डा० ए.के. दुबे
अपने अपने फर्ज
अरे पापा आप अभी तक तैयार नहीं हुए। बैग कहां है? आपका। चलिए मैं पैक करती हूं। नरेंद्र बाबू ने एक उदास नजर निशि पर डाली निशि बेटा मैं कहीं नहीं जाऊंगा। ये घर तेरी मां की यादों से भरा हुआ है।निशि की आंखे भर आई पापा मां को गये छह महीने हो गए हैं आपकी तबियत भी ठीक नहीं है ऐसे में मैं आपको अकेले नहीं छोड़ सकती।आप मेरे घर चल रहे हैं मेरे साथ। बेटा मैं तेरे घर कैसे रह सकता हूं? बेटी के घर का तो लोग पानी तक नहीं पीते हैं। फिर वहां तेरे सास ससुर भी हैं ।उन्हें मेरा वहां रहना कैसे अच्छा लग सकता है।आखिर हूं तो मैं एक बाहरी आदमी। पापा वो लोग ऐसे नहीं हैं वो मेरे साथ कितने अच्छे हैं।निशि नरेंद्र बाबू का हाथ अपने हाथ में लेकर बैठ गई। पिछली बार आपको शुगर का अटैक आया था कितनी मुश्किल से ठीक… कहते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए। पापा मैं आपकी इकलौती बेटी हूं।आपकी सारी जिम्मेदारी अब मेरी है। बस मैं और कुछ नहीं सुनुंगी। नरेंद्र बाबू सोच में डूब गए नवीन (दामाद) जी ने तो एक बार भी नहीं कहा। हां ये जरूर कहा था कि पापा हम आते रहेंगे आपसे मिलने।निशि तूने दामाद जी को पूछा। अरे पापा उनकी और मेरी राय अलग थोडे़ ही है।निशि नरेंद्र जी को लेकर अपने घर आ गई। उसके सास-ससुर समधी को देख कर चौंक गए।नवीन ने भी पैर छुए और कहा अच्छा किया पापा जो आप कुछ दिन के लिए यहां आ गए। नरेंद्र बाबू रहने तो लगे पर उन्हें लग रहा था कि शायद दामाद और उनके माता-पिता उनके यहां आने से खुश नहीं हैं। एक दिन नरेंद्र बाबू लॉन में घूम रहे थे कि अचानक उन्हें नवीन की आवाज सुनाई दी।निशि पापा यहां पर कब तक रहेंगे। ऐसा क्यों पूछ रहे हैं आप। वहां पर उनका है ही कौन और उनकी तबीयत भी ठीक नहीं है। अरे तुम समझ नहीं रही हो हमें तो अपने घर में ही अजीब सा महसूस होने लगा है। हमें किसे? अच्छा मम्मी-पापा जी ने कहा आपसे।अब तुम जो भी समझो। अरे वहां पर उनकी अच्छी व्यवस्था कर सकती हो। नरेंद्र बाबू और नहीं सुन सके कांपते हुए कदमों से वापस आ गए। अगले दिन जाने की तैयारी करने लगे।निशि बोली पापा ऐसे कैसे जायेंगे आप। नरेंद्र बाबू उसे डांटने लगे निशि मेरी फिजूल में चिंता मत करो अपने पति और सास ससुर का ध्यान रखो बेटा मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूं।निशि बेटा बहुत दिन हो गए अब जाना चाहिेए मैं नवीन से बात करती हूं। अभी आपकी तबियत ठीक नहीं है। जब आप ठीक हो जाएंगे तो मैं आपको खुद छोड़ आऊंगी। नहीं निशि देखो मैं तुमसे नाराज हो जाऊंगा।निशि नाश्ता बनाने लगी। सोच रही थी कि पापा को किसी ने कुछ तो कहा है। नाश्ता करने के बाद उसने कहा आज पापा जा रहे हैं।वह अपने सास, ससुर और नवीन का चेहरा देख रही थी कि उनके चेहरे पर चमक आ गई थी। तभी उसने कहा कि मैंने एक फैसला किया है कि पापा इतनी बड़ी कोठी में अकेले कैसे रहेंगे। सोच रही हूं कि गरीब बच्चों के लिए उसमें एक छोटा-सा स्कूल खोल दिया जाय। पापा और मैं मिल कर एक ट्रस्ट बनाएंगे ताकि पापा के बाद भी स्कूल चलता रहे। और पापा आपकी वो जमीन पडी़ है उसे बेच देते हैं दो करोड़ की वैल्यू है उसकी उसे ट्रस्ट के फंड में जमा कर देंगे उसके इंट्रेस्ट से उन गरीब बच्चों की फीस में मदद करेंगे जो कुछ करना चाहते हैं उसमें योगदान देंगे। बाकी आपकी पेंशन और फंड आपके लिए बहुत है। पापा मैं आज से ही इस पर काम शुरू करती हूं। नरेंद्र बाबू हतप्रभ हो कर उसे देख रहे थे।नवीन की आंखों के सामने तो अंधेरा छा गया उसके मम्मी पापा का मुंह खुला रह गया। मन ही मन हिसाब करने लगा पांच करोड़ की कोठी दो करोड़ की जमीन और फंड इतना बड़ा नुकसान। जब वह नरेंद्र बाबू को छोड़कर लौटी तो नवीन उसका इंतजार कर रहा था। ये सब क्या बकवास कर रही थी तुम।निशि मुसकरायी और बोली ये बकवास नहीं सच है। ऐसा मैं इसलिए करूंगी कि किसी को भी मेरे पिता की मौत का इंतजार न रहे। पापा ने मेरी शादी पर ऐसी कौन सी चीज है जो नहीं दी ।नवीन गुस्से से बोला ये तो उनका फर्ज था।फर्ज सिर्फ लड़की के बाप का होता है। क्योंकि उसने लड़की पैदा करने की गलती की है। मैं अपने पापा की इकलौती बेटी हूं। तो क्या मेरा फर्ज नहीं था उनकी देखभाल करने का वो भी ऐसे वक्त में जब उनकी तबीयत ठीक नहीं है। और उन्हें सहारे की जरूरत है। माफी चाहती हूं कि उनके कुछ दिन यहां रहने से सबको तकलीफ हुई। मैंने कभी तुम्हें तुम्हारे फर्ज निभाने से नहीं रोका। अपने सास ससुर की सेवा में भी कोई कमी नहीं रखी। तुम मुझे मेरे पिता के प्रति मेरा फर्ज निभाने से नहीं रोक सकते। उसकी आवाज में दृढ़ता थी।नवीन खामोश हो कर उसे देख रहा था🙏🙏
सुप्रभातं, सुमंगलं। जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है! आपका हर पल मंगलमय हो!