स्नेह का मोल

A.K.Dubey.

सोसायटी कम्पाउंड मे दोनों बुजुर्ग मित्र मोहनबाबू और रमेशबाबू बैंच पर बैठे बतिया रहे थे कि अचानक एक गेंद तेजी से आकर रमेशबाबू के चश्मे पर लगी अचानक ऐसा होने से रमेशबाबू हडबडा गये और चश्मा नीचे गिरकर टूट गया….. सभी बच्चे उनकी और आने से डर रहे थे आखिर एक ने कोशिश की… दादाजी वो गलती से …
फिर लगभग सभी बच्चों ने दोनों कानों को पकडते हुए माफी मांगनी शुरू कर दी….
देख कर खेला करो बच्चों …मोहनबाबू बोले…
कोई बात नहीं मोहनबाबू…. बच्चे हैं खेलेंगे नहीं तो कया करेंगे …जाओ बच्चों मगर थोड़ा ध्यान रखा करो…कहकर भीगी हुई आँखें पोछते हुए वहां से चले गए ….मोहनबाबू की तरह बच्चे भी जानते थे की रमेशबाबू का बेटा उनपर यकीनन बिगडेगा उनकी गलती की वजह से अब दादाजी को जाने कया कुछ नहीं सुनना पडेगा ….और बिल्कुल सही बात थी रमेशबाबू के घरसे अक्सर उनके बेटे की तेजतर्रार आवाजें सुनाई देती थी जोकि अपने पिता की कोई ना कोई गलती को लेकर होती थी और आज भी वहीं हुआ…. आपको पता भी है कितना मंहगा चश्मा था वो ….आ गए तुडवाकर…अब रहिए बिना चश्मे के ….अभी नहीं बनवाकर दे सकता बस …भुगतिए …
पर बेटा बिना चश्मे के मुझे दिखाई नहीं…
तो …ये तुड़वाने से पहले सोचना चाहिए था …
पर पापा ….दादाजी की कोई गलती नहीं थी वो तो हम बच्चे वहां क्रिकेट….
चुप….बहुत बोलता है …बडा आया दादा का चमचा…
तभी दरवाजे पर खटखट हुई….
कौन है ….दरवाजा खोलते हुए रमेशबाबू का बेटा गुस्से से बोला…
अंकलजी मे …..आराध्या…. वो दादाजी को सभी नीचे कम्पाउंड मे बुला रहे है ….
कयो …..कयो बुला रहे हैं ….
आकर आप ही देख लीजिए ना…कहकर आराध्या भाग गई…..
रमेशबाबू अपने बेटे बहु और पोते सहित नीचे कम्पाउंड मे आए ….जहां तमाम सोसायटी के बच्चे मौजूद थे ….
कया हुआ …कयो बुलाया है पापा को ….
बच्चों ने रमेशबाबू को चश्मा दिया….पहनकर देखिए दादाजी कैसा है….
अरे….अरे ये तो मेरा चश्मा …मगर ये तो टूट गया था फिर ….
ये बच्चों का प्यार है जो तुमने कमाया है रमेशबाबू… मोहनबाबू बीच मे बोले….
रमेशबाबू ने मोहनबाबू की ओर हैरानी से देखा….
ऐसे कया देख रहे हो ….हां सचमुच ….प्यार ….बच्चों को भी पता है तुम्हारे बेटे बहु के स्वभाव का जानते थे तुम्हारी कोई गलती ना होनेपर भी ये तुम्हें ही दोषी करार देगे और यकीनन हुआ भी यही है …है ना….
इन सबने अपने अपने घरों से अपनी अगले दिन की पाकेटमनी से आपके लिए ये नया चश्मा बनवाया है ….रमेशबाबू आपने इन्हें डांटा नहीं हमेशा प्यार ही किया वो प्यार और स्नेह का मोल ये मासूम बच्चे समझते है इन्हें पता है आपको चश्मे के बिना दिखाई नही देता ….
दीपक बेटा ….ये तो सोसायटी के बच्चे है जो प्यार की भाषा और स्नेह को समझते है मगर तुम …तुम तो इनके बेटे हो इनके कारण इस दुनिया में आए हो फिर तुम कयो नहीं समझते इस प्यार और स्नेह को ….लगता है तुम भूल गए हो बचपन में किए अपने पिता के उन कामों को जो तुम्हारी ख्वाहिशों से जुडे हुए थे ….जानते हो एक पिता की यही ख्वाहिश होती हैं कि उसके बेटे की कोई ख्वाहिश अधूरी ना रहे इसके लिए वो अधिक और अधिक मेहनत करने से भी नहीं चूकता …तुम्हारे कपडो से लेकर खेलकूद की तमाम चीजें जो तुमने कभी मांगी होगी बिना देरी किए जल्द से जल्द उन्हें पूरा करने की भरसक कोशिश की होगी ….है ना ….
दीपक …एक बात और …बेटा जो तुम आज अपने पिता के साथ सलूक कर रहे हो वो सब तुम्हारा बेटा भी देखता है नादान नहीं है ये आजकल के बच्चे सब समझते भी और सीखते भी है कल जब तुम अपने पापा की उम्र मे पहुंचोगे तो यही सब तुम्हारे साथ दोहराया जाएगा तो …सहन कर पाओगे ….
बेटा ….बबलू के पेड पर आम नहीं लगते ….बाकी तुम स्वयं समझदार हो …..
मुझे माफ कर दीजिए अंकलजी…. मुझे माफ कर दीजिए पापा ….मैंने पता नहीं …..कैसे भूल गया आपके प्यार को आपकी वो स्नेहलता को ….मुझे माफ कर दीजिए …कहकर दीपक रमेशबाबू के पैरों में गिर पड़ा….
रमेशबाबू ने दीपिक को उठाकर सीने से लगाते हुए क्षमा कर दिया….
एक दोस्त की सुंदर रचना🙏🙏
जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!आपका हर पल मंगलमय हो!

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