यशपाल शर्मा के बल्ले ने लखनऊ में भी खूब उगले थे रन

ब्यूरो,

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व बल्लेबाज और 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य यशपाल शर्मा का मंगलवार 13 जुलाई को निधन हो गया.

लखनऊ. क्रिकेट विश्व कप 1983 की विजेता भारतीय टीम के हीरो रहे बल्लेबाज यशपाल शर्मा को राजधानी के केडी सिंह बाबू स्टेडियम की पिचें खूब भायीं. उन्होंने इस मैदान पर अखिल भारतीय शीशमहल और फ्रैंक वारेल ट्रॉफियों में कई धमाकेदार पारियां खेलीं. यही नहीं वह जब भी राजधानी आते थे तो अपने प्रिय मैदान यानी केडी सिंह बाबू स्टेडियम जरूर पहुंचते थे. उनके निधन से राजधानी के क्रिकेटर भी गमगीन हैं.

यशपाल शर्मा अखिल भारतीय शीशमहल क्रिकेट प्रतियोगिता एवं फ्रैंक वॉरेल ट्रॉफी में कभी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) तो कभी स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया से खेले. उन्होंने राजधानी में करीब दर्जन भर पारियां खेलीं. करीब 28 साल शीश महल क्रिकेट प्रतियोगिता में खेले अशोक बाम्बी ने बताया कि उन्होंने इतना जुझारू क्रिकेटर नहीं देखा. शीश महल में इतने शतक किसी ने नहीं मारे जितने यशपाल ने मारे. इसमें तीन तो दोहरे शतक हैं.

यशपाल शर्मा ने शीश महल क्रिकेट में अपनी सबसे यादगार पारी उनकी 1985 में रही. इस बार वह स्टेट बैंक से खेलने आए थे. उनकी टीम सहारा इलेवन से खिताबी मुकाबला हार गई थी. सहारा के हिस्सा खिताब जरूर आया पर यशपाल शर्मा की 111 रनों की पारी ने सबका दिल जीत लिया था. यशपाल 1986 में भी स्टेट बैंक की तरफ से खेले. इस बार स्टेट बैंक विजेता बनीं थी.

शीश महल क्रिकेट के आयोजक अस्करी हसन के पत्नी सुरैया अस्करी ने बताया कि यशपाल एक क्रिकेटर के साथ एक बेहतरीन इंसान भी थे. जितनी बार वह शीश महल खेलने आए हर बार उन्होंने बढ़िया बल्लेबाजी की. वह कहते थे कि वह तमाम जगह खेले पर जो बात केडी सिंह बाबू स्टेडियम की है वह कहीं नहीं थी.

उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने उन्हें साल 2003 के आसपास राज्य सीनियर टीम का कोच भी बनाया था. उस समय टीम के कप्तान ज्ञानेंद्र पाण्डेय हुआ करते थे. टीम खिताबी मुकाबले तक भी पहुंची थी. इसके बाद यशपाल शर्मा का अनुबंध खत्म हो गया था.

यशपाल शर्मा उत्तर प्रदेश के क्रिकेटरों से बहुत प्रभावित थे. अस्सी के दशक में ही वह राजधानी में क्रिकेट अकादमी खोलना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने उस समय खेल के निदेशक जमन लाल शर्मा और शीश महल क्रिकेट प्रतियोगिता के आयोजक अस्करी हसन से बात भी की थी. उस समय राज्य में अकादमी संस्कृति का नामोनिशां नहीं था. पर यशपाल किसी अन्य कार्य में व्यस्त हो गये थे. यह काम रुक गया.

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