ब्यूरो,
बसपा प्रमुख मायावती ने मंगलवार को तीन ट्वीट के जरिए विपक्ष को विरोध प्रदर्शन से रोकने को लेकर योगी सरकार की आलोचना की थी। एक दिन बाद ही उन्होंने सपा पर हमला बोलते हुए उसे लाचार-कमजोर पार्टी बताया है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को नाम लिए बगैर अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के समर्थन में ट्वीट किया तो राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की अटकलें लगने लगीं। कहा जाने लगा कि सपा और बसपा के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने लगी है। राजनीतिक गलियारों में तीन साल बाद अखिलेश को मिले मायावती के इस समर्थन को लेकर 2024 में दोनों के एक बार फिर साथ आने की अटकलें तक लगने लगीं लेकिन एक दिन बाद ही मायावती ने अखिलेश पर फिर हमला बोलकर ऐसी किसी सम्भावना पर पानी फेर दिया है। मायावती ने एक के बाद एक दो ट्वीट कर सपा को लाचार-कमजोर और बीजेपी से लड़ने में नाकाम पार्टी बताया और कहा कि सरकार जो कुछ कर रही है उसके लिए वही जिम्मेदार है।
मायावती ने अपने पहले ट्वीट में लिखा- ‘भाजपा की घोर जातिवादी, साम्प्रदायिक व जनहित-विरोधी नीतियों आदि के विरुद्ध उत्तर प्रदेश की सेक्युलर शक्तियों ने सपा को वोट देकर यहां प्रमुख विपक्षी पार्टी तो बना दिया, किन्तु यह पार्टी भाजपा को कड़ी टक्कर देने में विफल साबित होती हुई साफ दिख रही है, क्यों?’ बसपा सुप्रीमो यहीं नहीं रुकीं।
अपने अगले ट्वीट में उन्होंने लिखा- ‘यही कारण है कि भाजपा सरकार को यूपी की करोड़ों जनता के हित और कल्याण के विरुद्ध पूरी तरह से निरंकुश, जनविरोधी सोच व कार्यशैली के साथ काम करने की छूट मिली हुई है। विधान सभा में भी भारी संख्या बल होने के बावजूद सरकार के विरुद्ध सपा काफी लाचार व कमजोर दिखती है, अति-चिन्तनीय।’
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटीं मायावती पिछले कुछ दिनों से बीजेपी की बी टीम वाले नेरेटिव को लेकर अत्यधिक सतर्क हो गई हैं। वह इस नेरेटिव को तोड़ने के साथ-साथ जनता को यह संदेश देना चाहती हैं कि यूपी में बीजेपी से यदि कोई लड़ सकता है तो वो बसपा ही है। यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों में बसपा की करारी हार के बाद भी मायावती ने बीजेपी की जीत के लिए मुस्लिम समाज के एकतरफा समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान करने को जिम्मेदार ठहराया था। दरअसल, मायावती बीजेपी विरोधी वोटों में बीएसपी की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए लगातार जतन कर रही हैं। उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सपा-बसपा के उस गठबंधन का ज्यादा लाभ बसपा को मिला था लेकिन इस बार मायावती के सामने अकेले मैदान में जाने की चुनौती है। जाहिर है वह नए समीकरण तैयार करने के लिए काफी सोच-समझकर एक-एक कदम आगे बढ़ा रही हैं।
यूपी विधानसभा के मॉनसून सत्र के पहले दिन सोमवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की अगुवाई में उनकी पार्टी के विधायकों ने कई मुद्दों को लेकर पैदल मार्च निकाला था। पुलिस ने उन्हें विधानसभा पहुंचने से पहले ही रोक दिया था। तब अखिलेश यादव विधायकों के साथ रास्ते में धरने पर बैठ गए थे। उन्होंने वहीं पर डमी सदन चलाया था। बसपा सु्प्रीमो मायावती ने एक के बाद एक तीन ट्वीट किए। इसमें उन्होंने बीजेपी सरकार पर तीखा हमला किया। वहीं सपा के लिए वह नरम नज़र आईं।
उन्होंने कहा था कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों, उसकी निरंकुशता और जुल्म आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना बीजेपी सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है। साथ ही बात-बात पर मुकदमे और लोगों की गिरफ्तारी और विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारण अति-घातक है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन टूटने के बाद यह पहली बार था जब मायावती किसी मुद्दे पर सपा का समर्थन करती दिखीं और उन्होंने खुलकर योगी सरकार पर हमला बोला। इस वजह से यहां तक कयास लगाए जाने लगे कि क्या 2024 में सपा-बसपा फिर साथ आ सकती हैं लेकिन एक दिन बाद ही मायावती ने सपा को कमजोर-लाचार पार्टी बताकर ऐसे कयासों पर विराम लगा दिया है।