हाथरस घटना का HC ने लिया स्वत: संज्ञान – अपर मुख्य सचिव, DGP, ADG, DM व SP को पेश होने का आदेश

हाथरस की पीड़िता के शव का परिवार की मर्जी के बिना रातोंरात अंतिम संस्कार कराना प्रशासन के लिए भारी पड़ता नजर आ रहा है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था, जिलाधिकारी हाथरस और पुलिस अधीक्षक हाथरस को 12 अक्टूबर को तलब कर लिया है। न्यायालय ने इन अधिकारियों को मामले से संबंधित दस्तावेज इत्यादि लेकर उपस्थित होने का आदेश दिया है। साथ ही विवेचना की प्रगति भी बताने को कहा है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने दिया। न्यायालय ने हाथरस में युवती के साथ हुए सामूहिक दुराचार व उसकी मृत्यु के पश्चात जबरन अंतिम संस्कार किये जाने की मीडिया रिपोर्टों पर स्वतः संज्ञान लिया है। न्यायालय ने ‘गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार’ टाइटिल से स्वतः संज्ञान याचिका को दर्ज करने का भी आदेश दिया है।

न्यायालय ने कहा कि एक तरफ एसपी हाथरस कहते हैं कि हमने बॉडी परिवार के हवाले कर दी थी व प्रशासन ने अंतिम संस्कार में मात्र सहयोग किया था। वहीं मृतका के पिता व भाई का मीडिया में बयान है कि इस सम्बंध में प्रशासन से कोई बात नहीं हुई थी। पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए यह कृत्य किया है। न्यायालय ने अंतिम संस्कार के सम्बंध में मीडिया में चल रहे पुलिस की कथित मनमानी के वीडियो का भी हवाला दिया। न्यायालय ने कहा कि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रातोंरात हुए इस अंतिम संकार के दौरान डीम प्रवीण कुमार, एसपी विक्रांत वीर, एएसपी प्रकाश कुमार, सादाबाद सीओ भ्राम सिंह, रम्शाबाद सीओ सिटी सुरेंद्र राव, सीओ सिकन्दर राव व संयुक्त मजिस्ट्रेट प्रेम प्रकाश मीणा 200 पीएसी जवानों व 11 थानों की पुलिस फोर्स के साथ उपस्थित थे।

न्यायालय ने एडीजी, लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार के बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा कि शव खराब हो रहा था इसलिए परिवार के सदस्य चाहते थे कि रात में ही अंतिम संस्कार हो जाए तो बेहतर होगा। न्यायालय ने कहा कि राजधानी स्थित डीजीपी ऑफिस के आला अधिकारी देर रात हुए इस अंतिम संस्कार को औचित्यपूर्ण ठहरा रहे हैं इसलिए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच इस मामले का संज्ञान लेती है।

न्यायालय ने आगे कहा कि यह राज्य के आला अधिकारियों द्वारा मनमानी करते हुए मानवीय और मौलिक अधिकारों के घोर हनन का मामला है। इस मामले में न सिर्फ मृत पीड़िता के बल्कि उसके परिवार के भी मानवीय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है। उन्होंने कहा कि पीड़िता के साथ अपराधियों ने बर्बरता की और यदि आरोप सही हैं तो उसके बाद उसके परिवार के जख्मों पर नमक रगड़ा गया है।

न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले का परीक्षण करेगा कि क्या मृत पीड़िता व उसके परिवार के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है व क्या अधिकारियों ने मनमानी करते हुए उक्त अधिकारों का हनन किया है। यदि यह सही है तो न सिर्फ जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी बल्कि भविष्य के दिशानिर्देश के लिए कठोर कार्रवाई की जाएगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि हम यह भी देखेंगे कि क्या पीड़िता के परिवार की गरीबी व सामाजिक स्थिति का फायदा उठाते हुए राज्य सरकार के अधिकारियों ने उन्हें संविधानिक अधिकारों से वंचित किया। न्यायालय ने कहा कि यह कोर्ट पीड़िता के साथ हुए अपराध की विवेचना की भी निगरानी कर सकता है और जरूरत पड़ने पर स्वतंत्र एजेंसी से जांच का आदेश भी दे सकता है।

न्यायालय ने मृतक पीड़िता के मां-पिता व भाई को भी 12 अक्टूबर को आने को कहा है व हाथरस के जनपद न्यायाधीश को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने जिला व राज्य सरकार के अधिकारियों को उनके आने-जाने, खाने, ठहरने व सुरक्षा का आदेश दिया है। न्यायालय ने अधिकारियों को यह चेतावनी भी दी है कि मृतका के परिवार पर कोई दबाव न बनाया जाए।

न्यायालय ने कहा कि कल महात्मा गांधी की जयंती है जिनका दिल कमजोरों के लिए धड़कता था। वे कहते थे कि जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो उसकी शकल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा। क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा। न्यायालय ने ऑस्कर वाइल्ड के एक कथन को भी उद्धृत किया।    

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *