लॉकडाउन के 50 दिनों से बनारस में वस्त्र व हस्तकला उद्योग को करीब 2000 करोड़ रुपये की चोट पहुंची है। वहीं करीब इनसे जुड़े पांच लाख से ज्यादा बुनकरों और शिल्पियों के सामने रोजगार का संकट रहा। बनारसी साड़ी की बुनाई और कारोबार से जुड़े लोगों पर फरवरी से ही असर दिखने लगा था। बनारस में करीब 90 हजार बुनकर परिवारों में पावरलूम पर साड़ी की बुनाई होती है। पावरलूम पर चीनी रेशम का ही इस्तेमाल होता है। लेकिन साल के शुरुआत से ही चीन से आने वाले रेशम की कीमत में बढ़ोतरी होने लगी थी जिसका असर लागत पर पड़ने लगा था।
फरवरी के मध्य से चीन से रेशम की आवक ही बंद हो गई। इसके कारण प्रति किलोग्राम 700 से 800 रुपए दाम बढ़ गए थे। जो चीनी रेशम 3600 से 3700 रुपए प्रति किलोग्राम आम दिनों में रहता था, वह जनवरी से ही 4400 से 4500 रुपए तक पहुंच गया था। बनारस से हर साल 5000 करोड़ रुपए का साड़ी सिल्क फैब्रिक व सिल्क से बने अन्य उत्पादों का निर्यात व देश के विभिन्न राज्यों में कारोबार होता है। बनारस से पश्चिम बंगाल के रास्ते 400 से 500 करोड़ रुपए कि केवल सिल्क साड़ी बांग्लादेश जाती है। इसके अलावा गुलाबी मीनाकारी लकड़ी के खिलौने पीतल के बर्तन मिट्टी लकड़ी व शीशे की माला व आर्टिफिशियल ज्वेलरी का कारोबार भी करीब दो माह से ठप पड़ा हुआ है। हस्तशिल्प उत्पाद काफी मात्रा में हर साल निर्यात होते हैं। पूर्वांचल निर्यातक संघ के अध्यक्ष जुनेद अंसारी ने बताया कि बनारस व आसपास के जिलों में तैयार होने वाले हथकरघा व हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात व देश के अन्य राज्यों में न होने से करीब 2000 करोड रुपए का नुकसान हुआ है।