पानी केरा बुदबुदा का विमोचन समारोह

पानी केरा बुदबुदा का विमोचन समारोह

विशी सिन्हा

नई दिल्ली।28 सितम्बर की दोपहर नयी दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सभागार में देश के कोने – कोने से आये सौ से ऊपर प्रशंसक – जो सुमोपाई/एसएम्पियंस कहलाये जाते हैं – इकठ्ठा हुए थे. मौक़ा था उनके पसंदीदा लेखक और हिन्दी अपराध-कथा साहित्य के शलाका पुरुष सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा के चतुर्थ खण्ड – “पानी केरा बुदबुदा” – के लोकार्पण का. गौरतलब है कि पिछले 65 वर्षों से निरंतर लेखन कार्य में रत सुरेन्द्र मोहन पाठक अब तक तीन सौ से ऊपर पुस्तकें लिख चुके हैं. “पानी केरा बुदबुदा” उनकी पुस्तकाकार में प्रकाशित 313वीं रचना है, जिसे प्रकाशित किया है “साहित्य विमर्श प्रकाशन” ने..

लोकार्पण के इस पुनीत अवसर पर व्यास सम्मान से विभूषित विदुषी ममता कालिया की गरिमामय उपस्थिति रही. साथ ही मंच पर मौजूद थे सुहैब अहमद फारूकी जो दिल्ली पुलिस में जिम्मेदार अफसरऔर जाने-माने शायर हैं. प्रशंसकों के फैन क्लब और फैन मीट्स के प्रणेता रहे आंत्रप्रीन्योर शरद श्रीवास्तव भी इस मौके पर मंच पर मौजूद थे. प्रकाशक के प्रतिनिधि के तौर पर मंच पर मौजूदगी थी अव्वल दर्जे के पाठक राघवेन्द्र सिंह की. वहीं युवा पत्रकार मुबारक अली दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे थे.

पुस्तक लोकार्पण के बाद ममता कालिया ने कहा कि वे स्वयं को सुरेन्द्र मोहन पाठक की एक प्रशंसक मानती हैं, उन्होंने भी सुरेन्द्र मोहन पाठक को बहुत पढ़ा है, लेकिन उनकी आत्मकथा ने उन्हें खास तौर पर मुतमईन किया है, जिसे उन्होंने बार- बार पढ़ा है. उन्होंने कहा कि “सुरेन्द्र मोहन पाठक की भाषा और साफगोई उन्हें दूसरे लेखकों से अलग स्थापित करती है. किताबों से इतर भी वे अक्सर कोई नई बात/उद्धरण/कोटेशन मुझे भेजते रहते हैं. मैं खुद शिक्षिका रही हूँ, लेकिन पाठक जी से आज भी मुझे कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है”. और आखिर में उन्होंने कहा कि “पढ़ना और लिखना हमारे सबसे बड़े साथी हैं, जब सारे मित्र, रिश्ते-नाते पीछे रह जाते हैं, कोई साथ नहीं रहता तो यही साथ देते हैं”.

लोकार्पण के पश्चात क्विज राउंड हुआ, जिसमें पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले पाठकों को सुरेन्द्र मोहन पाठक के इसी वर्ष प्रकाशित नए उपन्यास “दुबई गैंग” के अंग्रेजी संस्करण की एक-एक प्रति दी गई.

