दस्तक
ये दस्तके
ये शोरगुल
शराफत
और ये आबरू
तन्हा खड़े
बाज़ार मे
खुद से भी नही
रूबरू
दर्द बाकी है जो
मेरे सीने मे
न कर तू अब
उससे कोई गुफ्तगू
आलोक वर्मा, जौनपुर
दस्तक
ये दस्तके
ये शोरगुल
शराफत
और ये आबरू
तन्हा खड़े
बाज़ार मे
खुद से भी नही
रूबरू
दर्द बाकी है जो
मेरे सीने मे
न कर तू अब
उससे कोई गुफ्तगू
आलोक वर्मा, जौनपुर