असम चुनाव: कांग्रेस को AIMIM के चुनाव नहीं लड़ने से फायदे की उम्मीद

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन पर बहस के बीच असम चुनाव पर एआईएमआईएम के रुख से कांग्रेस ने राहत की सांस ली है। क्योंकि, एआईएमआईएम ने चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। बिहार चुनाव में खराब प्रदर्शन के कई नेता लिए टिकट बंटवारे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो कई नेता मानते हैं कि एआईएमआईएम को नजरअंदाज करना भारी पड़़ा।  

असम में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद बिहार और पश्चिम बंगाल के मुकाबले बहुत अधिक है। इसके बावजूद एआईएमआईएम का असम में चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है। हैदराबाद निगम चुनाव में जीत के बाद एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर दोहराया कि उ्ननकी पार्टी असम और केरल में चुनाव नहीं लड़ेगी। क्योंकि, असम में एआईयूडीएफ और केरल में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाते हैं।

प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि एआईएमआईएम के चुनाव नहीं लडने से कुछ राहत जरूर मिलेगी। क्योकि, एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से मुस्लिम वोट में और बिखराव बढता। उन्होंने कहा कि 2016 के चुनाव में 27 सीट पर भाजपा को कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच वोट विभाजित होने का फायदा मिला। जबकि इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता चुनाव नतीजा तय करते हैं।

असम में 53 सीटें ऐसी है, जहां मुस्लिम मतदाता अधिक हैं। इनमें से कांग्रेस को वर्ष 2016 में 18 और मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ को 13 सीट मिली थी। जबकि 2011 में कांग्रेस ने 28 सीट जीती थी। पार्टी के एक नेता ने कहा कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन होता है, तो दोनों पार्टियां लोअर असम में आने वाली मुस्लिम बहुल ज्यादातर सीट जीत सकते हैं।

कांग्रेस और एआईयूडीएफ अलग-अलग चुनाव लडते हैं, तो भी मतदाताओं को एक-दूसरे की ताकत और कमजोरी पता है। उन्होंने कहा कि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम चुनाव लड़ती है, तो मत विभाजित हो सकते थे। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलता। इसके साथ एआईएमआईएम उन सीट पर भी अपने उम्मीदवार उतारता, जहां अमूमन एआईयूडीएफ चुनाव नहीं लड़ती है।

प्रदेश में करीब तीन दर्जन विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हार-जीत का फैसला असमिया भाषी लोग करते हैं। इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम है, इसलिए मौलाना बदरुद्दीन अजमल अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करते हैं। वर्ष 2016 के चुनाव में कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिली थी, पर सीएए के बाद स्थिति बदली है। कांग्रेस को यकीन है कि असमिया भाषी चुनाव में पार्टी का समर्थन करेंगे।

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