमें कोर्ट ने कहा है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर हत्या के केस में अभियुक्त गलत स्पष्टीकरण दे तो इसे उसके विरुद्ध अतिरिक्त कड़ी के रूप में देखा जाएगा।

इसी तरह त्रिमुख मारुति करकन बनाम महाराष्ट्र राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला है कि पत्नी की हत्या में उसे चोट कैसे लगी, उसे बचाया क्यों नहीं जा सका, यह बताने में पति का झूठ पकड़ा जाए तो वह महत्वपूर्ण तथ्य है। पीयूष के केस में यही हुआ भी है। इनके अलावा मुख्य रूप से अनवार पीवी बनाम पीके बशीर, अर्जुन पंडित बनाम कैलाश कुशनराव, शफी बनाम हिमाचल राज्य मेरू सिंह बनाम राजस्थान राज्य जैसे 42 फैसलों के संदर्भ शामिल हुए।

अभियोजन पक्ष ने कहा कि यह जघन्यतम अपराध है। ज्योति की नृशंस हत्या की गयी है। इससे पूरा समाज द्रवित है। ऐसी सजा निर्धारित की जाए कि समाज में एक सन्देश जाए। मुख्य अभियुक्त पीय़ूष के साथ सभी को मृत्यु दण्ड दिया जाए। लेकिन कोर्ट ने इसे विरल में विरलतम केस नहीं माना। अभियोजन पक्ष ने महेश बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश (1987) 3 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 80 पृष्ठ प्रस्तुत कर तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक महिला की नृशंस हत्या में अभियुक्तों को फांसी की सजा दिया जाना उचित ठहराया था। एक अन्य मामले कुंजुकुंजु बनाम स्टेट आफ केरला (1979) 3 सुप्रीम कोर्ट केस के 646 पृष्ठ दाखिल किए। मच्छी सिंह और अन्य बनाम स्टेट आफ पंजाब, 1983 ए.आई.आर. पेज 957 का फैसला का भी हवाला दिया।

पीयूष के अधिवक्ता सईद नकवी ने तर्क दिया कि अभियुक्त सभ्रान्त परिवार का है। यह उसका प्रथम अपराध है। इससे पूर्व वह न तो किसी अपराध में दोषसिद्ध हुआ है और न ही उसका कोई आपराधिक इतिहास है। अत उसे कम से काम दण्ड से दण्डित किया जाए। अभियुक्ता मनीषा मखीजा के अधिवक्ता ने तर्क रखा कि वह अविववाहित और सभ्रान्त परिवार से सम्बन्धित है। यह प्रथम अपराध है। उसे कम से कम दण्ड से दण्डित किया जाए। अभियुक्त आशीष कश्यप के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वह गरीब है और उसके पिता जी अत्यन्त बीमार है। घर का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति है। उसे कम से कम दण्ड दिया जाए। अवधेश व सोनू कश्यप के सुरेश सिंह चौहान एवं अखिलेश उर्फ रेनू के अधिवक्ता ने अभिय़ुक्तों की गरीबी का तर्क दिया।

अदालत से आजीवन कारावास की सजा के बाद हत्यारे पीयूष का नया पता बैरक नंबर 15 होगा। उसकी माशूका मनीषा बैरक नंबर 4 में जिंदगी गुजारेगी। सजा के बाद जेल पहुंचे सभी छह अभियुक्तों की आंखों में रात कटी। उन्होंने जेल में खाना भी ठीक से नहीं खाया। सभी को सामान्य बैरक में रखा गया है।

गुरुवार को आरोप तय होने के बाद सभी आरोपितों को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था। जेल अधीक्षक डॉ. बीडी पाण्डेय ने बताया कि पुरुष आरोपितों को अलग-अलग बैरकों में रखा गया है ताकि जेल में आपस में लड़ाई-झगड़ा न कर सकें। वहीं मनीषा को महिला बैरक में रखा गया है। महिला बंदी बोली, तू बिटिया को खा गई जेल सूत्रों के मुताबिक महिला बैरक में जब मनीषा मखीजा पहुंची तो दूसरी महिला बंदियों ने उसको लानतें देनी शुरू कर दीं। महिला बंदियों ने उसे अपशब्दों के साथ कहा, तू तो बहुत बड़ी वाली निकली। एक बिटिया को खा गई। महिला बंदियों के ताने सुनने के दौरान मनीषा बैरक में चुप बैठ गई।

करवट बदलते गुजरी रात जेल सूत्रों के मुताबिक पीयूष और मनीषा मखीजा जेल में ठीक से सो नहीं पाए। दोनों की करवट बदलते ही रात गुजरी। पीयूष ने दो रोटी और मनीषा ने सिर्फ पानी पीकर रात गुजारी। दोनों ने किसी से बात नहीं की।

27 जुलाई 2014 को पांडुनगर निवासी ज्योति के अपहरण की झूठी कहानी हत्यारे पीयूष ने स्वरूप नगर थाने में सुनाई थी। लगभग दो घंटे बाद पनकी में ज्योति का खून से लथपथ शव पीयूष की ही कार में मिला था। पुलिस ने शक होने पर शिकंजा कसा तो असलियत सामने आ गई। कड़ाई से पूछताछ में खुलासा हुआ कि पीयूष ने अपनी प्रेमिका मनीषा मखीजा के साथ मिलकर भाड़े के हत्यारों से ज्योति की हत्या करवाई और बाद में लूट व अपहरण की वारदात दर्शाने की कोशिश की।

जेल में कई ऐसे बंदी हैं, जो पीयूष संग पहले भी जेल में बंद रहे हैं। पीयूष की जमानत के बाद भी वह जेल में ही थे। उनसे दोबारा मुलाकात पीयूष से हुई। उनमें से चार बंदियों ने पीयूष को ताने मारते हुए कहा कि जो तूने किया है। उसका दंड तो मिलना ही था।

ज्योति हत्याकांड के गवाहों में एक ज्योतिषी और सबूतों में एक अभिमंत्रित अंगूठी भी शामिल की गई। अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष से ज्योतिषी त्रिवेणी शंकर दीक्षित पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वह पीयूष के पिता ओमप्रकाश श्यामदासानी को जानते हैं। उनके पूरे परिवार की हस्तरेखाएं देख कर उन्होंने कई तरह के परामर्श भी दिए थे। पीयूष की मां पूनम ने बहू ज्योति का हाथ भी दिखाया। रेखाओं से साफ था कि उसका दांपत्य जीवन ठीक नहीं है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि पूनम ने भी तस्दीक की थी कि पीयूष और ज्योति के बीच अच्छे रिश्ते नहीं हैं। य्मैंने इसके उपाय बताए और ज्योति को एक अभिमंत्रित अंगूठी भी पहनाई थी। बाद में उस अंगूठी की शिनाख्त स्वरूप नगर थाने में मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में करवाई गई।
 

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