सीट बंटवारे पर कांग्रेस और सपा के बीच बातचीत के बाद भी नहीं बनी बात

ब्यूरो,

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों का समझौता नहीं होने की आंच इंडिया गठबंधन पर पड़ने का खतरा पैदा हो गया है। लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बने विपक्षी दलों के इस गठबंधन में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी सपा के नेता अखिलेश यादव ने कांग्रेस को कह दिया है कि उसे बताना पड़ेगा कि गठबंधन देश स्तर पर है या प्रदेश स्तर पर और और अगर प्रदेश स्तर पर नहीं है तो भविष्य में भी प्रदेश स्तर पर नहीं होगा। मतलब सीधा है कि अगर कांग्रेस एमपी में सपा को सीट नहीं दे रही है तो यूपी में सपा भी कांग्रेस को सीट के लिए रुला देगी।

विपक्षी गठबंधन की पटना में 23 जून, बेंगलुरु में 17-18 जुलाई और मुंबई में 31 अगस्त और 1 सितंबर तीन बैठकों के बाद लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर जल्दी फैसले की बात हुई थी। अखिलेश ने मुंबई की मीटिंग के अंदर कहा था कि सितंबर तक सीट तय कर लिए जाएं ताकि कैंडिडेट्स के पास काम करने का समय हो। वैसे, गौर करने वाली बात है कि गठबंधन की बैठकों के बाद संवाददाता सम्मेलन में अखिलेश बस एक बार पटना में ही बोले वो भी 50 सेकेंड। बेंगलुरु की पीसी में अखिलेश दिखे भी नहीं और मुंबई में दिखे भी तो बोले नहीं। जबकि सीटों के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य यूपी है और वहां विपक्षी खेमे के सबसे बड़े खिलाड़ी अखिलेश यादव ही हैं लेकिन वो चुप रहना चुन रहे हैं।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव में ज्यादातर राज्यों में जीत के अनुमान भर से कांग्रेस का भाव सातवें आसमान पर है। यूपी में कांग्रेस कमजोर है लेकिन उसका रवैया कुछ और है। ऊपर से बड़बोले प्रदेश अध्यक्ष अजय राय की 80 सीटों पर तैयारी के बयान से चिढ़कर अखिलेश कांग्रेस को धमकी देने पर उतर आए हैं कि सीट का जवाब सीट से दिया जाएगा।

असल में हैदराबाद में 16-17 सितंबर को कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक के बाद मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी हर हाल में सीट शेयरिंग चर्चा को पांच राज्यों के चुनाव तक टालना चाहते हैं। कांग्रेस को लगता है कि एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में वो जीत जाएगी तो देश भर में उसका माहौल बनेगा और उसकी वापसी के दबाव में यूपी, बिहार, बंगाल के सहयोगी दल ज्यादा लोकसभा सीट दे देंगे। अखिलेश भी यह खेल समझ रहे हैं इसलिए अब कांग्रेस से सख्ती से निपटने के मूड में आ गए हैं। सपा ने कांग्रेस से एमपी के अलावा राजस्थान में भी सीट मांगी थी लेकिन जब एमपी में ही नहीं मिला तो राजस्थान में क्या मिलेगा, इसे समझा जा सकता है।

मध्य प्रदेश में सीट बंटवारे पर पूर्व सीएम कमलनाथ और अखिलेश यादव के बीच बातचीत के बाद भी बात नहीं बनी। अखिलेश यादव की पार्टी 2018 के चुनाव में एक सीट जीती थी और 6 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। वो बस इन सात सीटों पर कांग्रेस को सपा का समर्थन करने कह रहे थे। कांग्रेस ने कैंडिडेट लिस्ट जारी की तो उसमें चार सीट ऐसे थे जो अखिलेश सपा के लिए मांग रहे थे। 2018 में सपा ने जो बिजावर सीट जीती थी, वहां भी कांग्रेस ने सपा के ही एक नेता के रिश्तेदार को टिकट दे दिया। जवाब में अब सपा ने भी नौ उम्मीदवारों के नाम जारी कर दिए हैं और कह दिया कि उसकी तैयारी भी 50 सीट तक लड़ने की है।

एमपी के मामले को एमपी भर का ही बताकर सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने इंडिया गठबंधन पर मंडरा रहे खतरे को कमतर बताने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए हुआ है और राज्यों में इस पर अमल करने में दिक्कत हो रही है। लेकिन अखिलेश सपा और कांग्रेस के गठबंधन में 2017 का विधानसभा लड़ चुके हैं जब दोनों ही पार्टी की सीट पर बीजेपी ने झाड़ू चला दिया था। सपा 224 सीटों से गिरकर 47 पर पहुंच गई जबकि कांग्रेस 28 से लुढ़ककर 7 पर। 2022 में बगैर कांग्रेस सपा ने सीट बढ़ाकर 111 कर ली जबकि कांग्रेस रसातल के थोड़े ऊपर 2 पर रुक गई। कांग्रेस इंडिया गठबंधन को अपने मतलब से देख रही है जबकि क्षेत्रीय दल अपने मतलब से। मतलबों की लड़ाई में गठबंधन को यूपी में सपा झटका ना दे दे, इस बात का खतरा बढ़ रहा है।

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