रमजान मुबारक को घर में रहकर काम कराने के साथ इबादत करने वाली महिलाएं खास बनाती है। इन महिलाओं का रूटीन बदल जाता है। इस लॉकडाउन में घर की ज़िम्मेदारी बढ़ गई है। सुबह 3 बजे से उठ कर वो घर के काम के साथ इबादत करती हैं। 15 घंटे का रोजा रखने के बाद भी वह थकान नहीं होती बल्कि दिनभर तरोताजा महसूस करती हैं। ऐसी महिलाओं से रमज़ान में किस तरह गुजरता है उनका दिन।
महिलाओं की बात
रमज़ान बरकत और नेकी कमाने वाला महीना है। महिलाएं इबादत के साथ साथ घर का काम भी उसी उत्साह के साथ करती है। मै भी सुबह से इबादत के बाद गरीबों को राशन बांटा। उसके बाद अफ्तारी बनाया। पूरा दिन कैसे गुजार गया। पता ही नहीं चला। – नाइश हसन, सामाजिक कार्यकर्ता
रमजान का महीना हमें बहुत सारी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है। अमन व सलामती, मोहब्बत, भाईचारे और दुखी इंसानियत की जरूरत पूरी करने का मौका देता है। काफी साल से रोजा रखती हूं। रोजे रखने से रुहानी ताकत महसूस करती हूं। – हाजरा बेगम, गृहणी
फैशन डिजाइनर निशात मिर्जा ने बताय कि मुबारक रमजान साल में एक बार ही आता है। ऐसे में मगफिरत करने, तरावीह पढ़ने से समय का पता नहीं चलता। अलसुबह उठकर सहरी तैयार करना। इबादत करना तो दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। इसके लिए वक्त निकालने जैसी कोई बात नहीं है। – डॉ असमा फारुक, शिक्षिका
रमज़ान में घर में काम करने के साथ रोजे रखना, इबादत करना रुटीन में शामिल हो जाता है। सुबह तीन बजे उठकर रोजा रखने के लिए सहरी का इंतजाम करना सब इस महीने की बरकत से हो आसानी से हो जाता है। सभी लोग घर लॉक डाउन का पालन कर रहे है। – गज़ाला फारुक, काउंसलर, फेमिली कोर्ट
इस साल रमज़ान में महिलाओं के साथ पुरुष भी इबादत कर रहे है। घर के सारे आदमी अलग नमाज़ पढ़ते है, वहीं सारी महिलाएं एक साथ इबादत करते है। घर का काम करने के साथ दुआ करते हैं। अल्लाह से अपने लिए और दूसरे इंसानों के लिए दुआ मांगते रहे। – फरहत दुर्रानी शिकस्ता, शायरा