नेटवर्क ब्यूरो
जन्मकुंडली में व्यापार का भाव सप्तम भाव है और आपका साझेदार आपके साथ कर्म करेगा कि नहीं इसके लिए आपका कर्म भाव यानी कि दशम भाव बेहद ज़रूरी है।
अगर आप किसी के साथ नया काम शुरू कर रहे हैं या साझेदारी कर रहे हैं तो अपनी और अपने पार्टनर की कुंडली को ध्यान से देखिए और समझिए कि आपका काम सफल होगा या नहीं ? आइए आपको इस बारे में समझाते हैं।
1 – कुंडली में सप्तम भाव साझेदार का भाव होता है और तीसरा भाव साहस और पराक्रम का भाव होता है। किसी भी काम में सफल होने के लिए आपको साहस की जरूरत पड़ती है इसलिए तीसरे भाव महत्व है।
2 – जन्मकुंडली में व्यापार का भाव सप्तम भाव है और आपका साझेदार आपके साथ कर्म करेगा कि नहीं इसके लिए आपका कर्म भाव यानी कि दशम भाव बेहद ज़रूरी है।
3 -आपका पार्टनर आपके लिए जो कर्म करेगा और अपने संस्थान के लिए जो काम करेगा उसका लाभ आपको अपने एकादश भाव से प्राप्त होगा। इसलिए जब भी आप किसी के साथ साझेदारी करें तो तीसरे, सप्तम, दशम और एकादश भाव की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
4 – वैदिक ज्योतिष के नियम के अनुसार आपकी कुंडली के तीसरे और सप्तम भाव के स्वामी नीच नहीं होने चाहिए और ना ही कोई नीच का ग्रह इन भाव में विराजमान होना चाहिए वरना आपको धोखा मिल सकता है।
5 – आपकी कुंडली में तीसरे और सातवें भाव के स्वामी ना तो एक दूसरे से छह और आठ हो और ना ही दूसरे और द्वादश हो ! अगर ऐसा है तो आपको अपने साझेदार के द्वारा बदनामी झेलनी पड़ सकती है।
6 – अगर आपकी कुंडली में तीसरे भाव का स्वामी उच्च होकर सप्तम या एकादश भाव में विराजमान हो तो जाहिर सी बात है आपकी साझेदारी में की गई कोशिश मुनाफा देने वाली होगी।
7 – अगर आपकी कुंडली में एकादश का स्वामी सप्तम में और सप्तम का स्वामी तीसरे भाव में हो तो आपका पार्टनर काफी उच्च कुल से और धनी होगा।
8 – आपकी कुंडली में जो तीसरे भाव का स्वामी है वो आपके साझेदार की कुंडली के नवम का स्वामी है या नवम में विराजमान है तो आपको सफलता प्राप्त होगी।
9 – अगर आपकी कुंडली में तीसरे भाव का स्वामी लग्न में हो और आपके पार्टनर की कुंडली में लग्न का स्वामी तीसरे भाव में हो तो जीवन भर साझेदारी चलती है वो कभी टूट नहीं सकती है।
10 – आपके और आपके साझेदार की कुंडली में तीसरे,सप्तम और दशम का स्वामी आठवें भाव में नहीं होना चाहिए वरना उस भावेश की दशा में दोनों पार्टनर अलग हो जाते हैं।