सुशांत सिंह प्रकरण में पूर्व डीजीपी ने छेड़ी नई बहस – बिहार पुलिस की भूमिका पर सवाल

सिने स्टार सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के मामले में बिहार व महाराष्ट्र पुलिस के बीच चल रही नूराकुश्ती पर यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि मामले में बिहार पुलिस की अति सक्रियता उनकी गलत मंशा जाहिर करती है। किसी आपराधिक प्रकरण की विवेचना और विचारण उसी अधिकारिता में हो सकता है, जहां घटना घटित हुई हो। 

पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि किसी राज्य को किसी दूसरे राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। मृतक या अभियुक्त कहां का रहने वाला है? यह कोई आधार नहीं है और इसलिए कोई मायने नहीं रखता है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि शुद्ध कानूनी और आपराधिक मामले में आम लोग भी अपनी-अपनी पसंद और पूर्वाग्रह के अनुसार अभियान चला रहे हैं।

यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आपराधिक विवेचना और विचारण, आमराय, बहुमत अथवा जन-दबाव में नहीं हो सकती। विवेचना सही हो रही है या नहीं, इसका निर्णय केवल न्यायालय कर सकते हैं। जनता या प्रभावशाली वर्ग के दबाव में यदि विवेचना या विचारण होगा तो इससे अन्याय ही होगा। अपनी रुचि के अनुसार कार्रवाई करने का दबाव बनाने की यह घातक प्रवृत्ति बहुत बढ़ती जा रही है। किसी भी सभ्य देश में ऐसा नहीं होता है। उन्होंने लिखा है कि अगर किसी को कोई ठोस आपत्ति हो तो उसे कोर्ट जाना चाहिए। आखिर किसी आपराधिक विवाद का फैसला तो कोर्ट ही करेगा। किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था या संगठन को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता है क्योंकि वे निष्पक्ष नहीं होते हैं।

फेसबुक पर उनकी यह टिप्पणी आते ही पक्ष-विपक्ष में प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। आपत्तिजनक टिप्पणियां करने वालों को उन्होंने फेसबुक पर ही जवाब भी दिया है। इसी तरह आईपीसी अफसर अमिताभ ठाकुर ने भी अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि सुशांत सिंह के मामले में कानूनी रूप से पटना पुलिस को इसकी विवेचना का विधिक अधिकार नहीं दिखता है। 
 

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