कोरोना वायरस पर दुनियाभर के कई देशों के निशाने पर आ चुका चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अपने पड़ोसी देशों के साथ विवाद खड़े करने के बाद अब चीन ऐसा अगला कदम उठा सकता है, जिससे दुनिया के कई देश चिंतित हो जाएंगे। आने वाले समय में चीन हिंद महासागर की ओर रुख कर सकता है। अगर चीन हिंद महासागर की ओर अपनी पनडुब्बियों का रुख मोड़ता है तो फिर इसका व्यापक रणनीतिक प्रभाव पड़ सकता है।
फॉर्ब्स पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की ओर से देखें तो हिंद महासागर में अपनी पनडुब्बियों की तैनाती से युद्ध के समय में उसे मदद मिलेगी। अभी साउथ-एशिया क्षेत्र में सबसे ज्यादा पनडुब्बियां भारत के पास हैं। वहीं, चीन की नौसेना का विस्तार दुनिया के लिए चिंता का सबब है। इसके चलते बीते दिन अमेरिका ने भी एशिया में अपने सैनिकों की तैनाती करने का ऐलान किया था। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने चीनी कम्युनिष्ट पार्टी को भारत समेत एशिया के अन्य देशों के लिए खतरा बताते हुए कहा था, ‘हम यह सुनिश्चित करेंगे कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीनी सेना, जिसमें उनकी नौसेना भी शामिल है) को काउंटर करें।’
हालांकि, इस समय चीन का सबसे ज्यादा ध्यान चाइना सी पर है, जहां पर बीजिंग ने सीमा को लेकर कई दावे किए हैं। इस समय वह हिंद महासागर पर कम फोकस है। लेकिन भारत के लिए यह खतरा बहुत वास्तविक है। चीनी पनडुब्बियों ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान और श्रीलंका में पोर्ट कॉल का भुगतान किया है। पीस टाइम के समय चीनी पनडुब्बियां स्ट्रेट ऑफ मलक्का के जरिए से हिंद महासागर में प्रवेश कर सकती हैं।
चीन अभी भी संदेश जारी करने के लिए ऐसा कर सकता है, लेकिन यह सीमित उपयोगिता है, जहां पनडुब्बी अपनी उपस्थिति को छिपाना चाहेंगी। वहीं, युद्ध के दौरान, चीनी पनडुब्बियां सुंडा स्ट्रेट या लोम्बोक स्ट्रेट से आ सकती हैं। ये इंडोनेशियाई श्रृंखला के बीच से गुजरते हैं जो प्रशांत और हिंद महासागर को अलग करते हैं। सिंगापुर से सटे मलक्का स्ट्रेट से यह फायदा है कि इससे पनडुब्बियां पूर्वी महासागर के गहरे पानी में पहुंच सकती हैं। इसके बाद वहां से वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकती हैं। सुंडा स्ट्रेट सबसे छोटा रूट है लेकिन यह पूर्वी क्षेत्र में काफी उथल-पुथल वाला है। ऐसे में लोम्बोक स्ट्रेट को प्राथमिकता दी जा सकती है।
एक बार हिंद महासागर में घुसने के बाद, पनडुब्बियों को चीन लौटने के बिना वहां पुनः स्थापित किया जा सकता था। चीनी नौसेना ने पहले ही अफ्रीका के जिबूती में एक बेस बनाया है। इसके अलावा पाकिस्तान के ग्वादर में निर्माणाधीन एक और चीनी बंदरगाह है। उस बंदरगाह के विस्तार का काम जारी है, जिसे भी चीनी नौसैनिक अड्डे में शामिल किया जा सकता है। ग्वादर में एक फायदा यह भी है कि यह चीन की जमीन से जुड़ा हुआ है। वहीं, यदि हिंद महासागर में चीन एक स्थायी स्क्वाड्रन बनाता है तो फिर, उसके प्राकृतिक आधार ग्वादर और जिबूती होंगे।
मालदीव में एक छोटा सा द्वीप भी है, जिसे चीन रिसोर्ट के रूप में विकसित कर रहा है। योजनाकारों का मानना है कि यह कुछ परिदृश्यों में आधार या निगरानी स्टेशन के रूप में कार्य कर सकता है।चीन को काउंटर करने के लिए भारत भी पूरी तरह से मुस्तैद है। भारतीय नौसेना भी अपनी क्षमताओं को बढ़ा रही है और खतरे का मुकाबला करने के लिए अपने ऑपरेटिंग पैटर्न को संशोधित कर रही है। इस बात के प्रमाण हैं कि भारत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पनडुब्बियों को तैनात करने की क्षमता का परीक्षण कर रहा है। यह मलक्का स्ट्रेट में पनडुब्बी गतिविधि की निगरानी करने के लिए महत्वपूर्ण है।