आलोक वर्मा,
सोलंकी सुबह अपने बॉस गणेश केलकर के हुजूर में पहुँचा। बॉस का मूड उसे कुछ उखड़ा सा लगा। उसने अभिवादन किया बॉस केलकर ने एक फिसलती नजर उस पर डाली फिर अपनी मेड से बोला — ” शांति, एक ऑमलेट और चाय ला देना और हाँ ऑमलेट फ्रेंच लाना,सोलंकी तू भी कुछ लेगा”।
उसने सोलंकी से पूछा तो वह अचकचा गया फिर सोलंकी हड़बड़ाकर बोला– ” नही। मैं नाश्ता करके आया”। बॉस ने उसकी तरफ़ देखा।
” चाय। चाय लूंगा मैं” — सोलंकी शांति से बोला।
” हम्म”– बॉस केलकर ने कहा और सोलंकी से पूछा ” माल की क्या पोजीशन है”
यही वो सवाल था जिससे सोलंकी की गले की घण्टी जोर से उछली।
” अभी पता नही चला”– कहकर वह नीचे देखने लगा।
**
मनीष गुप्ता सीएसटी स्टेशन पर उतरा और वही से उसने टैक्सी की।
” नरीमन” टैक्सी ड्राइवर से उसने कहा।
टैक्सी ड्राइवर ने मीटर डाउन किया और टैक्सी को गियर में डाला।
नरीमन पॉइंट मुम्बई की शानदार जगह थी। सामने विशाल समुद्र।पीछे ऊँची बिल्डिंगे। सैलानियों की भीड़ लगी रहती थी। शाम का वक्त हो चला था । सन सेट के समय काफी भीड़ हो जाती थी।
आशी ने उससे वही मिलने को कहा था। आशी उसकी गर्लफ्रेंड थी जो एक अमीर ज्वेलर की बेटी थी और अपना बुटीक चलाती थी।
तभी मनीष का सेल फोन बजा।उसने देखा आशी लाइन पर थी।
” हां” उसने कहा।
” पहुँच गए” आशी ने पूछा।
” बस अभी पहुँचा” मनीष बोला।
“ओके, आती हूँ।” आशी बोली।
” ओके ” मनीष ने कहा और फोन काट दिया।
मनीष किनारे बैठ गया और एक सिगरेट सुलगा ली। मनीष यूपी के बनारस के रहने वाला था मुम्बई में किसी मल्टी नेशनल कम्पनी में नौकरी करता था। अभी शादी नही की थी। एक दिन किसी पार्टी में आशी उससे मिली। दोनो एक दूसरे को पसंद करने लगे। वे कब एक दूसरे के बेहद करीब आ गये उन्हें पता न चला।
” मनीष” उसने देखा आशी आ रही थी।
उसने मुस्कुरा कर हाथ हिलाया।
मनीष की नौकरी उसका फ्रंट थी असल मे गणेश केलकर नाम के लोकल मवाली के ड्रग्स डिवीजन का इंचार्ज था। इस समय मनीष परेशान था क्योंकि नेपाल के रास्ते आई हिरोइन की एक बड़ी खेप उसके प्रतिद्वंदी गिरोह में से किसी ने लूट लिया था और माल का पता नही चल रहा था। आज सुबह सोलंकी बॉस गणेश केलकर से मिल कर आया था बॉस ने दो दिन का वक्त दिया था।
मनीष इन सबसे बहुत टेंशन में था इसीलिये वह आशी से मिलने आया था।
“क्या बात है? आज मूड में नही हो” –आशी ने पूछा।
” कुछ काम की टेंशन है। कुछ खास नही। तुम बताओ,सटरडे को अलीबाग का प्रोग्राम पक्का है न ” उसने कहा।
” कल फाइनल हो जायेगा। मेरी कल दोस्तों से बात होगी।’– आशी बोली।
मनीष ने बेहद अनुराग से उसे देखा। कितनी निश्चल,कितनी मासूम है मुम्बई जैसे शहर में रहते हुये भी बेहद मासूम थी। मासूम थी पर बेवकूफ नही थी एक न एक दिन उसके बारे में में सब जान लेगी। सोचकर वो घबरा गया।
गणेश केलकर कोलाबा के अपने आलीशान ऑफिस में अपनी शानदार विलायती कुर्सी पर बैठा था और सामने उसके मैनेजर थे। केलकर अपने धन्धों को कारपोरेट की तर्ज पर चलाता था। वह एक बहुमंजिला नई बनी इमारत थी जिसके टॉप फ्लोर पर उसका ऑफिस था। अन्य फ्लोर पर विभिन्न कम्पनियों के ऑफिस थे। केलकर का 5 करोड़ की हिरोइन किसी ने लूट ली थी इसीलिये यह मीटिंग बुलाई गई थी। सोलंकी और मनीष के अलावा आबिद, नरेश, इमरान,सुल्तान और केलकर का साला विनय पाराशर भी मौजूद था।
