ब्यूरो,
संदेशखाली मामले में ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत
संदेशखाली मामले में ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के अधिकारियों के खिलाफ लोकसभा की विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। ममता बनर्जी सरकार ने सांसदों की शियाकत पर संसद की विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल की थी।
बता दें कि संसद की विशेषाधिकार समिति ने पश्चिम बंगाल मुख्य सचिव और डीजीपी के खिलाफ विशेषाधिकार उल्लंघन की कार्यवाही करने का फैसला किया था। आरोप था कि भाजपा सांसद सुकांता मजूमदार के खिलाफ पश्चिम बंगाल में जानलेवा कार्रवाई की गई। वह यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के प्रदर्शन में शामिल होने संदेशखाली पहुंचे थे। इसी बीच पुलिस ने भाजपा नेताओं पर लाठीचार्च किया जिसमें मजूमदार बुरी तरह घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में ऐडमिट कराना पड़ा।
सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया है। संसद की विशेषाधिकार समिति ने चीफ सेक्रेटरी भगवती प्रसाद गोपालिका और डीजीपी राजीव कुमार को सोमवार को समिति के सामने पेश होने का समन भजेा था। इसके अलावा संसद की समिति ने नॉर्थ 24 परगान के डीएम शरद कुमार को भी समनन भेजा था। सीजेआई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, विशेषाधिकार समिति के 15 फरवरी को जारी किए गए आदेश और कार्यवाही पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाती है। कोर्ट ने लोकसभा सचिवालय से इसपर जवाब मांगा है और सुनवाई को एक सप्ताह के लिए टाल दिया गया है।
चीफ सेक्रेटरी की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी राजनीतिक गतिविधि पर विशेषाधिकार उल्लंघन लागू नहीं होता है। उन्होंने कहा कि उस समय मौके पर चीफ सेक्रेटरी मौजूद भी नहीं थे। वहीं वीडियो में देखा जा सकता है कि भाजपा सांसद जो कि दूसरे क्षेत्र से आते हैं, उन्हें उनकी ही पार्टी के लोगों ने धक्का दिया।
डीजीपी की तरफ से कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए थे। उन्होंने कहा कि धारा 144 लागू होने के बाद भी इसका उल्लंघन किया गया। सांसद कार के बोनट पर चढ़ गए और फिर भाजपा के कार्यकर्ताओं का ही धक्का लगने की वजह से वह गिर गए। इस घटना में पुलिसकर्मियों को भी चोट आई थी। लोकसभा सचिवालय की तरफ से ऐडवोकेट देवाशीष भारुका पेश हुए थे। उन्होंने कहा, यह केवल एक प्रक्रिया है जिससे सच पता लगाने की कोशिश की जाती है। अधिकारियो के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाए गए हैं। इसलिए कोर्ट को कार्यवाही की इजाजत दे देनी चाहिए।