ब्यूरो,
यूपी में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। ऐसे में दल-बदल की कवायद भी शुरू हो गई है। वहीं एक समय बीजेपी के साथ गठबंधन में रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के नेता ओमप्रकाश राजभर को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का बड़ा नेता माना जाता है। वर्तमान में राजभर ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है। हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कई मुद्दों पर खुलकर बात की। यूपी के पूर्व मंत्री ने कहा कि पिछले 24 घंटे में कई नेताओं का बीजेपी छोड़कर जाना आने वाले समय का केवल एक टीजर है। उन्होंने यह भी कहा कि अपने ओबीसी आधार को बरकरार रखना बीजेपी के लिए एक चुनौती होगी।
जवाब: तीन साल पहले, जब मैंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया और बीजेपी छोड़ी थी, तब मुझे भी यही अनुभव हुआ था। तब मुझे एहसास हुआ कि वे पिछड़े वर्गों और दलितों के दुश्मन हैं। आज दारा सिंह चौहान और स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी इसी बात की पुष्टि की है। अगर आप बीजेपी नेताओं से स्पाई कैम पर बात करते हैं, तो वे वही जताते हैं- कि कोई उनकी नहीं सुनता, वे असहाय हैं। मेरी बात मान लें, 10 मार्च (मतगणना का दिन) को कोई भी बीजेपी नेता अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा और वे अपने टीवी बंद कर देंगे।
जवाब: उदाहरण के लिए, 69,000 शिक्षकों को भर्ती करना (दिसंबर 2020 में) जो ओबीसी के लिए एक सशक्तिकरण कदम माना जा रहा था। पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय आयोग ने जब इस पर गौर किया तो पाया कि इन नियुक्तियों में 27 फीसदी ओबीसी कोटा भी पूरा नहीं हुआ। सीएम ने कहा कि वह इस विसंगति को ठीक कर देंगे लेकिन अगर आप केवल 6,000 पिछड़े उम्मीदवारों की भर्ती करते हैं तो इससे ओबीसी मानदंड कैसे पूरा होगा?
जवाब: पिछले हफ्ते चुनाव की घोषणा से एक दिन पहले, 7 जनवरी को लखनऊ में हजारों बच्चे यह कहते हुए धरने पर बैठे थे कि उनसे ओबीसी और दलित कोटा लूटा गया है। योगीजी की पुलिस ने उनकी पिटाई कर दी। ये नए मंत्री सिर्फ ‘चुनवी मंत्री’ हैं, जिन्हें बेहतर प्रदर्शन करने और बीजेपी के लिए कुछ वोट हासिल करने को कहा गया है। क्या उनकी नियुक्ति का मतलब यह है कि अधिक पिछड़े लोग शिक्षित हो रहे हैं और उनके घरेलू बिजली बिलों का भुगतान हो रहा है? क्या उनकी नियुक्ति का मतलब यह है कि बड़ी संख्या में गरीबों को अस्पतालों में बेहतर इलाज मिल रहा है? क्या जातीय जनगणना हुई?
सवाल: आपने कहा है कि बहुत से लोग शामिल होंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के जाने से पहले, वे आपके साथ बातचीत करते देखे गए थे। आप कितने इस्तीफे की उम्मीद कर रहे हैं?
जवाब: कम से कम डेढ़ दर्जन मंत्री समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं। मैं अभी आपको उनके नाम नहीं बता सकता। साथ ही, आप 14 तारीख को भाजपा छोड़कर जाने वाले इन नेताओं के बारे में एक बड़े खुलासे की उम्मीद कर सकते हैं।
सवाल: बीजेपी त्वरित सुधार करने के लिए जानी जाती है। क्या होगा अगर वे वास्तव में अब सबकुछ लगाकर ओबीसी समुदाय को लुभाने की कोशिश करते हैं?
जवाब: कुछ नहीं होगा। चुनाव आचार संहिता लागू होने की वजह से अब बहुत देर हो चुकी है। अब वे क्या कर सकते हैं? वे अब उत्तर प्रदेश में 28 साल तक नजर नहीं आएंगे। आप गांवों में जाएंगे तो वहां किसान परेशान हैं, युवाओं से मिलें वे बेरोजगारी से तंग आ चुके हैं और व्यापारियों से मिलें तो वे कहेंगे कि जीएसटी ने उनकी कमर तोड़ दी है।
सवाल: तो आप कह रहे हैं कि पूरा ओबीसी वोट बैंक सपा में चला जाएगा?
जवाब: हर समुदाय का अपना नेतृत्व है, अपनी पार्टी है और अपना वोट बैंक है। जो उस समुदाय के सशक्तिकरण को सुनिश्चित करता है और शुरुआत में, भाजपा ने इन सभी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया और देशभर में राजनीतिक मजबूती हासिल की। सपा ने अब पूर्वांचल क्षेत्र के लिए राजभर समुदाय के साथ गठबंधन किया है, प्रजापति के साथ गठबंधन से उन्हें 7% वोट मिल सकते हैं। इसी तरह अन्य छोटी पार्टियों के साथ प्रमुख गठजोड़ से उन्हें प्रमुख सामुदायिक वोट मिलते हैं।
सवाल: कई लोगों का कहना है कि बीजेपी बेशक सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है, लेकिन उसे मिलने वाली कम सीट भी उसे जीत दिला सकती हैं?
जवाब: मैं आपको बताता हूं कि वे गलत कैसे हैं। पूर्वांचल में हमारे समुदाय के पास 12-22% वोट हैं और हमने बीजेपी को वोट दिया था, अब उन्होंने उन्होंने वोट खो दिया है। वे प्रजापति वोट खो चुके हैं, और 100% कुशवाहाओं ने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था, इस बार उन्होंने उन्हें भी खो दिया है। आप पटेल वोटों और उन्हें वोट देने वाले यादवों और मुसलमानों को भी हटा सकते हैं। निषाद, मल्लाह, मझार, कश्यप आदि जिन्होंने भाजपा को वोट दिया था, वे उन्हें वोट नहीं देंगे। क्या विशेषज्ञ यह नहीं देख सकते हैं कि इनमें से लाखों लोग अब बीजेपी से खफा हैं?