” सोलंकी, माल का पता कैसे चलेगा। वो कौन लोग थे? कौनसा गिरोह था जिसने हमारा माल लुटा” केलकर बोला।
” बॉस, हमारी कोशिश जारी है। हमारे भेदिये खोज कर रहे है”– सोलंकी मरे हुए स्वर में बोला।
” 5 करोड़ का माल था। पार कर दिया हरामजादों ने और कोई सुराग भी नही मिल रहा है। वो लड़की, वो हमारी कूरियर, एयर होस्टेस क्या बोल रही है।” केलकर ने शांत स्वर में कहा। केलकर कभी गुस्सा नही करता था पर उसके दबदबे में कोई कमी न थी।
” वो जब एयरपोर्ट से बाहर निकली तभी दो लड़कों ने उसका बैग छीन लिया था । सीसी टीवी में भी आया और कई लोगों ने देखा भी।” सोलंकी बोला।
” हम्म, कल इस लड़की को बुलाओ। मेरे को मिलना है इससे।” केलकर बोला और मीटिंग बर्खास्त कर दी।
हम्म केलकर का तकिया कलाम था।
रैडिसन ब्लू रिजॉर्ट & स्पा कर्जत में मनीष गुप्ता सोलंकी के साथ मौजूद था। वहाँ उनकी एक नए ड्रग सप्लायर से मीटिंग थी। ये नया सप्लायर उन्हें आधे दामों पर माल मुहैया करा सकता था। उसका म्यांमार, लाओस में कांटेक्ट था। हबीब खान सप्लायर का नाम था। अभी। वह वहाँ नही पहुँचा था। वक्त काटने के लिए वो सोलंकी के साथ चियर्स कर रहा था।
तभी काल बेल बजी।सोलंकी ने दरवाजा खोला। सामने हबीब खान खड़ा था। सोलंकी किनारे हुआ और बोला” वेलकम”
दोनों ने हाथ मिलाये मनीष भी उठकर खड़ा हो गया उसने भी हाथ मिलाया।
” कोई दिक्कत तो नही हुई।”– मनीष बोला।
“नही, कोई दिक्कत नही हुई”– हबीब ने कहा।
“आपके माल का पता लगा”– उसने पूछा।
” नही अभी पता नही लगा।”– मनीष ने कहा।
” खबर है कि अन्ना के गैंग का काम है”– हबीब ने कहा।
“अरे,किसने कहा”– मनीष ने पूछा।
” कुछ लोग सस्ते दाम पर माल बेचने की फिराक मे है, अन्ना के आदमी है वो मुझे पता लगा” हबीब बोला।
” ओह” सोलंकी ने कहा।
” आप हमें माल की सप्लाई कहाँ देगें” मनीष ने पूछा।
” मुम्बई” हबीब ने कहा।
” माल की पेमेंट 50 % एडवांस में देना होगा” — हबीब ने कहा।
” ओके” — मनीष ने कहा।
“ठीक है”– मैं निकलता हूं हबीब ने कहा।
” ठीक है फिर मिलते है। माल की कोई खबर लगे तो देना” — मनीष ने हबीब से कहा।
“जरूर” — हबीब ने कहा और बाहर निकल गया। सोलंकी उसे बाहर छोड़ने गया।
मनीष का सेलफोन बजा। उसने स्क्रीन पर निगाह डाली तो देखा शीला का फोन था। जरूर बॉस बात करना चाह रहा है। शीला बॉस की सेक्रेट्री थी। उसने काल रिसीव की” हलो” बहुत संभलकर उसने बोला।
” मीटिंग हो गई”– केलकर लाइन पर था।
” जी बॉस”– उसने कहा।
” माल का पता चल गया है। तुम लोग अंधेरी आना। मैं उधर ही मिलूंगा।”– केलकर बोला।
” ठीक है बॉस। मैं भी यहाँ से निकल रहा हूँ” — मनीष ने कहा।
“ओके” केलकर बोला और फोन काट दिया।
सोलंकी वापस आया। मनीष ने कहा” बॉस का फोन आया था। माल का पता चल गया है,अंधेरी बुलाया है।”
“वाह, किसने किया ये कमाल” सोलंकी बोला।
