ब्यूरो
डॉन ब्रजेश सिंह के 14 साल बाद जेल से बाहर आने के बाद एक बार फिर मुख्तार अंसारी गैंग से आमना-सामना की आशंका जताई जा रही है। मुख्तार अंसारी ने राजनीतिक हैसियत के कारण ब्रजेश को कई बार मात दिया था।
डॉन ब्रजेश सिंह के 14 साल बाद जेल से बाहर आने के बाद एक बार फिर मुख्तार अंसारी गैंग से आमना-सामना की आशंका जताई जा रही है। 90 के दशक में मुख्तार अंसारी ने अपनी राजनीतिक हैसियत का इस्तेमाल कर ब्रजेश सिंह को कई बार मात दिया था। इसके बाद ब्रजेश ने भी राजनीतिक रसूख हासिल करने के लिए कृष्णानंद राय का साथ पकड़ा। इसी के बाद अदावत इतनी बढ़ी कि यूपी का सबसे खौफनाक हत्याकांड अंजाम दिया गया था।
भाजपा विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था। गाजीपुर में 2005 में हुए सनसनीखेज हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को 14 दिनों तक वाराणसी में धरना देना पड़ा था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी बनारस आना पड़ा था।
2001 में ब्रजेश सिंह को लगा कि वह मुख्तार अंसारी का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। इसका बड़ा कारण था राजनीतिक रसूख की कमी। उस समय मुख्तार अंसारी राजनीति में आ चुका था और पुलिस वालों को उसकी सुननी पड़ती थी। इससे ब्रजेश को नुकसान हो रहा था और गैंग भी कमजोर पड़ रहा था। उसरी चट्टी कांड (जब मुख्तार अंसारी पर हमला हुआ) के बाद ब्रजेश ने राजनीतिक मुकाबले के लिए कृष्णानंद राय का साथ पकड़ा।
धर मुख्तार अंसारी पर हुए हमले से उसका गैंग ब्रजेश सिंह को किसी भी स्थिति में बढ़ते नहीं देखना चाहता था। ब्रजेश सिंह से पहले कृष्णानंद राय को ही रास्ते से हटाने की खौफनाक साजिश रची गई। यह एक ऐसी साजिश थी जिसने यूपी में उस समय की सबसे क्रूर गैंगवार कराई थी।
2005 में कृष्णानंद राय के काफिले को घेरकर करीब 500 राउंड फायरिंग हुई। कृष्णानंद राय सहित सभी 7 लोग मार दिए गए। हालांकि यह भी कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी के इलाके में उनके भाई अफजाल अंसारी को हराकर कृष्णानंद राय का विधायक बनना कबूल नहीं था। इस वजह से हत्याकांड को अंजाम दिया गया था।
29 नवंबर 2005 को गाजीपुर के भांवरकोल थाना अंतर्गत सियाड़ी गांव में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय सहित सात लोगों पर एके-47 जैसे अत्याधुनिक असलहों से फायरिंग कर उनकी हत्या के बाद जमकर बवाल हुआ। सातों लोगों का शव पोस्टमार्टम के लिए बीएचयू लाया जाने लगा तो भाजपा विधायक के समर्थक उग्र हो गए थे और जगह-जगह तोड़फोड़ व हिंसा की गई थी।
भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद बलिया से लेकर मऊ, गाजीपुर और बनारस तक उनके समर्थकों में एक हफ्ते तक जबरदस्त गुस्सा देखने को मिला था। अपने नेता की सनसनीखेज हत्या को समर्थक पचा नहीं पा रहे थे। नृशंस हत्याकांड के विरोध में समर्थकों ने जगह-जगह आगजनी, तोड़फोड़ और हिंसा की थी।
वाराणसी में समर्थकों ने कई इलाकों में जमकर उपद्रव किया था। समर्थकों का आक्रोश देखते हुए कई निजी स्कूल और कॉलेज कुछ दिनों के लिए बंद कर दिए गए थे। इसके साथ ही गाजीपुर और बनारस में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया था।
समर्थक भाजपा विधायक कृष्णानंद राय का पोस्टमार्टम कराने के लिए ही नहीं तैयार हो रहे थे लेकिन किसी तरह से पुलिस ने उन्हें समझा कर मनाया था। इस दौरान गुस्साए समर्थकों को काबू कर पाना पुलिस के लिए खासा मुश्किल साबित हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार सातों लोगों के शरीर से 67 गोलियां निकाली गई थीं।
कृष्णानंद राय सहित सात लोगों की हत्या की गूंज पूर्वांचल के साथ ही दिल्ली तक सुनाई दी थी। सनसनीखेज हत्याकांड के विरोध में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वाराणसी जिला मुख्यालय पर 14 दिन तक धरने पर बैठे थे। तत्कालीन सपा सरकार प्रदेश की पुलिस की जांच रिपोर्ट को सही ठहरा रही थी और भाजपा पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने पर अड़ी थी। इस दौरान जिला मुख्यालय पर राजनाथ सिंह का धरना खत्म कराने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आए और कहा था कि वह न्याय के लिए जनता के पास जाएंगे।
कृष्णानंद राय के भांवरकोल ब्लॉक के सियाड़ी गांव में आयोजित एक स्थानीय क्रिकेट प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए थे। वह मैच का उद्घाटन कर वापस आ रहे थे, तभी बसनिया चट्टी के पास पहले से घात लगाए हमलावरों ने उनके काफिले को घेर लिया और एके-47 से फायर झोंक दिया। फायरिंग में करीब 500 राउंड गोलियां दागी गईं। कृष्णानंद राय की पूरी गाड़ी छलनी हो गई और विधायक सहित कुल सात लोग मारे गए।
इस हत्याकांड के समय मुख्तार अंसारी जेल में था। लेकिन उसको ही इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड माना गया। हालांकि बाद में गवाहों के मुकरने और सबूतों के अभाव में सीबीआई कोर्ट ने मुख्तार अंसारी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। कृष्णानंद राय की हत्या के बाद ब्रजेश भी लापता हो गए थे। 2005 से 2008 तक उनको लेकर केवल अफवाहें उड़ती थीं। कई बार उनके मारे जाने की भी अफवाह उड़ी। 2008 में भुवनेश्वर से गिरफ्तारी के बाद अफवाहों को विराम लगा था। तभी से लेकर अब तक ब्रजेश अलग अलग जेलों में ही रहे।