पश्चिमी सिंहभूम जिले के सुदूरवर्ती पोड़ाहाट अनुमंडल के सोनुवा, गोईलकेरा, गुदड़ी, आनंदपुर, मनोहरपुर, टोंटो सहित आसपास के इलाकों में बड़ी तदाद में बच्चे मानव तस्करी के शिकार हुए हैं। मानव तस्करी के शिकार बच्चों का प्रशसान के पास भी कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन इसकी तदाद हजारों में बतायी जा रही है। जानकारों की मानें तो इन इलाकों में गरीबी का फायदा मानव तस्करों को मिलता है और आसानी से बच्चों और उनके अभिभावकों को चंद रुपयों का लालच देकर बच्चों से उनका बचपन छीन लेते है और उन्हें महानगरों में शोषण और अत्याचार सहने के लिए धकेल देते हैं। कुछ बच्चे कोरोना महामारी को लेकर हुये लॉकडाउन में घर लौट आये, लेकिन अधिकांश बच्चे अब भी महानगरों में फंसे हुये हैं। मानव तस्करी के शिकार होने वालों में बच्चे ही नहीं, बल्कि युवतियां भी बड़ी तादाद है।
परिचित होते हैं मानव तस्कर
जानकारों की मानें तो बच्चों को मानव तस्करी का शिकार होने की एक बजह यह भी है कि तस्करी करने वाले आस पास के गांव के ही होते हैं, जिस कारण लोग आसानी से उन पर भरोसा कर लेते हैं और बच्चों को उनके साथ काम करने के लिए भेज देते है, बाद में वहीं तस्कर उनके बच्चों को मानगरों में प्लेसमेंट एजेंसी को सौंप कर उनसे मोटी रकम वसुली कर लेता है। जिस कारण उनके बच्चों को महानगरों में गुलामों की तरह काम करना पड़ता है।
हर साल पुलिस की मदद से बच्चों को लाया जाता है घर
बच्चों के लिए काम करने वाली चाइल्ड लाइन चाईबासा के जिला समन्वयक जुईडो करजी बताते हैं कि हर साल शिकायत मिलने के बाद पुलिस की मदद से बच्चों को वापस घर पहुंचाया जाता है। पश्चिमी सिंहभूम जिले में गोईलकेरा, गुदड़ी, सोनुवा, आनंदपुर और मनोहरपुर इलाकों के अधिकांश मामले सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि कई मामलों में ऐसा देखा गया कि बच्चों को उनके मां बाप की रजामंदी से भेजा गया है और बाद में जब अनबन हुई या फिर पैसा आना बंद हो गया तो लोग तस्करी का शिकार होने का आरोप लगा देते है। उन्होंने कहा कि मां-बाप गरीबी के कारण बच्चों को स्कूल में पढ़ाने के बजाय दलालों के हाथ काम करने सौंप देते है, जबकि मां बाप यह बात भूल जाते है कि अगर बच्चों को वे पढ़ाते है तो आगे चल कर वहीं बच्चा उनकी गरीबी दूर कर सकता है।