” पता नही। चलने की तैयारी कर। वहीं पहुंचकर पता चलेगा”– मनीष बोला।
“बवाल बढ़ेगा” — सोलंकी चिंतित स्वर में बोला।
होटल चन्द्रलोक लोनावला में पोस्ट आफिस के पास ही था जहां इस घड़ी हबीब खान होटल के कमरे में मौजूद था। खान खांडेकर का इंतजार कर रहा था।हेमन्त खांडेकर 27 साल का था पर अपराध की दुनिया मे बहुत तेजी से अपना मुकाम बनाने में लगा था। उसके साथी गुड्डू खान,पावले,रशीद और देशमुख थे। ये पांचों हमेशा साथ रहते और मिलकर काम करते थे। वैसे सबका दर्जा बराबर का था और वे आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे पर हेमंत का दर्जा खास था। मुसीबत की घड़ी में उसकी ही चलती थी और सब मानते थे।
” मैं खान से मिलने कू जा रहा। अगर कोई खतरा दिखे तो रिंग करने का”– हेमन्त ने अपने साथियों को देखकर कहा। वे एक लाल पजेरो में सवार थे।
“ठीक है”– देशमुख बोला।
” एक बात और गाड़ी को होटल से दूर ले जाने का। जब अपुन आयेगा तो रिंग करेगा”
” देशमुख गाड़ी ले जायेगा। बाकी हम सब इदरिच ही रुकेगा” गुड्डू बोला।
” वो तुम लोग देखने का,पण एकदम अलर्ट रहने का। खतरा बहुत है”
“तू जा जाकर खान से मिल, जो होगा देखा जायेगा”– देशमुख बोला।
“ओके”
देशमुख ने गाड़ी ले जाकर होटल की मारकी में रोकी, हेमन्त उतरा उसके साथ गुड्डू,रशीद और पावले भी उतरे।
हेमन्त लिफ्ट में सवार हो गया पर रशीद, पावले और गुड्डू रिसेप्शन पर ही रुक गए। देशमुख गाड़ी को बाहर ले गया।
***
खांडेकर लिफ्ट से थर्ड फ्लोर के 305 नंबर कमरे के बाहर पहुंचा। हकीकतन वो होटल का कमरा न होकर एक आलीशान सूट था। बड़े होटलों में बड़े लोगों में सूट का ज्यादा प्रचलन था। खांडेकर मुंबई की जरायम की दुनिया का नया उभरता सितारा था। डाक की स्मगलिंग से शुरू हुआ उसका सफर आज नारकोटिक्स की स्मगलिंग तक आ पहुंचा था। इब्राहीम मिर्ज़ा और अन्ना के गैंग से हुई उनकी हालिया जुगलबंदी ने उसके गैंग का हौसला इतना बढ़ा दिया था कि वे केलकर का माल लूटने का देख सके, देख सके क्या उसे पूरा भी के लिया। पांच करोड़ की लूटी हुई हेरोइन का सौदा करने के लिए ही वह खान से मिलने आया था।मीटिंग के लिए खान ने ही लोनावाला चुना था,कारण खान मुंबई से दूर रहना चाहता था,वह नहीं चाहता था कि एन सीबी के भेदियो की निगाह में आए।
खांडेकर ने कालबेल के पुश बटन पर अपनी उंगली रखी। जवाब में खान ने खुद दरवाजा खोला।
” आओ” उसने कहा और एक तरफ हट गया।
खांडेकर अंदर गया, खान ने उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया और खुद भी एक सोफ़ा चेयर पर बैठ गया,कमरे में और कोई नहीं था।
“तो वो पांच करोड़ का केलकर का माल तुम्हारे साथियों ने लूटा है”
” हां,इसीलिए मै यहां हूं”
“पचास टका अभी दूंगा, बाकी पेमेंट दस दिन बाद”
” नो, उधार नहीं हो पायेगा, पेमेंट एक बार में करनी होगी, वरना नक्की करो।”
” ओह, पर चार से ज्यादा नहीं दे सकता, खतरा बहुत है केलकर जान गया तो जान के लाले पड़ जायेंगे सो अलग”
” चार पचास से एक पैसा कम नहीं” खांडेकर खान की आंख में आंख डालकर बोला।
“चार पच्चीस, फाइनल ….”
