टूटने की कगार पर पहुंच गया सपा- रालोद गठबंधन बचा
- रालोद मुखिया जयंत को राज्यसभा भेजने सहमत पर हुए अखिलेश
- रालोद विधायकों की नाराजगी और मुलायम की सलाह के बाद माने अखिलेश
लखनऊ, 26 मई 2022 :
उत्तर प्रदेश में गुरुवार यानी कि 26 मई को दो अहम घटनाएं हुई. पहली घटना यूपी के इतिहास का सबसे बड़ा छह लाख 15 हजार 518 करोड़ का बजट सदन में पेश किया गया. जबकि दूसरी घटना टूटने की कगार पर पहुंच चुके समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के गठबंधन के बच जाने की रही. सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा के लिए सपा रालोद का संयुक्त प्रत्याशी घोषित कर गठबंधन को टूटने से बचा लिया. मुलायम सिंह की सलाह पर अखिलेश ने भविष्य की संभावनाओं को मजबूती देने के लिए यह फैसला लिया है. सपा नेताओं के अनुसार सपा मुखिया ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का फैसला कर यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि सपा तथा रालोद के गठबंधन में आपसी प्यार और सम्मान बना रहेगा तथा आपसी वादे पूरे करने की कोशिश की जाएगी.
सपा नेताओं का यह दावा फेस सेविंग के अलावा और कुछ नहीं है. हकीकत यह है कि अखिलेश यादव ने रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा ना भेजने का मूड बना लिया था. अखिलेश ने पार्टी के सीनियर नेता आजम खान को खुश करने के लिए कपिल सिब्बल को और अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल के बेहद नजदीकी जावेद अली तथा अपने पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा भेजने का मन बनाया था. उनके इस फैसले के तहत ही बुधवार को सपा की तरफ से कपिल सिब्बल और जावेद अली नामांकन कर दिया. और तीसरी सीट के लिए डिंपल यादव के जल्द ही नामांकन करने की चर्चा तेज हो गई. इस पूरी कहानी में बुधवार को शाम तब मोड़ आ गया जब लखनऊ में रालोद के विधायकों ने अखिलेश यादव से मुलाकात की. रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा ना भेजने से नाराज इन विधायकों ने अखिलेश से कहा कि भले ही जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के बाबत वादे हुए हो या न हुए हों पर गठबंधन का सरोकार और वक्त का तकाजा यही कहता है कि जयंत को राज्यसभा भेजा जाए. चूंकि यह बात तो तय है कि भले ही सपा और रालोद गठबंधन अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाया हो पर दोनों ने मिलकर मजबूती से चुनाव लड़ा और तमाम ऑफर के बावजूद जयंत गठबंधन के साथ मजबूती से खड़े रहे. चुनाव में पूरी ताकत लगाई. ऐसे में अब गठबंधन धर्म निभाने का फर्ज आया तो उसे निभाया जाना चाहिए. विधायकों की इस मुलाक़ात का असर यह रहा कि अखिलेश यादव ने गुरूवार को यह घोषणा कर दी कि उनके उम्मीदवार जयंत होंगे.
अखिलेश यादव के इस फैसले के पीछे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भूमिका है. सपा नेताओं के अनुसार मुलायम सिंह ने पर्दे के पीछे रखकर अखिलेश यादव को जयंत को हर हाल में अपने साथ रखने की सलाह दी जिसे अखिलेश यादव ने माना. अब अखिलेश यादव के रालोद मुखिया को जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के फैसले को दूरगामी सोच भरा बताया जा रहा. चूंकि भाजपा ने चुनाव में जयंत के लिए अपने दरवाजे स्पष्ट रूप से खोल रखे थे और तमाम सियासी गुणा भाग लगाए गए थे. बावजूद इसके जयंत सपा के साथ रहे. ऐसे में अगर अखिलेश यादव जयंत की जगह डिंपल यादव को राज्यसभा भेजते तो वह जयंत का साथ खो बैठते. रालोद के विधायकों ने भी ऐसा ही संकेत अखिलेश यादव से मुलाकात करते हुए उन्हें दिया था. इस मुलाक़ात के बाद अखिलेश यह बात भली भांति जान गए कि यदि अब रालोद की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा गया तो वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले ही गठबंधन खतरे में पड़ जाएगा. यदि सपा रालोद साथ रहे तो लोकसभा चुनाव में लाभ हो सकता है पर यदि नाराजगी हो गई और जयंत चले गए तो निश्चित रूप से पश्चिमी उप्र में सपा की राह मुश्किल हो सकती है. इस गुणा गणित और मुलायम सिंह की सलाह पर अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का ऐलान कर सपा-रालोद गठबंधन को बचा लिया है.
