एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो …

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो 
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो 
दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा 
इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो 
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे 
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो 
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे 
आज संदूक़ से वे ख़त तो निकालो यारो 
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया 
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो 
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता 
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो 
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की 
तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो 

– दुष्यंत कुमार

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