यूपी जल निगम बेईमानों का अड्डा बन गया है, इस तरह का आरोप अभी तक नहीं लगा है. लेकिन वहां पर जिस तरह से संरक्षणवाद फलफूल रहा है, वह संदेह पैदा कर रहा हैं.
लखनऊ. यूपी जल निगम बेईमानों का अड्डा बन गया है, इस तरह का आरोप अभी तक नहीं लगा है. लेकिन वहां पर जिस तरह से संरक्षणवाद फलफूल रहा है, वह संदेह पैदा कर रहा हैं. निगम में कुछ ऐसे अधिकारियों को संरक्षण दिया जा रहा है, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. आरोप भी दस्तावेजी है. एक-एक कारनामे की पूरी सूची है. किस-किस को लाभ पहुंचाया गया, उसका ब्यौरा भी है. प्रशासन ने उसकी जांच भी की है. आरोपों को सही भी पाया और कार्रवाई की अनुशंसा की. लेकिन राजधानी में बैठे नौकरशाहों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया.उन्हें न तो सरकारी पारदर्शिता की चिंता है और न ही शुचिता की. मुख्यमंत्री के ईमानदारी के नारे का क्या ही कहे. उसे तो शीर्ष नौकरशाह ने खारिज ही कर दिया है. तभी तो जांच रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेंक दिया. जाहिर है कि वे आरोपियों को संरक्षण दे रहे हैं.
उन्हें सरकारी कोड़े से बचा रहे हैं.एक मसला तो ऐसा भी है जहां जांच लंबित होने के बाद भी अधिकारी का ओहदा बढ़ा दिया गया. कुछेक मामले में तो जो आरोपी है वही जांच अधिकारी भी है. वे खुद ही अपने आरोपों की जांच करेगे. ऐसे में खुद को क्लीन चिट ही देगे और उनको भी जो बंदरवाट में राजदार है. निगम के लिए यह नई बात नहीं है. इस तरह का खेल वहां का स्वभाव बनता जा रहा है.