जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में 10 लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन मानवीय गतिविधियों की तुलना में कही अधिक प्रजातियों को जोखिम में डाल रहा है। इसकी वजह से पौधों और जीव समूह की करीब 25 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है। यदि इन कारकों से निपटने के लिए प्रयास नहीं हुए तो कुछ ही दशकों में 10 लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कृषि पत्रिका में प्रकाशित आलेख के अनुसार मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों द्वारा प्रयास किये जाने के बावजूद वर्ष 2016 तक पालतू स्तनधारी पशुओं की 6190 में से 559 र्पजातियां विलुप्त हो गयी। इनका उपयोग भोजन और कृषि उत्पादन में किया जाता था।
संयुक्त राष्ट्र पयार्वरण कार्यक्रम ने कहा है कि हर साल लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में फेंका जाता है जो 800 से ज्यादा प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करता है । इनमें से 15 प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है । प्लास्टिक के बारीक कण को मछलियां और अन्य जीव खा लेते हैं। आम लोग जब मछली खाते हैं तो इसका असर उन पर होता है । वर्ष 1980 के बाद जल में प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा दस गुना बढी है। इससे कम से कम 267 जलीय प्रजातियों के लिए खतरा बढ़ गया है। इनमें 86 प्रतिशत कछुए , 44 प्रतिशत समुद्री पक्षी और 43 प्रतिशत समुद्री स्तनधारी जीव हैं।
विश्व में तीन अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए समुद्र और तटीय जैव विविधता पर निर्भर हैं। समुद्र प्रोटीन का भी स्त्रोत है और इससे तीन अरब से अधिक लोगों को प्रोटीन मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत महासागर प्रदूषण , घटती मछलियों की संख्या और तटीय पयार्वास के क्षय के साथ इंसानी गतिविधियों से बुरी तरह प्रभावित है।