सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक विवाह को मंजूरी से इनकार

ब्यूरो,

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सेम सेक्स मैरिज या समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है। 5 जजों की पीठ ने यह फैसला सुनया, जिसमें भारत के मु्ख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। खास बात है कि बेंच ने पहले ही साफ कर दिया है कि यह मामला स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के दायरे में रहेगा। कोर्ट ने 11 मई को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

फैसले में जस्टिस कोहली, जस्टिस भट्ट और जस्टिस नरसिम्हा की राय CJI चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल से अलग रही। ऐसे में मामला 3-2 को हो गया और अदालत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। 3-2 के साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि नॉन हेट्रोसेक्शुल को साझा रूप से बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं दे सकते।

पांचों न्यायाधीशों में से चार ने अलग-अलग फैसला सुनाया। इनमें सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल शादी को मान्यता देने के पक्ष में नजर आए। वहीं, जस्टिस भट्ट, जस्टिस कोहली और जस्टिस नरसिम्हा ने इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। जब शादी का अधिकार सिर्फ वैधानिक होता है और मौलिक नहीं, तो इसे कानूनी तौर पर लागू नहीं किया जा सकता।

मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने साफ कर दिया है कि अदालत की तरफ से कानून नहीं बनाया जा सकता और विशेष विवाह अधनियिम (SMA) में बदलाव का अधिकार संसद के पास है। खास बात है कि कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया था कि समलैंगिक विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के ही दायरे में रहेगी।

CJI ने कहा कि यह संसद को देखना होगा कि SMA में बदलाव की जरूरत है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘यह अदालत कानून नहीं बना सकती। यह केवल उसके बारे में बता सकती है और उसे प्रभाव में ला सकती है।’ उन्होंने बताया कि अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का बयान रिकॉर्ड कर लिया है, जिसमें उन्होंने क्वीर यूनियन में शामिल लोगों के अधिकार तय करने के लिए समिति गठित करने की बात कही थी।

उन्होंने इस दौरान सरकार को भी समलैंगिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाने के निर्देश सरकार को दिए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि पुलिस को भी समलैंगिक जोड़े के खिलाफ उनके रिश्ते को लेकर शुरुआती जांच के बाद ही FIR दर्ज करनी होगी। उन्होंने कहा कि समलैंगिकता शहरी या अपर क्लास तक सीमित नहीं है।

अपने फैसले में सीजेआई ने कहा कि मौजूदा कानूनों के तहत हेट्रोसेक्शुअल संबंधों (हेट्रोसेक्शुअल यानी ऐसा रिश्ता जिसमें शामिल व्यक्ति विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होता है) में शामिल ट्रांसजेंडर को शादी करने का अधिकार होता है। उन्होंने कहा कि क्वीर कपल समेत अविवाहित लोग साझा तौर पर बच्चे को गोद भी ले सकते हैं। अब तक अविवाहित जोड़े के बच्चा गोद लेने पर रोक थी।

जस्टिस एसआर भट्ट् CJI के फैसले से असहमत नजर आए और उन्होंने कहा कि कानूनी शादी का अधिकार सिर्फ अधिनियमित कानून के जरिए ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि वह सीजेआई की कुछ बातों से सहमत और कुछ से असहमत हैं। उन्होंने कहा कि अदालत को इस मामले में संयम रखना चाहिए और इसका फैसला बहस और चर्चा के जरिए संसद पर छोड़ देना चाहिए।

इस मामले में अंतिम फैसला सुनाने आए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि शादी का अधिकार सिर्फ वैधानिक अधिकार है। यह संवैधानिक अधिकार नहीं है।

20 से ज्यादा याचिकाएं शीर्ष न्यायालय में दाखिल हुई थीं, जिसमें समलैंगिक विवाह को कानून के तहत मंजूरी देने की मांग की गई थी। याचिका दाखिल करने वालों में सेम सेक्स कपल्स, सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ संगठन थे। उन्होंने SMA, हिंदू मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट और विवाह से जुड़े अन्य कानूनों के प्रावधानों को चुनौती दी थी कि ये समलैंगिक जोड़ों को मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत शादी के अधिकार नहीं देते हैं।

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