टूटने की कगार पर पहुंच गया सपा- रालोद गठबंधन बचा
- रालोद मुखिया जयंत को राज्यसभा भेजने सहमत पर हुए अखिलेश
- रालोद विधायकों की नाराजगी और मुलायम की सलाह के बाद माने अखिलेश
उत्तर प्रदेश में गुरुवार यानी कि 26 मई को दो अहम घटनाएं हुई. पहली घटना यूपी के इतिहास का सबसे बड़ा छह लाख 15 हजार 518 करोड़ का बजट सदन में पेश किया गया. जबकि दूसरी घटना टूटने की कगार पर पहुंच चुके समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के गठबंधन के बच जाने की रही. सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा के लिए सपा रालोद का संयुक्त प्रत्याशी घोषित कर गठबंधन को टूटने से बचा लिया. मुलायम सिंह की सलाह पर अखिलेश ने भविष्य की संभावनाओं को मजबूती देने के लिए यह फैसला लिया है. सपा नेताओं के अनुसार सपा मुखिया ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का फैसला कर यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि सपा तथा रालोद के गठबंधन में आपसी प्यार और सम्मान बना रहेगा तथा आपसी वादे पूरे करने की कोशिश की जाएगी.
सपा नेताओं का यह दावा फेस सेविंग के अलावा और कुछ नहीं है. हकीकत यह है कि अखिलेश यादव ने रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा ना भेजने का मूड बना लिया था. अखिलेश ने पार्टी के सीनियर नेता आजम खान को खुश करने के लिए कपिल सिब्बल को और अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल के बेहद नजदीकी जावेद अली तथा अपने पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा भेजने का मन बनाया था. उनके इस फैसले के तहत ही बुधवार को सपा की तरफ से कपिल सिब्बल और जावेद अली नामांकन कर दिया. और तीसरी सीट के लिए डिंपल यादव के जल्द ही नामांकन करने की चर्चा तेज हो गई. इस पूरी कहानी में बुधवार को शाम तब मोड़ आ गया जब लखनऊ में रालोद के विधायकों ने अखिलेश यादव से मुलाकात की. रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा ना भेजने से नाराज इन विधायकों ने अखिलेश से कहा कि भले ही जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के बाबत वादे हुए हो या न हुए हों पर गठबंधन का सरोकार और वक्त का तकाजा यही कहता है कि जयंत को राज्यसभा भेजा जाए. चूंकि यह बात तो तय है कि भले ही सपा और रालोद गठबंधन अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाया हो पर दोनों ने मिलकर मजबूती से चुनाव लड़ा और तमाम ऑफर के बावजूद जयंत गठबंधन के साथ मजबूती से खड़े रहे. चुनाव में पूरी ताकत लगाई. ऐसे में अब गठबंधन धर्म निभाने का फर्ज आया तो उसे निभाया जाना चाहिए. विधायकों की इस मुलाक़ात का असर यह रहा कि अखिलेश यादव ने गुरूवार को यह घोषणा कर दी कि उनके उम्मीदवार जयंत होंगे.
अखिलेश यादव के इस फैसले के पीछे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भूमिका है. सपा नेताओं के अनुसार मुलायम सिंह ने पर्दे के पीछे रखकर अखिलेश यादव को जयंत को हर हाल में अपने साथ रखने की सलाह दी जिसे अखिलेश यादव ने माना. अब अखिलेश यादव के रालोद मुखिया को जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के फैसले को दूरगामी सोच भरा बताया जा रहा. चूंकि भाजपा ने चुनाव में जयंत के लिए अपने दरवाजे स्पष्ट रूप से खोल रखे थे और तमाम सियासी गुणा भाग लगाए गए थे. बावजूद इसके जयंत सपा के साथ रहे. ऐसे में अगर अखिलेश यादव जयंत की जगह डिंपल यादव को राज्यसभा भेजते तो वह जयंत का साथ खो बैठते. रालोद के विधायकों ने भी ऐसा ही संकेत अखिलेश यादव से मुलाकात करते हुए उन्हें दिया था. इस मुलाक़ात के बाद अखिलेश यह बात भली भांति जान गए कि यदि अब रालोद की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा गया तो वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले ही गठबंधन खतरे में पड़ जाएगा. यदि सपा रालोद साथ रहे तो लोकसभा चुनाव में लाभ हो सकता है पर यदि नाराजगी हो गई और जयंत चले गए तो निश्चित रूप से पश्चिमी उप्र में सपा की राह मुश्किल हो सकती है. इस गुणा गणित और मुलायम सिंह की सलाह पर अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का ऐलान कर सपा-रालोद गठबंधन को बचा लिया है.