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नई कार खरीदने की पार्टी, हाइस्पीड बड़ी गाड़ी और छ: की मौत : सवाल और सबक !
*वेद माथुर*
यह घटना देहरादून में 11 नवंबर की देर रात घटी, जिसमें नई पार्टी कर खरीदने की खुशी में पार्टी हुई और पार्टी के बाद रात 1:30 बजे सात लोग हाई स्पीड से लॉन्ग ड्राइव पर निकले और एक कंटेनर से टकरा गए। 6 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि सातवां जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा है। घटना में मृत युवाओं में 3 लड़कियां और 3 लड़के थे। इन युवाओं की औसत आयु 23 से 25 वर्ष थी।
खबरों के अनुसार, देहरादून के पटाखा कारोबारी सुनील अग्रवाल के बेटे अतुल ने अपने सात दोस्तों को नई इनोवा कार खरीदने की खुशी में पार्टी दी थी। पार्टी के बाद ये सभी रात डेढ़ बजे लॉन्ग ड्राइव पर निकले। घटना इतनी भयावह थी कि कार की छत टूट गई, और ड्राइवर के बगल में बैठे कुणाल कुकरेजा और उसके ठीक पीछे बैठी गुनीत के सिर धड़ से अलग होकर सड़क पर गिर गए।
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इस घटना के कुछ निष्कर्ष कुछ सवाल और कुछ सबक हैं :
– जिस युवा की इनोवा गाड़ी थी वह उसे बिना मेहनत मिली थी। यदि युवा ने अपने परिश्रम से यह गाड़ी खरीदी होती तो यह दुर्घटना नहीं होती।परिश्रमी लोगों की जीवन शैली कुछ अलग होती है।
– ये सभी युवा आर्थिक रूप से अपने माता-पिता पर आश्रित थे लेकिन माता-पिता का उन पर कोई नियंत्रण नहीं था।
-ऐसा लगता है कि जिस संस्कृति और पारिवारिक वातावरण में ये युवा पले बढ़े,वहां उनके लिए मैसेज था कि बेटा हमने खूब कमाया है (कैसे भी) अब तुम हमारे धन पर इंजॉय करो और हम तुम्हें इंजॉय करते हुए देखकर प्रसन्न होंगे।
-हमारे देश में जिन पारिवारिक संस्कारों की बात होती है क्या वह इन बच्चों को मिले ?
-हम पाश्चात्य संस्कृति के बारे में अनेक नेगेटिव अवधारणा पाल कर बैठे हैं लेकिन वहां बेरोजगार युवाओं के शराब पीकर पार्टी करने और हाई स्पीड में ड्राइव कर दुर्घटना से मृत्यु के समाचार अपवाद स्वरूप ही मिलते हैं। वहां अधिकांश परिवार अपने बच्चों को अपने पैसों से ऐश नहीं करवाते। भारत में भी अपनी मेहनत से जिन लोगों ने पैसा कमाया है वह अपने बच्चों को ऐश करवाने के बजाय अच्छे संस्कार देते हैं।
-क्या हम सब को यह सबक नहीं मिलता कि हमने धन कमा लिया है इसका अर्थ यह नहीं है कि इसको इस प्रकार खर्च करें कि बच्चों को उनकी पात्रता से कई गुना अधिक महंगी गाड़ियां और अन्य ऐश के साधन देकर मौज मस्ती की छूट दे दें और यह छूट अंततोगत्वा पूरे परिवार के लिए उम्र भर शोक मनाने का कारण बन जाए। प्रसंगवश , अकूत धन अपने ग्राहकों और कर्मचारियों का शोषण करके, टैक्स चोरी करके अथवा घूस लेकर ही कमाया जा सकता है, हालांकि इसके कुछ अपवाद हो सकते हैं। (मैं चाहता हूं कि कुछ अमीर व्यापारी और अफसर मेरे इस बयान को सार्वजनिक मंच पर चैलेंज करें।)
– देहरादून के कुछ समझदार अभिभावक ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने बच्चों को पुलिस थाने लाकर मृत युवक – युवतियों के शव दिखाएं ताकि दुर्घटना से जिन लोगों के सिर धड़ से अलग हो गए थे उनके शव देखकर बच्चे सबक लें कि तेज रफ्तार से गाड़ी नहीं चलानी है।अमीर लोगों तथा उन माता-पिता के लिए भी जो अमीर नहीं है लेकिन उनके बच्चों की किसी अमीर साहबजादे या साहबजादी से दोस्ती हो गई है उनके लिए भी यह दुर्घटना एक सबक है।सबक कि अपने बच्चों को सुविधा दें लेकिन इतनी नहीं कि वे उच्छृंखल और गैरजिम्मेदार हो जाएं।
हालांकि दुर्भाग्यवश हम लोग दुर्घटनाओं से सबक लेने की बजाय कुछ दिन में ही इन्हें भूल जाते हैं।
*वेद माथुर*
880 0445333