खांडेकर कुछ देर सोचता रहा फिर बोला ” डन”
” माल की डिलीवरी भी यहीं पर”
“ठीक है”
“परसों शाम सात बजे, खंडाला में”
“ओके” खांडेकर ने खान से हाथ मिलाया और सूट से बाहर निकला।
रिशेप्सन पर खांडेकर के साथी उसका इंतजार कर रहे थे वे बाहर निकले और गाड़ी में सवार होकर निकल लिए।प्र वहां कोई और भी था जिसकी खांडेकर और उसके साथियों पर नजर थी।
पांचकरोड़की_ हेरोइन
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चार
” हमारा माल अन्ना और मिर्ज़ा के लड़कों ने लूटा है, उनसे माल वापस लेना है और सबक भी सिखाना है ताकि दोबारा कोई ऐसा करने के पहले सोचे”- केलकर गुस्से में था।
” कौन है वो “- सोलंकी ने पूछना चाहा।
” कोई नवा लड़का है, खान से मिला माल बेचने को, कल खंडाला में सुपुर्दगी करेगा। तू अपनी टीम लेकर काबू कर।”
“तीन टीम बनाने का एक को तुम लीड करेगा, बाकी दो को आबिद और पाराशर लीड करेगा। कोई बच कर जाने पाये। मनीष तुम अन्ना और मिर्ज़ा दोनो में से किसी को हिट करने का इंतजाम कर, कोई भी नुकसान,बड़ा नुकसान इन दोनों का होते देखना चाहता मैं,जल्दी।”
” ठीक है बॉस”-
वो सब अंधेरी में इम्पीरियल स्टूडियो के पास एक बिल्डिंग में बैठे थे। उस बिल्डिंग में एक डबिंग स्टूडियो भी था शायद वो भी केलकर की संपत्ति थी। केलकर का काफी पैसा फ़िल्मों में लगा हुआ था। उसका जीजा एक बड़ा नेता था और सरकार में रसूखदार मंत्री था। केलकर का जीजा अशोक दाभोलकर सार्वजनिक तौर पर केलकर से दूर रहता था पर उसके हर स्याह सफेद धंधे में शामिल था।
**
विक्की देशलहरे 28 साल का था बचपन से उसे डॉन बनने का शौक था। फिल्मों का इतना जुनून था कि खुद को सलमान समझता था गाहे बगाहे अपने दोस्तों से भी कहता था दोस्त भी मजा लेते थे। आज उसकी जिंदगी का अहम दिन था। वो केलकर के गैंग में साल भर से था पर उसे कभी कोई ऐसा काम नही मिला जिससे वह अपना दबदबा बना सके और बॉस की निगाह में चढ़ सके।
आज उसे मौका मिला था कि वह खुद को साबित कर सके। मनीष ने उसे मिर्ज़ा को उड़ाने को बोला था।
मिर्ज़ा बांद्रा ईस्ट में रहता था। वह एक कार में बैठा था उसके साथ राजू था जो कि इन मामलों में कार चलाने में एक्सपर्ट था। पीछे बाइक पर विक्टर और मिश्रा थे जो किसी दुश्वारी में बैकअप देते। विक्की को टेंशन हो रही थी उसने एक सिगरेट जला ली और इंतजार करने लगा। तभी एक कार आई जिसमे से मिर्ज़ा उतरा, उसके साथ दो लोग और थे। कार आगे चली गई मिर्ज़ा अपने साथियों के साथ बिल्डिंग की ओर बढ़ा तभी विक्की ने रायफल से गोली चलाई, मिर्ज़ा कटे पेड़ की तरह गिरा, विक्की ने फिर गोली चलाई जो मिर्ज़ा के सीने पर लगी। तभी मिर्ज़ा के साथियों ने गोली चलानी शुरू कर दी थी। विक्की सीट के नीचे छुप गया था,राजू ने कार भगा दी। कुछ दूर जाने पर राजू ने गाड़ी रोक दी। विक्की उतरा, पीछे से विक्टर बाइक से पहुँचा उसने मिश्रा को उतारा और विक्की को बिठाकर कर चल दिया।
