SC-ST एक्ट में आरोपी पर दोष सिद्ध होने के बाद ही पीड़ित को दिया जाए मुआवजा: HC

ब्यूरो,

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अहम आदेश देते हुए कहा है कि जबतक एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप सिद्ध नहीं हो जाते तबतक पीड़ित को मुआवजा ना दिया जाए।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अहम फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि जबतक अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) कानून के तहत आरोपी पर लगे आरोप सिद्ध नहीं हो जाते तबतक उसे मुआवजा ना दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोप पत्र या प्राथमिकी दर्ज होने पर मुआवजे की राशि जारी ना की जाए। इसरार अहमद उर्फ इसरार व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस दिनेश सिंह ने ये टिप्पणी की। 

जस्टिस दिनेश सिंह द्वारा 26 जुलाई को ये आदेश पारित किया गया था जो गुरुवार को वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इसमें कहा गया है कि हाई कोर्ट के संज्ञान में आया है कि हर दिन बड़ी संख्या में ऐसे मामले आ रहे हैं जहां मुआवजा मिलने के बाद शिकायतकर्ता मुकदमा खत्म करने के लिए आरोपी से कोर्ट के बाहर समझौता कर लेता है। जस्टिस दिनेश सिंह ने कहा कि करदाताओं के पैसे का इस प्रक्रिया में दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने आदेश में ये भी लिखा कि ऐसे मामलों में  राज्य सरकार कथित पीड़ितों से मुआवजे की रकम वापस लेने के लिए भी स्वतंत्र है जहां शिकायतकर्ता ने आरोपी के साथ मुकदमा वापस लेने के लिए समझौता कर लिया हो।

याचिका में रायबरेली की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और मुकदमे को खारिज करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि इस मामले में उनका वादी के साथ सुलह हो गया है। वादी ने भी सुलह समझौते की बात कही थी। इसपर कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को राज्य सरकार की तरफ से मुआवजे के तौर पर 75 हजार रुपये मिल चुके हैं और बाद में समझौता किया जा रहा है। इस तरह से मुआवजा बांटकर टैक्स पेयर्स के पैसों का दुरुपयोग हो रहा है।

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