सारांश कनौजिया

प्रश्नकाल न होने पर प्रश्न, कितना सही, कितना गलत
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार होगा जब सदन के नियमित सत्र में प्रश्नकाल का आयोजन नहीं होगा, किन्तु क्या इसे सामान्य सत्र कहा जाना चाहिए? यह प्रश्न बहुत बड़ा है क्योंकि इसी का उत्तर तय करेगा कि प्रश्नकाल न होना सही है या गलत।
वर्तमान समय में देश अनलॉक की ओर बढ़ रहा है। इसके बाद भी बहुत सी ऐसी चीजे हैं, जो जरुरी होने के बाद भी अभी तक शुरू नहीं हो सकी हैं। प्राथमिक शिक्षा, राजनितिक, सामाजिक और धार्मिक आयोजन भी प्रतिबंधित हैं। सितंबर में घोषित छूट के बाद भी सिर्फ 100 लोग ही एक स्थान पर एकत्रित हो सकेंगे। ऐसे में अभी स्थिति सामान्य नहीं कही जा सकती है। इसके बाद भी विपक्ष चाहता है कि संसद पूर्व की तरह ही चले। संसद के अंदर सब कुछ पहले जैसा ही होना चाहिए।
इस बार का संसद सत्र कई मायनों में अलग होगा। 18 दिन चलने वाले सत्र में जहां प्रश्नकाल नहीं होगा, वहीं शनिवार और रविवार को अवकाश नहीं रखा जायेगा। इसके साथ ही एक दिन में एक पाली में लोकसभा और दूसरी पाली में राज्यसभा का आयोजन किया जायेगा। विपक्ष का कहना है कि जब शनिवार और रविवार को सत्र आयोजित किया जा सकता है, तो प्रश्नकाल का आयोजन क्यों नहीं हो सकता? किन्तु रविवार को इससे पहले सत्र कब आयोजित हुआ था ध्यान करने की कोशिश करें? यदि कभी शनिवार को सत्र का आयोजन हुआ है, तो वह विशेष परिस्थिति रही होगी। कोरोना के कारण विधानसभा का 1 दिन का सत्र भी आयोजित किया गया है। ऐसे में जितने कम दिन का सत्र आयोजित करके जरुरी काम पूरे कर लिए जायें, उतना ही अच्छा है।
विपक्ष का आरोप है कि प्रश्नकाल न होने का निर्णय बिना उनकी जानकारी के लिया गया। राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद के अनुसार सभापति लम्बे समय से संसद सत्र के लिए संपर्क में थे, फिर बाकी नेता इससे इनकार क्यों कर रहे हैं? संसद सत्र का संचालन किस प्रकार हो, इसके लिए एक सलाहकार समिति होती है. कांग्रेस के नेता लोकसभा अधीर रंजन चौधरी उसके सदस्य हैं। ऐसे में जब प्रश्नकाल न आयोजित करने पर निर्णय हुआ होगा, तो उसकी चर्चा में कांग्रेस नेता को जरुर बुलाया गया होगा। फिर कैसे कांग्रेस और विपक्ष जानकारी न होने का दावा कर सकता है।
क्या आज से पहले हमेशा संसद में प्रश्नकाल हुआ है? यदि इसका जवाब तलाशेंगे, तो पता चलेगा कि पहले भी कई बार ऐसा हुआ है। संसद के विशेष सत्र में कई बार प्रश्नकाल का आयोजन नहीं हुआ है। इसके आलावा ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जहाँ विपक्ष के हंगामें के कारण प्रश्नकाल का नहीं हो सका है। ऐसे भी उदाहरण हैं, जब विपक्ष ने स्थगन प्रस्ताव लाकर प्रश्नकाल के स्थान पर चर्चा की मांग की गई है।
प्रश्नकाल से जुड़े कुछ उदाहरण भी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए देना चाहूँगा। जनवरी 2019 को आई एक रिपोर्ट के अनुसार उस समय चला प्रश्नकाल सबसे कम चले प्रश्नकालों में से एक था। दिसम्बर 2018 में राफेल सहित विभिन्न विषयों पर विपक्ष के हंगामें के कारण प्रश्नकाल नहीं हो सका। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां विपक्ष के हंगामे की वजह से लोकसभा या राज्यसभा में प्रश्नकाल नहीं हो सका। कांग्रेस जब से विपक्ष में है, उपरोक्त 2 उदाहराण उसी से लिए गये क्योंकि प्रश्नकाल न होने पर आपत्ति व्यक्त करने वालों में कांग्रेस सबसे आगे है।
मेरा मानना है कि प्रश्नकाल जरुरी है क्योंकि देश को इससे कई ऐसे प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं, जो आम आदमी से जुड़े हुए हैं। इसके बाद भी कोरोना काल में इस बार प्रश्नकाल न होने पर विवाद गलत। साथ ही यह भी आशा है कि मोदी सरकार इसे अपना अभ्यास नहीं बनाएगी और जैसे ही स्थितियां सामान्य होंगी, उसके बाद आयोजित सभी संसद सत्रों में प्रश्नकाल होगा। विपक्ष की भी यह जिम्मेदारी है कि उसके कारण भविष्य में कभी भी प्रश्नकाल स्थगित न करना पड़े। – सारांश कनौजिया संपादक मातृभूमि समाचार