***
मिर्ज़ा की हत्या के बाद मुम्बई का अंडरवर्ल्ड सहमा सा था। एक गैंगवार की भूमिका तैयार थी। विभिन्न गिरोहों के आका भी अंदर से हिले हुये थे,ऊपर से कोई नही बोल रहा था पर अंदर से सबकी बजी पड़ी थी। जेके, जो कि ड्रग्स और बार का धन्धा करता था और पुराना डान था उसने समझौते की पेशकश की। अन्ना और केलकर से बात की और मामले को खत्म करने के लिए जुहू के एक होटल में मीटिंग फिक्स की थी।
केलकर कोलाबा में अपने साथियों के साथ मीटिंग कर रहा था।
” मैं मीटिंग में मनीष,सोलंकी और आबिद के साथ रहेगा बाकी लोग सबकी मूवमेंट को वाच करेंगे। अगर किसी को मौका लगे तो अन्ना को खत्म कर देना।”—- केलकर ने साथियों से कहा और सबके चेहरे को देखने लगा।
“आप रिस्क क्यों ले रहे हैं बॉस, ऐसी मीटिंग तो हम अटेंड कर सकते है,हो सकता है ये उनका कोई प्लान हो। अन्ना को कम आँकना ठीक नही “— मनीष ने केलकर से कहा।
“हम्म”—
” ठीक है तू देख ले पराशर को साथ लेकर जाना। सोलंकी और आबिद को भी”
” और हा इस मामले को जल्दी निबटा”– केलकर ने कहा।
“यस बॉस मैं देखता हूँ”– मनीष बोला और मीटिंग खत्म हो गई।
**
अलीबाग के बीच बहुत साफ सुथरे थे,वीकेंड में वहाँ मुंबई से काफी लोग आते थे। आशी मनीष के संग अलीबाग में आई हुई थी। बीच के किनारे छोटे छोटे खूबसूरत कॉटेज बने थे जो सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त थे। दोनो बीच के किनारे कुर्सियों पर लेटे बीयर चुसक रहे थे। मनीष अपने और आशी के भविष्य को लेकर सोच में था। कल की मीटिंग में एक बड़े खून खराबे को उसने रोक लिया था। खांडेकर और उसके साथियों को अपनी गैंग में शामिल करने की राय केलकर को पसंद आई थी।
ताकतवर की दोस्ती में अपनी ताकत है ये फंडा वो केलकर को समझाने में कामयाब रहा था। खांडेकर में उसे गैंग के लिए होशियार बन्दा दिखा था।
बास को अपना माल मिलने की खुशी थी। आज वह अलीबाग आया था।
“क्या सोच रहे हो”– आशी बोली।
“तेरे बारे में”
“क्या”- वो मुस्कुराई।
“यही कि तू इतनी खूबसूरत और अमीर होकर एक बनारसी के चक्कर मे कैसे आ गई”
“धत्त” — वो शरमाई, उसके गालों पर लाली छा गई।
“आशी मुझे तुमसे कुछ कहना है”–
“क्या, बोलो न”
“आज नही”
“फिर कब”
“बाद में”
“ठीक है”
इस तरह वे दोनों हँसते बोलते रहे।
तभी मनीष के सेलुलर की घन्टी बजी, उसने स्क्रीन पर निगाह डाली तो पाया सोलंकी लाइन पर था।
” आप कब लौटोगे, तिवारी मिलना चाहता है”
“रात को आ जाऊँगा, 11 बजे मीटिंग रख लो”
“ठीक है”
