पाँच दानें

पाँच दानें

एक समय की बात है! जब श्रावस्ती नगर के एक छोटे से गाँव में अमरसेन नामक व्यक्ति रहते थे। अमरसेन बहुत होशियार थे, उनके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे। परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चले थे। पत्नी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ति का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये? ये निर्णय लेने के लिए उन्होंने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पाँच दानें दिए, और कहा कि मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा, तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपित्त उसे ही मिलेगी। इतना कहकर अमरसेन वहां से चले गये।
पहले बहु-बेटे ने सोचा, पिताजी सठिया गये हैं, चार साल तक कौन याद रखता है। हम तो बड़े हैं, तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है। ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दानें फेंक दिये।
दूसरे ने सोचा कि संभालना तो मुश्किल है। यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद दे दें और कहें कि तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ति हमारी हो जाएगी। यह सोचकर उन्होंने वो पाँच दानें खा लिये।
तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे ठाकुरजी को सँभालते हैं, वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे
चौथे बहु-बेटे ने समझदारी से सोचा और पाँचों दानों को एक एक कर के जमीन में बो दिया और देखते-देखते वे पौधे बड़े हो गये और कुछ गेहूं उग आये। फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिये। इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई। पाँच दानें पाँच अंजुल, पांच बोरी, और पचास बोरियों में बदल गए।
चार साल बाद जब अमरसेन वापस आए तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गये तो बेटा बोला, “पिताजी, आपने जो पाँच दाने दिए थे अब वे गेहूं पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभाल कर गोदाम में रख दिया है, उन पर आप ही का हक़ है।” यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, “तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।”
गेहूं के पांच दाने एक प्रतीक हैं, जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरआत करके, किसी कार्य को एक बड़ा रूप दिया जा सकता है। उसी प्रकार, एक छोटी सी ज़िम्मेदारी को भी, उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग कर, सर्वोत्तम (बहुत अच्छी) तरह से निभाया जा सकता है और उसका प्रभाव अद्भुत हो सकता है। विवेक का मतलब है कि हम कम से कम साधनों का प्रयोग कर के ज्यादा से ज्यादा परिणाम दे।🙏🙏
सुप्रभातं सुमंगलं, जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है! आपका हर पल मंगलमय हो!

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