श्रीमद् भागवत के दशम स्कन्ध के 18वें अध्याय के अनुसार कंस का दूत प्रबला सुर गोकुल को भष्म करने के लिए इसी ज्येष्ठ मास में भेष बदल कर आया था। श्रीकृष्ण ग्वालबालों के संग खेल रहे थे। श्री कृष्ण उसे पहचान लेते हैं और वे अपने साथियों के साथ जिस पेड़ की मदद लेते है वह बरगद का पेड़ था जिसका नाम भानडीह था। श्रीकृष्ण की रक्षा इसी बरगद की पेड़ ने की थी। वनस्पति विज्ञान की एक रिसर्च के अनुसार सूर्य की उष्मा का 27 प्रतिशत हिस्सा बरगद का वृक्ष अवशेषित कर उसमें अपनी नमी मिलाकर उसे पुन: आकाश में लौटा देता है। जिससे बादल बनता है और वर्षा होती है।
वट वृक्ष द्वारा दिन-रात प्राण वायु आक्सीजन प्रदान किया करते है वट वृक्ष प्रकृति से ताल-मेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम एवं द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पेड़ों की पूजा करने के उदाहरण मिलते है। वनस्पति विज्ञान की रिपोर्ट के अनुसार यदि बरगद के वृक्ष न हों तो ग्रीष्म ऋतु में जीवन में काफी कठिनाई होगी।
भगवान श्रीराम ने की बदगद की पूजा-
त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने बनवास के दौरान भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गये थे, उनकी विश्राम की व्यवस्था वट वृक्ष के नीचे किया गया था। दूसरे दिन प्रात: भारद्वाज ऋषि ने भगवान श्रीराम को यमुना की पूजा के साथ ही साथ बरगद की पूजा करके आशीर्वाद लेने का उपदेश दिया था। बाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड के 5वें सर्ग में सीता जी ने भी श्याम वट की प्रार्थना करके जंगल के प्रतिकूल आधातों से रक्षा की याचना किया था। आयुर्वेद के अनुसार वट वृक्ष का औषधीय महत्व है।
इस वर्ष सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तदनुसार 22 मई को वट साबित्री व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए रखेंगी। इस व्रत में ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिन का उपवास रखा जाता है कुछ स्थानों पर मात्र एक दिन अमावस्या को ही उपवास होता है। इस दिन सूर्योदय प्रात: 5.19 बजे और अमावस्या रात्रि 1.30 बजे तक है। यह व्रत साबित्री द्वारा अपने पति को पुन: जीवित करने की स्मृति के रूप रखा जाता है।
मान्यताओं के अनुसार अक्षय वट वृक्ष के पत्ते पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने प्रलयकाल में मारकण्डेय ऋषि को दर्शन दिया था। यह अक्षय वट वृक्ष प्रयाग में गंगा तट पर वेणीमाधव के निकट स्थित है। वट वृक्ष की पूजा दीर्घायु अखंड सौभाग्य, अक्षय उन्नति आदि के लिए किया जाता है। धर्मशास्त्र के अनुसार त्रयोदशी के दिन त्रिदिवसीय व्रत का संकल्प लेकर सौभाग्यवती महिलाओं को यह व्रत आरंभ करना चाहिए। यदि तीन दिन व्रत करने का सामर्थ्य ना हो तो त्रयोदशी के दिन एक भुक्त व्रत, चतुर्दशी को अयाचित व्रत और अमावस्या को उपवास करना चाहिए।
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन उपवास के साथ ही वट सावित्री की व्रत कथा सुनने से सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अखंड होता है तथा उनकी मनोकामना पूरी होती है।