तिवारी एनसीबी का अधिकारी था जिसके माध्यम से उनको माल सप्लाई होता था। जो माल एनसीबी पकड़ती थी वो वह उनसे खरीद लेते थे फिर वही माल मार्केट में बेच देते थे। तिवारी की वजह से उनको बहुत सी लीड मिल जाती थी।
मिर्ज़ा की हत्या के बाद मुम्बई का अंडरवर्ल्ड सहमा सा था। एक गैंगवार की भूमिका तैयार थी। विभिन्न गिरोहों के आका भी अंदर से हिले हुये थे,ऊपर से कोई नही बोल रहा था पर अंदर से सबकी बजी पड़ी थी। जेके, जो कि ड्रग्स और बार का धन्धा करता था और पुराना डान था उसने समझौते की पेशकश की। अन्ना और केलकर से बात की और मामले को खत्म करने के लिए जुहू के एक होटल में मीटिंग फिक्स की थी।
केलकर कोलाबा में अपने साथियों के साथ मीटिंग कर रहा था।
” मैं मीटिंग में मनीष,सोलंकी और आबिद के साथ रहेगा बाकी लोग सबकी मूवमेंट को वाच करेंगे। अगर किसी को मौका लगे तो अन्ना को खत्म कर देना।”—- केलकर ने साथियों से कहा और सबके चेहरे को देखने लगा।
“आप रिस्क क्यों ले रहे हैं बॉस, ऐसी मीटिंग तो हम अटेंड कर सकते है,हो सकता है ये उनका कोई प्लान हो। अन्ना को कम आँकना ठीक नही “— मनीष ने केलकर से कहा।
“हम्म”—
” ठीक है तू देख ले पराशर को साथ लेकर जाना। सोलंकी और आबिद को भी”
” और हा इस मामले को जल्दी निबटा”– केलकर ने कहा।
“यस बॉस मैं देखता हूँ”– मनीष बोला और मीटिंग खत्म हो गई।
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अलीबाग के बीच बहुत साफ सुथरे थे,वीकेंड में वहाँ मुंबई से काफी लोग आते थे। आशी मनीष के संग अलीबाग में आई हुई थी। बीच के किनारे छोटे छोटे खूबसूरत कॉटेज बने थे जो सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त थे। दोनो बीच के किनारे कुर्सियों पर लेटे बीयर चुसक रहे थे। मनीष अपने और आशी के भविष्य को लेकर सोच में था। कल की मीटिंग में एक बड़े खून खराबे को उसने रोक लिया था। खांडेकर और उसके साथियों को अपनी गैंग में शामिल करने की राय केलकर को पसंद आई थी।
ताकतवर की दोस्ती में अपनी ताकत है ये फंडा वो केलकर को समझाने में कामयाब रहा था। खांडेकर में उसे गैंग के लिए होशियार बन्दा दिखा था।
बास को अपना माल मिलने की खुशी थी। आज वह अलीबाग आया था।
“क्या सोच रहे हो”– आशी बोली।
“तेरे बारे में”
“क्या”- वो मुस्कुराई।
“यही कि तू इतनी खूबसूरत और अमीर होकर एक बनारसी के चक्कर मे कैसे आ गई”
“धत्त” — वो शरमाई, उसके गालों पर लाली छा गई।
“आशी मुझे तुमसे कुछ कहना है”–
“क्या, बोलो न”
“आज नही”
“फिर कब”
“बाद में”
“ठीक है”
इस तरह वे दोनों हँसते बोलते रहे।
तभी मनीष के सेलुलर की घन्टी बजी, उसने स्क्रीन पर निगाह डाली तो पाया सोलंकी लाइन पर था।
” आप कब लौटोगे, तिवारी मिलना चाहता है”
“रात को आ जाऊँगा, 11 बजे मीटिंग रख लो”
“ठीक है”