और अंत में मुबारक अली ने सुरेन्द्र मोहन पाठक से कुछ सवाल-जवाब किये. लेखन को कारोबार मानने वाले सुरेन्द्र मोहन पाठक ने पूछे गए रोचक सवालों के अपने ही अंदाज में जवाब दिए जिसे मौजूद पाठकों द्वारा खूब सराहा गया. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा “लेखन के कारोबार में जब मैं थोड़ा बहुत नाम कमा चुका था, मेरी बुनियाद बनने लगी थी तो सबसे पहली जो बात मेरे को परेशान करती थी वो ये थी कि इतना कुछ मैं एकॉम्प्लिश करना चाहता था कि उसके लिए एक ज़िन्दगी काफी नहीं होगी. कितनी बातें जो मैंने दर्ज करनी है, उनकी बारी ही नहीं आएगी, मैं सारी ख़त्म नहीं कर सकता लेकिन उन्हें कम तो कर ही सकता हूँ न, तो मैंने दिन रात काम किया, उसके लिए ज़िन्दगी के सौ किस्म के सुख छोड़े.” – एक पल ठिठक कर वहाँ मौजूद पाठकों/श्रोताओं को संबोधित करते हुए आगे उन्होंने कहा – “आप सब गवाह हो इस बात के, अगली फ़रवरी में में 85 का हो जाउंगा. मेरे से सीढिया नहीं चढ़ी जा रही है, पहले चढ़ी ही नहीं जाती थी, आज महसूस हुआ कि उतरी भी नहीं जा रही.लेकिन नॉवेल तो लिख लेता हूँ न? कैसे लिख लेता हूँ? तब तो कोई फैटीग, कोई थकान, कोई बखेड़ा, कोई हाय-हाय, लेट जाऊं जा के, नहीं मेरे बस का, मैं क्यों करूं जब इतना कुछ कर चुका हूँ तो अब आराम कर लूं, ऐसे खयालात मेरे को तो नहीं आये”. ख्यात विज्ञान-गल्प लेखक आइजैक असीमोव को कोट करते हुए उन्होंने कहा “मौत का हरकारा आये और मेरे से कहे कि मेरी ज़िन्दगी के छः मिनट बाक़ी रह गये हैं तो मैं बैठ के मातम नहीं मनाऊँगा, बल्कि मैं टाईपराइटर पर अपनी उंगलियाँ और तेजी से दौड़ाउंगा”. आगे उन्होंने जोड़ा – “जब जिंदगी के खिलाफ आपकी इतनी बड़ी दौड़ है, तो काम किये बिना तो आपकी गति नहीं है.”

लोकार्पण के उपरान्त आत्मकथा के चतुर्थ खण्ड पर अपने प्रिय लेखक के ऑटोग्राफ लेने के लिए घंटे भर तक प्रशंसक लाइन में लगकर अपनी बारी आने का इन्तजार करते देखे गए.

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“तमाम आत्मकथाएं झूठ हैं – अनजाने में बोला गया झूठ नहीं, गैरइरादतन बोला गया झूठ नहीं, इरादतन बोला गया झूठ है” – जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

आत्मकथा के पहले तीन खण्ड – “न बैरी न कोई बेगाना”, “हम नहीं चंगे बुरा न कोय” और “निंदक नियरे राखिये”, जो क्रमशः 2018, 2019 और 2020 में प्रकाशित हुई थीं – के चार वर्ष के लम्बे अंतराल पर पाठकों को यह चतुर्थ खण्ड पढने के लिए उपलब्ध हुआ है,जिसके आरंभिक पन्ने पर दर्ज उपरोक्त कथन से ही एहसास हो जाता है कि पाठकों का यह लंबा इन्तजार व्यर्थ नहीं जाने वाला. चैप्टर्स के नाम हैं – वृद्धावस्था, आशियाना, किरायेदार, बैंकिंग, परिपक्व वृद्धावस्था और छिटपुट. अपनी चिर-परिचित शैली में सुरेन्द्र मोहन पाठक एक बार फिर से अपने पाठकों से रूबरू हैं और पढने वालों को एक बार फिर से अपने जीवन के सफ़र पर साथ-साथ चलने का आमंत्रण दे रहे हैं.

प्रकाशकों से लेखक के सम्बन्ध पर आत्मकथा के इस खण्ड में खास स्थान दिया गया है, जिससे पढने वालों को प्रकाशकों के रवैये का भी इमकान होता है. लुगदी कागज़ के अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे प्रकाशकों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशकों तक सभी की कलई खुलती चली जाती है, और इसकी ज़द में आने से वर्तमान प्रकाशक भी बचा न रह सका.

पुस्तक की छपाई और प्रोडक्शन क्वालिटी उम्दा बन पड़ी है. पुस्तक में लेखक के चित्रों से सज्जित 16 पृष्ठ का रंगीन परिशिष्ट पाठकों के लिए बोनस है.

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