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तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत मिली
New Delhi…
एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यपालों को उनके संवैधानिक अधिकारों व कर्तव्यों के बारे मे पाठ पढ़ाया गया है
तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध बताया है। कोर्ट ने कहा कि यह मनमाना कदम है और कानून के नजरिए से सही नहीं। राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि
राज्यपाल को एक दोस्त, दार्शनिक और राह दिखाने वाले की तरह होना चाहिए। आप संविधान की शपथ लेते हैं। आपको किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए। आपको उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं। राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई बाधा पैदा न हो।
सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य के जरूरी बिलों को रोककर रखा है। पूर्व में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) में काम कर चुके पूर्व IPS अधिकारी आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला था और शुरू से ही विवादों में रहे हैं ।
सुप्रीम कोर्ट के 2 कमेंट , जो गवर्नर महोदय की कार्यशैली पर दिए गए हैं ।
1. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि राज्यपाल द्वारा इन 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैध और मनमाना है। यह कार्रवाई रद्द की जाती है। राज्यपाल की सभी कार्रवाई अमान्य है।
2. बेंच ने कहा कि राज्यपाल रवि ने भले मन से काम नहीं किया। इन बिलों को उसी दिन से मंजूर माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने बिलों को पास करके दोबारा राज्यपाल को भेजा गया था।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के 2 निर्देश जो गवर्नर साहब को दिए गए हैं ।
1. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को निर्देश दिया कि उन्हें अपने विकल्पों का इस्तेमाल तय समय-सीमा में करना होगा, वरना उनके उठाए गए कदमों की कानूनी समीक्षा की जाएगी।
2. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल बिल रोकें या राष्ट्रपति के पास भेजें, उन्हें यह काम मंत्रिपरिषद की सलाह से एक महीने के अंदर करना होगा। विधानसभा बिल को दोबारा पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल की शक्तियों को कमजोर नहीं कर रहा, लेकिन राज्यपाल की सारी कार्रवाई संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि
संविधान का आर्टिकल 200 कहता है कि जब विधानसभा कोई विधेयक राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राज्यपाल के पास 4 विकल्प होते हैं।”
1 मंज़ूरी दे सकते हैं
2 मंज़ूरी रोक सकते हैं
3 राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं
4 पुनर्विचार के लिए विधानसभा भेज सकते हैं ।
यदि विधानसभा बिल को दोबारा पास कर देती है, तो फिर राज्यपाल मंजूरी नहीं रोक सकते। हालांकि, अगर राज्यपाल को लगता है कि बिल संविधान, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों या राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा है, तो वह उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले पर मुख्यमंत्री स्टालिन ने ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि सभी राज्य सरकारों की जीत हुई है और इससे राज्यपालों की मनमानी पर अंकुश लगेगा ।
यह सिर्फ तमिलनाडु नहीं, बल्कि पूरे देश की राज्य सरकारों की जीत है। अब ये बिल राज्यपाल की मंजूरी वाले माने जाएंगे।
दरअसल पिछले कुछ सालों से गैर बीजेपी दलों की राज्य सरकारों को केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों द्वारा अनावश्यक परेशान करने तथा उनके कार्यों में हस्तक्षेप करने की परंपरा बन गई है । उम्मीद की जानी चाहिये की सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले के बाद राज्यपाल महोदय संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे ।