ब्यूरो टेक,
22 अक्तूबर, 2008 को भेजे गए चंद्रयान-1 में 90 किलो के 11 उपकरण थे। इसमें एक इम्पैक्टर और एक ऑर्बिटर मॉड्यूल था। इम्पैक्टर मॉड्यूलर को मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआईपी) नाम दिया गया।15 साल में भारत ने चंद्रमा पर तीन अभियान भेजे हैं। पहले दो अभियानों में भारत को अलग-अलग स्तर पर सफलता और असफलता मिली। इनमें जो उपलब्धियां हमने हासिल कीं, उनका लोहा आज भी पूरी दुनिया मानती है। साल 2008 में भेजे गए चंद्रयान-1 अभियान ने जब चंद्रमा पर पानी की पहचान की, तो इसे अंतरिक्ष के इतिहास की प्रमुख खोजों में शुमार किया गया।
22 अक्तूबर, 2008 को भेजे गए चंद्रयान-1 में 90 किलो के 11 उपकरण थे। इसमें एक इम्पैक्टर और एक ऑर्बिटर मॉड्यूल था। इम्पैक्टर मॉड्यूलर को मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआईपी) नाम दिया गया। यह 14 नवंबर, 2008 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में मौजूद शेकल्टन क्रेटर के निकट चंद्र सतह से टकराया। इससे मिले डाटा ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि में मदद की। अभियान में भेजे गए 11 उपकरणों में से 5 भारत के थे तो बाकी को अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, स्वीडन, और बुल्गारिया ने बनाया था। ऑर्बिटर के जरिये 100 किमी ऊंचाई से चंद्र सतह की रासायनिक, खनिज संबंधी और भूगर्भीय मैपिंग की गई। इसने चंद्रमा की कुल 3,400 परिक्रमाएं कीं। इसकी उम्र 2 वर्ष मानी गई थी। हालांकि अगस्त, 2009 में इससे संपर्क टूट गया। इसे 2012 में चंद्रमा पर गिरना था, लेकिन 2016 में भी नासा ने इसे चंद्रमा की परिक्रमा करता पाया।
चंद्रमा पर धातु व खनिज पहचाने : चंद्रमा की चट्टानों में लोहे, पूर्व घाटी क्षेत्र में लौह तत्व रखने वाले खनिज पाइरॉक्सीन व अन्य स्थलों पर एल्यूमीनियम, मैग्नीशियम, सिलिकॉन, टाइटेनियम और कैल्शियम की पहचान की गई। 70 हजार तस्वीरें, रहस्यमयी पिरामिड : चंद्र सतह के 5 मीटर तक के रिजोल्यूशन की 70 हजार तस्वीरें ली गईं। तिकोने पिरामिड जैसे पहाड़ की तस्वीर की पूरी दुनिया में चर्चा हुई। लावे से बनी 360 मीटर तक लंबी गुफाएं खोजीं, जो भविष्य में बेस बनाने में उपयोगी साबित हो सकती हैं।