तिवारी एनसीबी का अधिकारी था जिसके माध्यम से उनको माल सप्लाई होता था। जो माल एनसीबी पकड़ती थी वो वह उनसे खरीद लेते थे फिर वही माल मार्केट में बेच देते थे। तिवारी की वजह से उनको बहुत सी लीड मिल जाती थी।
***महेश चिपलूनकर उम्रदराज पुराना मवाली था जो कभी बड़ा मवाली रह चुका था,आजकल रिटायर्ड जिंदगी जी रहा था, कहने को तो वो रिटायर जिंदगी जी रहा था पर उन नये मवालियों का सरपरस्त था जो किसी गैंग से न जुड़कर फ्री लांसर थे। अगर कोई बड़ा हाथ मारता तो उस माल को महेश अपने कॉन्टैक्ट से ठिकाने लगवा देता हालांकि वो एक्टिव ऑपरेट नही करता पर बैकअप सपोर्ट में कमी नही रखता था। वो इस बात का भी ध्यान रखता था कि मुम्बई अंडरवर्ल्ड के बड़े बॉस की निगाह में न आये।
महेश चिपलूणकर अपने दो साथियों अजित सिंह और बबलू खान के साथ बन्दरगाह के इलाके में डिमेलो रोड पर बने एक बार मे बैठा घूंट लगा रहा था। अंडरवर्ल्ड में गणेश केलकर के माल की लूट और उसके बाद हुई मांडवली कि चर्चा जोरों पर थी। खांडेकर के गैंग की भी बहुत वाहवाही थी ,केलकर का खांडेकर को माफ़ करना और उसे अपने गैंग में शामिल करना लोगों को हैरत में डाल रहा था इस वक्त उन तीनों में भी इसी को लेकर चर्चा चल रही थी।
” केलकर ने बहुत सही कदम उठाया जो उसने खांडेकर और उसके साथियों को अपनी गैंग में शामिल कर लिया।” चिपळूनकर बोला।
“पर वो टिकेगा कब तक” खान बोला।
“जब तक केलकर का सिक्का चल रहा है तब तक वो टिकेगा”
“खांडेकर को शामिल करने से केलकर का ताकत बढ़ गया बॉस”
” केलकर बहुत ताकतवर है था और रहेगा पर उसको टक्कर देने वाला अभी कोई नही, इधर”
“सही कहा”
तभी विजयसिंह अल्बर्ट के संग बार मे पहुँचा और एक खाली टेबल पर बैठ गया। अल्बर्ट ने एक वेटर को इशारा किया। वेटर ड्रिंक्स ले आया दोनो ने चियर्स बोला और चुसकने लगे।
तभी बबलू ने विजयसिंह को पहचान लिया उसने महेश से कहा “बॉस ये विजयसिंह है, छुपा रुस्तम, टॉप क्लास का हुनरमंद”
” बहुत डेंजर भिड़ू है, अगर ये हमारे साथ हो जाय तो कोई बड़ा हाथ मार सकते”
” देख लो इसे और पहचान लो”
फिर वे तीनों बाहर निकल गए।
महेश चिपलूनकर और उसके साथियों को जाते हुये विजयसिंहऔर अल्बर्ट ने देखा।
“वे तुमेरे बारे कुछ बात कर रहे थे” अल्बर्ट ने कहा
” कौन थे ये लोग” विजय चिंतित स्वर में बोला।
” महेश चिपलूनकर पुराना मवाली है कभी भाई का खास हुआ करता था आजकल खाली है अपना गैंग डालने का औकात नही है इसलिए छुप कर काम करता है, कुछ भाई लोगों का सरगना है आदमी बहुत है ,इसके पास पर अपना गैंग चलाने का गुर्दा नही है इसके पास। पण डाक के एरिया में इसका बहुत पकड़ है”
” ओह, तो हमेरे को क्या”
“और ड्रिंक मगा, इनके बारे में मत सोच,जो होगा देखेंगे।” विजय ने किस्से का पटाक्षेप किया।
