शिवसेना ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि मध्य प्रदेश के बाद वे राजस्थान में कांग्रेस सरकार को ध्वस्त करना चाहती हैं। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा है कि एक तरफ जहां देश कोरोनोवायरस संकट का सामना कर रहा है। वहीं भाजपा एक अलग उपद्रव पैदा कर रही है। इस समय भाजपा ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को ध्वस्त कर दिया है और अब वह राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार को ध्वस्त करना चाह रही है। हालांकि, यह संभव नहीं है।
सामना में ‘रेगिस्तान में उपद्रव!’ नाम से छपे संपादकीय में शिवसेना ने भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराई। अपनी जीभ पर लगे खून के पचने के पहले ही राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराकर डकार लेने की स्थिति में भाजपा दिख रही है, लेकिन यह संभव नहीं लगता। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया 22 विधायकों के साथ भाजपा में चले गए। सिंधिया को ईनाम के रूप में राज्यसभा मिली। भविष्य में वे मंत्री भी बनेंगे। जब मध्य प्रदेश का निवाला निगला तभी लोग आश्वस्त थे कि अगला नंबर राजस्थान का होगा। शर्त लगाकर कहा गया कि उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर ही चलेंगे। यह सच होता दिख रहा है। सचिन पायलट 30 विधायकों के साथ राजस्थान में बगावत कर रहे हैं ऐसी बात की जा रही है, लेकिन ये आंकड़ा ज्यादा दिखाया जा रहा है। 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के 108 और भाजपा के 72 विधायक हैं। निर्दलीय और अन्य विधायक भी सरकार के साथ थे। उनमें से कुछ परंपरा के अनुसार बाड़ पर जाकर बैठे हैं।
पायलट का दावा है कि कांग्रेस सरकार अब अल्पमत में है। हालांकि पायलट की बात सच भले हो लेकिन सरकार का भविष्य विधानसभा में तय होगा। विधायक दल के नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा बुलाई गई कांग्रेस विधायकों की बैठक में दस से बारह पायलट समर्थक विधायक भी शामिल थे। इसलिए विधानसभा में सिरों की गिनती के बाद ही वास्तविक संख्या ज्ञात होगी। जब तक विधायकों के सिर ठीक से नहीं गिन लिए जाते तब तक भारतीय जनता पार्टी खुलकर कुछ नहीं करेगी। भारतीय जनता पार्टी इसके लिए खुलकर कुछ नहीं कर रही है लेकिन सरकार को अस्थिर करने के लिए पर्दे के पीछे से उनका राष्ट्रीय कार्य चल ही रहा है। फिलहाल भाजपा के दृष्टिकोण से पायलट का बच्चों वाला खेल कांग्रेस का एक आंतरिक मुद्दा है और इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने में मिलाया, उस समय भी यह भाजपा के लिए एक आंतरिक मुद्दा था और अब पायलट का खेल भी एक आंतरिक मुद्दा है।
महाराष्ट्र में भाजपा ने अजीत पवार को साथ लेकर अलसुबह ही शपथ विधि कर ली। तब भी वो राकांपा का आंतरिक मामला था। ऐसे आंतरिक मामले सुविधानुसार तय होते रहते हैं। मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा भाजपा के खिलाफ लगाए गए लेन-देन के आरोप गंभीर हैं। प्रत्येक विधायक को 25 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया जा रहा है और इस तरह के लेन-देन चल रहे हैं, लेकिन अब आयकर विभाग गहलोत का समर्थन करनेवाले विधायकों पर छापे मार रहा है। यह गूढ़ और रहस्यमय है। मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया पायलट से कांग्रेस छुड़वाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। नौसिखिया थोड़ा जोर से बांग देता है, यही होता है और कोई भी पार्टी इससे अछूती नहीं है। राजनीति में यह कोई नया चलन नहीं है। यदि पायलट के साथ गहलोत का झगड़ा एक आंतरिक विवाद है तो भाजपा को फिलहाल उस झगड़े में नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन भाजपा इस समय बाड़ पर है और उसने ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘ऑपरेशन लोटस’ के सूत्रधार के रूप में नियुक्त किया है, जिन्हें बगावत का ताजा अनुभव है। पायलट की महत्वाकांक्षा राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की है।
पायलट का अहंकार और व्यक्ति द्वेष राजस्थान जैसे राज्य को अस्थिर कर रहा है, लेकिन पायलट को केंद्रीय सत्ता का साथ मिले बिना ये सब संभव नहीं है। केंद्र सरकार विपक्षी सरकार को अस्थिर करने के सूत्र पर काम कर रही है। देश के समक्ष कोरोना के कारण चरमराई अर्थव्यवस्था और लद्दाख में चीनी घुसपैठ सहित कई मुद्दे हैं। लद्दाख सीमा पर हमारे २० सैनिकों का गिरा खून अभी भी ताजा है। इन सभी मुद्दों को सुलझाने की बजाय राजस्थान में कांग्रेस के भीतरी विवाद में टांग डालकर खरीद-फरोख्त को बढ़ावा देने का काम चल रहा है। रेगिस्तान में राजनीतिक उपद्रव का तूफान पैदा करके भाजपा क्या हासिल करना चाहती है? इससे संसदीय लोकतंत्र रेगिस्तान में बदल जाएगा। देश में भाजपा की पूरी सत्ता है। कुछ घरों को उन्हें विरोधियों के लिए छोड़ देना चाहिए। इसी में लोकतंत्र की शान है!