दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा में आरोपी एक महिला की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सांप्रदायिक दंगों की योजना बनाने और दंगे भड़काने में उसकी मौजूदगी की साजिश का पता लगाने के लिए यह जरूरी है।
कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या से जुड़े एक मामले के सिलसिले में दिल्ली के चंद बाग इलाके की निवासी तबस्सुम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि चश्मदीद गवाहों ने अपने बयानों में उसकी पहचान की है। उसके खिलाफ गंभीर प्रकृति के आरोप हैं। अदालत इस मामले में कई सह-अभियुक्तों की अंतरिम जमानत की अर्जी भी पहले ही खारिज कर दी है।
विशेष सरकारी वकील अमित प्रसाद ने तर्क दिया कि हाल ही में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की निर्मम हत्या का मामला दुर्भाग्यपूर्ण है। इन दंगों में पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) शाहदरा अमित शर्मा, आईपीएस अनुज कुमार, एसीपी गोकलपुरी और 51 अन्य पुलिसकर्मी दंगाइयों के हाथों गंभीर रूप से घायल हुए थे।
अमित प्रसाद ने तर्क दिया कि महिला ने अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ मंच साझा कर भारत सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काया था, जिससे अंततः दिल्ली में 50 से अधिक निर्दोष व्यक्तियों की मौत हो गई थी।
इसके साथ ही यह भी तर्क दिया कि आवेदक के कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (सीडीआर) के विश्लेषण से पता चला है कि वह लगातार इस मामले में मुख्य साजिशकर्ताओं / अन्य सह-अभियुक्त व्यक्तियों के साथ-साथ मामले में गिरफ्तार अभियुक्तों के संपर्क में थी। इसकी जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा की जा रही है।