डिमेलो रोड पर स्थित उस बार का नाम प्रिंसेस बार था उस वक्त वह ग्राहकों से भरा हुआ था। सिगरेट के धुंऐं और शोर शराबे से वह पूरी तरह रचा बसा था। प्रिंसेस बार दिलजलों की एन मनपसंद जगह थी। चेतना पर हावी हो जाने वाला शोर शराबा। तन्हाई का दुश्मन हुजूम। किसी गम, किसी याद को घोलकर पी जाने वाली शराब।
विजय अल्बर्ट के साथ वही बैठा था उसका तीसरा और अल्बर्ट का पांचवा पैग था।
“अल्बर्ट, तू कभी सोचता है कुछ अपन ऐसे ही रह जायेगा या जिंदगी में कोई बढ़िया दिन भी देखेगा” विजय को भी नशा हो रहा था वह झूमते हुये बोला।
“वक्त का इंतजार कर विज्जू, आयेगा अपना भी वक्त आयेगा”
“टेम खराब हो तो आदमी ऊँट पर भी बैठा हो तो कुत्ता काट लेता है इधर” विजय अपनी एक आंख दबाकर हँसता हुआ बोला। इस बात पर दोनों हँसने लगे। अल्बर्ट ने वेटर को इशारा किया और बोला
” रिपीट करने का और साथ मे चिकन लाने का”
वेटर दो ड्रिंक और रोस्टेड चिकन ले आया।
हरीश शुक्ला 45 साल का शौकीन व्यक्ति था, शराब का जबरदस्त रसिया था। शाम ढलते ही बाकायदा तैयार होता था,फ्रेश होकर शावर लेकर अपनी बाईक से अपने पसंदीदा बार सीव्यू में पहुँच जाता था फिर बार बन्द होने के बाद ही वहाँ से निकलता था। निकलने से पहले बार के हर वेटर,कुक और दरबान को टिप देना नही भूलता था।शराब के नशे गालियां बकता घर पहुँचता था पर घर का गेट देखते ही बन्दा शरीफ बन जाता था।अपने बच्चों और बीवी का उसे लिहाज था। काम धन्धा प्रत्यक्ष कुछ नही था पर सूद पर पैसा बाटना और जमीन,मकान की दलाली में उसकी रुचि थी। विजय सिंह से उसकी बार में ही दोस्ती हो गई थी। दारू के नशे में पुराने दोस्तों के बेवफाई के किस्से बयान करता, वक्त को कोसता बकता, झकता शुक्ला टुन्न हो जाता तब विजय सिंह वहाँ से विदा लेता। शुक्ला का कमाल यह था कि वह अपनी बाइक से ही घर वापस लौटता और ऊपरवाले की मेहरबानी से सलामत पहुँचता था। शुक्ला शराब का इतना रसिया था कि वन फार रोड के 4,5 पैग मार जाता था।
दाभोलकर एक फाइव स्टार होटल बना रहा था आज उसकी ओपेनिंग है दाभोलकर ने पार्टी दी है गणेश केलकर आज बहुत ज्यादा बिजी है। पार्टी में सब बड़े लोग आ रहे हैं दिल्ली से कुछ बड़े नेताओं को भी आना है ।
दाभोलकर केलकर से ” सब कुछ ठीक है है न”
“हाँ, सोलंकी को बोल दिया है वो सब देख लेग्स”
“कोई गड़बड़ न हो”
“ना तुम फिकर न करो”
“ओके, मैं मेहमानों को देखता हूँ”।
*
सीव्यू बार की महफ़िल अभी पूरी तरह से जवान नही हुई थी हरीश शुक्ला बार के एक कोने में काबिज था रात के 9 बजने को थे जब विजय और अल्बर्ट बार में पहुंचे। विजय ने हरीश को देख लिया था वो अल्बर्ट को लेकर हरीश शुक्ला के पास पहुंच गया।
जारी …