ब्यूरो,
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला जज से अभद्रता की बिना शर्त माफी मांगने पर वकील के खिलाफ अवमानना मामले का निस्तारण कर दिया। वकील ने अदालत में एक महिला न्यायाधीश को अपशब्द कहा था। कोर्ट ने वकील पर दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण मऊ में जमा करना होगा। इसके अलावा अवमानना करने वाले अधिवक्ता को उसके आचरण और व्यवहार के संबंध में दो साल की अवधि के लिए निगरानी में रखा जाएगा। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार एवं न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने दिया है।
अवमाननाकर्ता अधिवक्ता कृष्ण कुमार यादव ने मऊ में एक महिला न्यायाधीश के खिलाफ कुछ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था जब वह मार्च 2019 में कोर्ट के समक्ष एक पक्ष द्वारा की गई शिकायत को सुन रही थीं। हाईकोर्ट द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोप में स्पष्ट रूप से कहा गया है अधिवक्ता ने अपने आचरण से अदालत का अपमान किया है और अदालत के अधिकार को कम करने की कोशिश की है। न्यायिक कार्यवाही के उचित कार्य में भी बाधा डाली है और हस्तक्षेप किया है।
कोर्ट ने कहा कि उन्होंने न्यायालय की आपराधिक अवमानना की है, जो अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 12 के तहत दंडनीय है। अधिवक्ता को आरोप के संबंध में अपना बचाव प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। प्रारंभ में अधिवक्ता ने घटना के आरोपों व तथ्य को नकारा और कार्यवाही के संबंध में प्रारंभिक आपत्ति करते हुए आरोप पर आपत्ति हलफनामा दाखिल किया। हालांकि अधिवक्ता ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि उसने संबंधित महिला न्यायाधीश से बिना शर्त माफी मांगी थी।
वकील ने कोर्ट से कहा कि वह आरोप पर अपनी आपत्ति वापस लेना चाहता है और बिना शर्त माफी मांगता है। उसने अदालत के समक्ष माफी मांगी और कहा कि वह मऊ में जिला न्यायालय में 31 साल से वकालत कर रहा है। इसलिए उसकी बिना शर्त माफी को स्वीकार किया जाए। उसने हाथ जोड़कर कोर्ट से दया की गुहार लगाई और अदालत को अच्छे और उचित आचरण का आश्वासन दिया। कोर्ट ने शुरू में कहा कि उसका आचरण एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट के लिए अशोभनीय है।
विशेष रूप से तब, जब वह बार के पूर्व अध्यक्ष थे और 32 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि बार के एक वरिष्ठ सदस्य से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह अदालत में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करे, जो अनुशासन को गंभीर रूप से कमजोर करता है। हाईकोर्ट ने मामले में नरमी बरतते हुए दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया और मामले का निस्तारण किया। हालांकि कोर्ट ने कहा कि यदि अधिवक्ता एक महीने के भीतर जुर्माना जमा नहीं करता तो उसे छह महीने की अवधि के लिए कोर्ट परिसर में प्रवेश करने और किसी भी मामले में पेश होने से रोक दिया जाएगा।