बिना चश्मा, एकाग्रचित्त ध्यानी

बिना चश्मा, एकाग्रचित्त ध्यानी

एक आदमी सड़क पर एक दीवार के सामने चश्में लिए बैठा था। ढेर के ढेर चश्में उसकी पोटली में बंधे थे। थे तो वो चश्मे ही मगर वो आम चश्मों जैसे चश्मे नहीं थे। कुछ देर तो चश्मों की पोटली को देखता रहा फिर यूँ ही बोला, ये एक चश्मा कितने का है ?
चश्मे वाला मुस्कुराया, फिर अपना मास्क नीचे करता बोला,
अलग अलग दाम है भाई.. क्योंकि चश्में के अलग अलग काम हैं।
मैने झुक कर देखा तो चश्मों के ऊपर नाम भी लिखे हुए थे।
गांधी चश्मा,
अंबेडकर चश्मा,
नेहरू चश्मा,
RSS चश्मा,
हिंदुत्व चश्मा,
अल्पसंख्यक चश्मा,
कामरेड चश्मा,
कश्मीरी चश्मा,
कांग्रेस चश्मा,
भाजपा चश्मा,
मोदी चश्मा,
राहुल चश्मा,
दलित चश्मा,
भक्त चश्मा,
चमचा चश्मा,
विरोधी चश्मा।

मैने कहा यार ये कौनसे चश्में हैं ? वो बोला, यही तो वो चश्में हैं जो बड़ी डिमांड में हैं। घर घर में लोग यही चश्में पहन कर रहते हैं।
यही चश्में पहन कर बात करते हैं।
यही चश्मे पहन कर लिखते हैं।
यही चश्में पहन कर सोचते हैं।
कुछ तो सोते जागते खाते पीते भी यही चश्में पहन कर हैं।

मै बोला, एक चश्मा देना तो…
चश्में वाले ने एक चश्मा दे दिया। मैंने
पहन लिया।
तभी देखा, पास ही बने मंदिर के सामने एक आदमी अचेत होकर गिर गया।

देखने पर लगा
चमचागिरी में कैसे साष्टांग दंडवत कर रहा है। इंसान को इतना चमचा भी नहीं होना चाहिए। देखो कैसे पड़ गया।

तभी चश्में वाले ने
दूसरा चश्मा दे दिया। उसे पहन कर लगा
लगा कर भक्त भगवान के दर पे कैसे श्रृद्धा से झुका पड़ा है। इसे कहते हैं लौ लगाना। क्या भक्ति है।
मैने कहा अबे ये चमचा है या भक्त है ? चश्मे वाला मुस्कुराया। मुझे एक और चश्मा देते हुए बोला,
देख लीजिये ये कौन है ? मैने चश्मा पहना तो चीख पड़ा। मैने कहा कोरोना काल में बेरोजगारी का ये हाल। तीन दिन से इसने खाना नहीं खाया। बेचारा भूख से अधमरा हो गया। ये सरकार कर क्या रही है ?

फिर चश्में वाले ने हमें ढेर सारे चश्में दिये और दीवार के पीछे की तरफ ले गया। वहाँ एक भारत का नक्शा बना हुआ था। बहुत बड़ा। वो बोला मै चाय पीकर आता हूँ तब तक आप ये चश्मे पहन पहन कर अपने देश को देखिये। मज़ा आयेगा। चश्में वाला चला गया।
चश्में पहन कर अपने देश को देखना शुरू किया।
कभी वो इस्लामिक देश होता नज़र आया,
कभी हिंदू देश बन गया। कभी दलित पिटते नज़र आये तो कभी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार दिखे।
कभी कश्मीर जलता नज़र आया तो कभी दिल्ली बर्बाद होती दिखी।
कभी दिखा कि कोरोना रोकने में देश कामयाब हो गया तो कभी लगा कि देश ने घंटी थाली बजाने के अलावा कुछ किया ही नहीं।
कभी महंगाई भुखमरी दिखाई पड़ी तो कभी विकास ही विकास दिख गया।
कभी नेहरू का भारत दिखा तो कभी पटेल का देश दिखा।
कहीं चीन ने हमारी ज़मीन कब्ज़ा ली, तो कंही चीन हमारे सामने भीगी बिल्ली बन गया।
कहीं भगत सिंह आतंकवादी मिला तो कहीं वो क्रांतिकारी मिला।
किसी चश्में में गांधी सही थे तो किसी चश्में में गोडसे महान था।
कहीं दिखा कि कोंग्रेस अपनी सरकारें संभाल नहीं पा रही है और कहीं ये मोदी-शाह का भयंकर षड्यंत्र था।
कभी पुलिस दंगाईयों से मिली हुई थी तो कभी दंगाइयों ने पुलिस को मार दिया।
एक चश्मे में अफ़जल, कसाब आतंकी थे तो दूसरे चश्में में शहीद थे।
कभी कोई चाणक्य था तो कभी वो ही तड़ीपार गुंडा था। कभी राणा प्रताप महान थे और अकबर आक्रान्ता था तो कभी अकबर महान था और राणा प्रताप भगौड़ा थे।

कभी सेना ने स्ट्राइक की थी तो कभी सेना ने यूँ ही विमान उड़ा दिए थे।
एक चश्मे में भाजपा लोकतंत्र का कत्ल कर रही थी और कोंग्रेस लोकतंत्र बचा रही थी, तो दूसरे चश्में में कोंग्रेस लोकतंत्र की हत्यारी थी और भाजपा बचा रही थी।
तीसरे चश्मे से देखा तो दोनों मिल कर ही लोकतंत्र को मार रहे थे।
किसी चश्मे में राम आस्था का प्रतीक थे और किसी चश्मे में उनके नाम पर सियासत हो रही थी।
कहीं बाबर के नाम पर कसमें थीं तो कहीं राम नाम का आसरा था।
किसी चश्मे में एक इमारत मंदिर थी तो दूसरे चश्मे में वो मस्जिद थी।
एक से देखा तो मुसलमान गद्दार थे, दूसरे से देखा तो हिंदू हत्यारे थे।

सबसे ज्यादा तो दो चश्मों ने कंफ्यूज किया।
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एक में देश सत्तर सालों से बर्बाद हो रहा था और पिछले छह साल में आबाद हो गया। दूसरे में वो सत्तर साल से आबाद था, पिछले छह सालों में बर्बाद हो गया।

तभी चश्में वाला लौट आया। मुझसे बोला, देख लिया अपना देश ? मैने कहा नहीं देखा, वो तो दिखा ही नहीं।वो बोला इन चश्मों के बिना देखो, तब दिखेगा। ये चश्में बहुत खतरनाक हैं। इनसे दूर रहो।

फिर आप ऐसे चश्में बेच क्यों रहे हो..? चश्में वाला मुस्कुरा के बोला, बेच नहीं रहा, लोगों से ले ले कर इक्कट्ठे कर रहा हूँ। आप के पास भी कोई चश्मा हो तो दे दो। उसने मुझसेअपने चश्में लेकर पोटली बांधी और चला गया। मैने देखा
बिना किसी चश्में के भारत को देखना मुश्किल तो बहुत था, परंतु फिर…. मैं भी कोशिश करने लगा.

आप भी कीजिए
किसी बात का आंकलन बिना चश्मे के कीजिए।

(साभार वाट्सएप के ज्ञान)

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