नेटवर्क ब्यूरो
प्राचीन इतिहास के विद्वान डीएन झा ने अपनी पुस्तक ‘अगेंस्ट द ग्रेनः नोट्स ऑन आइडेंटिटी, इन्टॉलरेंस एंड हिस्ट्री’ में लिखा है कि मथुरा के भूतेश्वर और गोकर्णेश्वर मंदिर बौद्ध धर्म के स्तूपों-मठों को तोड़कर बनाए गए हैं। यूपी के सुल्तानपुर में ही 49 स्तूपों के ध्वंस किए जाने के प्रमाण मिलते हैं…
ज्ञानवापी मामले के बीच समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के हाल ही में किए गए दावे को लेकर नई बहस छिड़ गई है कि क्या बद्रीनाथ, केदारनाथ समेत कई मंदिर ऐसे हैं, जो बौद्ध स्तूपों या मठों को तोड़कर बनवाए गए? कुछ इतिहासकार जहां इस दावे में सच्चाई देखते हैं, जबकि ज्यादातर इतिहासकार इस दावे को तथ्यात्मक रूप से गलत करार देते हैं। देश और दुनिया के अलग-अलग बौद्ध मठों समेत बौद्ध अवशेषों पर शोध कर चुके पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि मंदिर और बौद्ध मठों की बनावट और ढांचा पूरी तरह अलग होता है। इसलिए जब तक इमारत स्थल या सर्वे किए जाने वाली जगह पर ‘मैटेरियल एविडेंस’ न हो तब तक इसे महज एक खोखला दावा ही माना जाएगा।
बौद्ध मठ और मंदिर का ‘स्ट्रक्चर’ ही पूरा अलग है
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के आर्कियोलॉजिकल प्रोफेसर मानवेंद्र पुंडीर कहते हैं कि देश के लगभग 1500 से ज्यादा ऐसे ही भवनों और संरक्षित इमारतों के सर्वे के दौरान पता चलता है कि अलग-अलग धर्मों के पूजा स्थलों या इबादतगाहों का आर्किटेक्चर पूरी तरीके से भिन्न होता है। वह कहते हैं कि जहां पर बौद्ध धर्म के अनुयायी मेडिटेशन करते हैं या विश्राम करते हैं, उन्हें ‘बिहाराज’ और ‘चैत्याज’ कहा जाता है। पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर मानवेंद्र के मुताबिक बौद्ध धर्म के अनुयायियों के मेडिटेशन सेंटर जिसको ‘चैत्याज’ कहते हैं, वहीं पर पूजा भी होती थी। उनका कहना है कि इसकी बनावट मंदिर के स्ट्रक्चर से पूरी तरह भिन्न होता है। जबकि विश्रामगृह की तरह ‘बिहाराज’ को बौद्ध धर्म के अनुयायी सैकड़ों साल से पूजा घर और नियमित विश्राम के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं। इसका भी स्ट्रक्चर मंदिर की तरह बिलकुल नहीं होता है। उनका कहना है अगर इस तरह से किसी भी धार्मिक स्थल पर विवाद की स्थिति बनती है तो उसके लिए सबसे पहले ‘मैटेरियल एविडेंस’ तलाशने पड़ते हैं।
बद्रीनाथ और केदारनाथ में नहीं मिले ‘मैटेरियल एविडेंस’
प्रमुख पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार प्रोफेसर मानवेंद्र पुंडीर कहते हैं कि जिन दो प्रमुख मंदिरों को लेकर सियासी तौर पर उनको मठ कहे जाने का विवाद हुआ है, दरअसल वहां पर अब तक ऐसे कोई भी ‘मैटेरियल एविडेंस’ नहीं मिले हैं, जो यह साबित करते हों कि बद्रीनाथ और केदारनाथ पहले मठ हुआ करते थे। उनका कहना है कि दोनों मंदिरों के स्ट्रक्चर और बौद्ध धर्म के ‘बिहाराज’ और ‘चैत्याज’ की बनावट पूरी तरह अलग है। वह कहते हैं मंदिर में जहां गर्भगृह और मंडप के साथ अर्ध मंडप होता है। वहीं बुद्ध धर्म के अनुयायियों के मेडिटेशन सेंटर पूजा घर और विश्राम स्थल का स्ट्रक्चर बिल्कुल अलग होता है। बौद्ध धर्म के बिहाराज की बनावट में बीच में कोर्टयार्ड की तरह एक खाली जगह होती है। फिर उसके चारों ओर एक हॉलनुमा जगह होती है। उस हॉलनुमा जगह के पीछे कमरे होते हैं। जबकि चैत्याज तीन हिस्सों के साथ मिलकर बना होता है। इसमें एक छोटा सा स्तूप होता है। उसके सामने ही एक बहुत बड़ा हॉल होता है। जहां बैठकर स्तूप की ओर मुंह करके मैडिटेशन किया जाता था। प्रोफेसर पुंडीर कहते हैं कि जिन मंदिरों को लेकर विवाद शुरू हुआ है, उनमें ऐसा कोई भी बनावट सामने नहीं आई है, जो बताती हो कि यह मंदिर कभी बौद्ध धर्म के मठ जैसे रहे होंगे। इन दोनों मंदिरों के आसपास सैकड़ों वर्षों में कोई भी मैटेरियल एविडेंस भी नहीं मिले हैं।