बेंच जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता भी शामिल थे, ने यूपी के एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद से कहा, ”कोई भी हो, वह कानून से ऊपर नहीं है। ऐसे लोग हैं जो लगभग 30 वर्षों से परेशान हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के मन में देश की सर्वोच्च अदालत के आदेशों के प्रति थोड़ा भी सम्मान नहीं है। कोर्ट की ओर से आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ दोषियों की सजा में छूट के संबंध में उसके निर्देश के अनुपालन में राज्य द्वारा लगभग एक साल की देरी की निंदा की गई है। जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने टिप्पणी की कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। दरअसल, राज्य सरकार ने कहा है कि राज्यपाल को बाध्य करना उचित नहीं है। वे ही संवैधानिक अथॉरिटी हैं, जिन्हें माफी याचिकाओं पर राज्य की सिफारिशों के बाद अंतिम निर्णय लेना होता है।
बेंच जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता भी शामिल थे, ने यूपी के एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद से कहा, ”कोई भी हो, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। ऐसे लोग हैं जो लगभग 30 वर्षों से परेशान हैं। मई 2022 में हमारे समक्ष याचिकाकर्ताओं के आवेदनों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का हमारा निर्देश पारित किया गया था।” बेंच ने निर्देश दिया है कि यदि अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समयपूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर चार सप्ताह के भीतर फैसला नहीं करते हैं तो राज्य के गृह विभाग के प्रमुख सचिव 29 अगस्त को अदालत में उपस्थित रहेंगे।
अदालत इस तथ्य पर नाराज थी कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने 16 मई, 2022 को तीन महीने के भीतर अंतिम निर्णय लेने के निर्देश के बावजूद कई कैदियों की समय से पहले रिहाई की याचिकाओं पर अभी तक फैसला नहीं किया है। अपने मई 2022 के आदेश में, अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया था कि उसके समक्ष सभी याचिकाकर्ताओं ने अपनी वास्तविक सजा के 14 साल से अधिक की अवधि बिना छूट के पूरी कर ली थी। वे सभी सेंट्रल जेल, बरेली में बंद थे।
पिछले साल शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले 42 दोषियों में से कई को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनकी माफी याचिका पर फैसला आने तक रिहा कर दिया था या बरी कर दिया था। समय से पहले रिहाई के लिए कम-से-कम सात ऐसे आवेदन सरकारी प्राधिकरण के समक्ष लंबित थे। बेंच ने ”आपके अधिकारी जितना अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि हमें कुछ कठोर कदम उठाने होंगे। आपके अधिकारियों में न्यायालय के आदेशों के प्रति तनिक भी सम्मान नहीं है। आपके राज्य में यही हो रहा है।”